दलाई लामा ने पुष्टि की: मृत्यु के बाद भी जारी रहेगा उनका आध्यात्मिक उत्तराधिकार
तिब्बत के निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने आज एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए कहा कि उनकी मृत्यु के बाद भी दलाई लामा की परंपरा जारी रहेगी। इस घोषणा से विश्वभर में फैले उनके अनुयायियों और तिब्बती समुदाय में आशा की एक नई किरण जगी है।
90 वर्ष के दलाई लामा, जिनका आधिकारिक नाम तेनजिन ग्यात्सो है, तिब्बत के 14वें दलाई लामा माने जाते हैं। उन्होंने यह बयान हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में आयोजित एक धार्मिक सम्मलेन के दौरान वीडियो सन्देश के माध्यम से दिया। धर्मशाला वह स्थान है जहाँ वे 1959 में चीन के सैनिक हस्तक्षेप के बाद से निर्वासन में रह रहे हैं।
उन्होंने कहा, “पिछले 14 वर्षों में मुझे दुनिया भर से—विशेष रूप से तिब्बती प्रवासी समुदाय, हिमालयी क्षेत्रों, मंगोलिया, रूस और चीन के बौद्ध अनुयायियों से—लगातार यह निवेदन मिला है कि दलाई लामा की संस्था को जारी रखा जाए। तिब्बत के अंदर से भी मुझे अनेक संदेश प्राप्त हुए हैं जिनमें यही अनुरोध किया गया है।”
इस सन्देश में दलाई लामा ने यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य में उनके उत्तराधिकारी की पहचान केवल गदेन फोद्रंग ट्रस्ट द्वारा की जाएगी, जो उनके कार्यालय का आधिकारिक अंग है। उन्होंने कहा, “मैं दोहराता हूँ कि दलाई लामा के पुनर्जन्म को मान्यता देने का अधिकार केवल गदेन फोद्रंग ट्रस्ट के पास है। अन्य किसी को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।”
यह घोषणा ऐसे समय पर आई है जब उनके अनुयायी और वैश्विक समुदाय उनकी उम्र को देखते हुए उत्तराधिकार को लेकर चिंतित थे। साथ ही, तिब्बती समुदाय के अनेक सदस्य इस बात को लेकर भी आशंकित थे कि चीन सरकार दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में हस्तक्षेप कर सकती है।
तिब्बती कार्यकर्ता चेमी ल्हामो ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा, “दलाई लामा की संस्था न केवल तिब्बती समुदाय के लिए, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए लाभकारी है। यह कदम चीन को यह स्पष्ट संदेश देता है कि भविष्य के दलाई लामा के चयन में उसकी कोई भूमिका नहीं होगी।”
गौरतलब है कि दलाई लामा ने 2011 में राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी निर्वासित तिब्बती सरकार को सौंप दी थी, जो कि अब लोकतांत्रिक तरीके से विश्वभर में फैले लगभग 1.3 लाख तिब्बतियों द्वारा चुनी जाती है।
इस ऐतिहासिक निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि दलाई लामा की संस्था का भविष्य अब भी जीवंत रहेगा और तिब्बती पहचान तथा सांस्कृतिक विरासत की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।