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भारत में बढ़ती जनसंख्या और नियंत्रण की आवश्यकता : विश्व जनसंख्या दिवस

भारत ने हाल ही में जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बनकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या अब 142.86 करोड़ हो चुकी है, जो कि चीन की 142.57 करोड़ जनसंख्या से लगभग 30 लाख अधिक है। यह उपलब्धि न केवल भारत को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान देती है, बल्कि जनसंख्या नियंत्रण के प्रश्न को एक बार फिर राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में ला खड़ा करती है।

भारत में स्वतंत्रता के बाद जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। 1970 के दशक में सरकार ने “हम दो, हमारे दो” जैसे नारों के माध्यम से परिवार नियोजन को बढ़ावा देने का प्रयास किया। हालांकि, जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई प्रभावी कानून नहीं बन पाया। आपातकाल के दौरान संजय गांधी द्वारा चलाया गया नसबंदी अभियान विवादों में घिर गया और इसके दुष्परिणामों के कारण कांग्रेस को 1977 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद से इस विषय पर राजनीतिक दलों ने सख्त रुख अपनाने से परहेज किया है।

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हाल के वर्षों में विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग बार-बार उठी है। 2019 में, भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने जनसंख्या विनियमन विधेयक पेश किया था, जिसमें दो से अधिक बच्चों वाले परिवारों को सरकारी योजनाओं से वंचित करने का प्रस्ताव रखा गया था। हालाँकि, इस विधेयक को व्यापक विरोध के कारण स्थगित करना पड़ा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के स्वतंत्रता दिवस भाषण में जनसंख्या वृद्धि को एक गंभीर चुनौती बताया था। उन्होंने छोटे परिवारों को जिम्मेदार नागरिक का प्रतीक बताते हुए कहा था कि यह न केवल परिवार के लिए बल्कि पूरे देश के लिए हितकारी है।

जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर धार्मिक समुदायों के बीच चिंता का विषय भी उभरा है। विशेषकर मुस्लिम समुदाय के कुछ नेताओं ने आशंका व्यक्त की है कि इस कानून का लक्ष्य उनका समुदाय हो सकता है। हालांकि, पारसी, जैन, बौद्ध और ईसाई समुदायों की जनसंख्या वृद्धि दर पहले से ही कम है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि नीति सभी पर समान रूप से लागू होगी।

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आंकड़े देखें तो आजादी के बाद 1951 में भारत की कुल जनसंख्या 36.1 करोड़ थी, जिसमें हिंदू 84.1% और मुस्लिम 9.8% थे। 2025 के अनुमान के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या 142.8 करोड़ हो चुकी है, जिसमें हिंदू 79.8% और मुस्लिम 14-14.5% के बीच हैं।

मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर 471.4%-485.7% के बीच है, जबकि हिंदू जनसंख्या में 275% की वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि, मुस्लिम समुदाय की कुल जनसंख्या आधार कम होने के कारण उनकी कुल वृद्धि का योगदान केवल 15.5%-15.9% है, जबकि हिंदुओं का योगदान 78.3% है। यह स्पष्ट होता है कि मुस्लिम समुदाय की वृद्धि दर हिन्दूओं से अधिक है।

प्रजनन दर (TFR) के आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुस्लिम महिलाओं की TFR (2.36) अभी भी हिंदू महिलाओं (1.94) से अधिक है। इसके पीछे धार्मिक आधार की महत्वपूर्ण भूमिका है भले ही मुस्लिम समुदाय में साक्षरता और महिला श्रम भागीदारी दर अपेक्षाकृत कम है परन्तु प्रजनन दर अधिक दिखाई देती है।

यदि वर्तमान प्रजनन दर और जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति बनी रहती है, तो 2025 में 20.5 करोड़ की मुस्लिम जनसंख्या 2050 तक लगभग 31 से 32 करोड़ तक पहुँच सकती है। यह वृद्धि लगभग 1.8% वार्षिक दर के अनुमान पर आधारित है। इस दर से मुस्लिम जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 18% तक हो सकती है। यह आंकड़ा Pew Research Center और UN Population Division के अनुमानों से मेल खाता है।

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भारत की जनसंख्या वृद्धि एक अवसर भी है और चुनौती भी। सरकार इस दिशा में सतत प्रयास कर रही है कि युवा जनसंख्या को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे बुनियादी संसाधन मिलें, जिससे यह आर्थिक विकास में सहायक हो। इसके साथ ही विशेषज्ञ मानते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण कानून भी आवश्यक है, जिससे जनसंख्या का संतुलन बना रहे और जनसंख्या विस्फ़ोट का सामना न करना पड़े। सरकार सभी के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार उपलब्ध करा सके।

संदर्भ

  • Pew Research Center
  • गुरु श्रम IAS
  • Factly.in