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ओडिशा कैबिनेट बैठक से विभागीय सचिवों की दूरी, बीजेपी सरकार का प्रशासनिक नियंत्रण पर जोर

ओडिशा की बीजेपी सरकार ने एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक निर्णय लेते हुए विभागीय सचिवों की कैबिनेट बैठकों में सीधी उपस्थिति पर रोक लगा दी है। इस फैसले को नौकरशाही के बढ़ते प्रभाव की धारणा को समाप्त करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जो बीजेडी शासन के दौरान एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा था।

9 मई को जारी किए गए परिपत्र में स्पष्ट किया गया है कि कैबिनेट की बैठकों में अब केवल मुख्यमंत्री, संबंधित कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और कैबिनेट सचिव (मुख्य सचिव) ही भाग लेंगे। विभागीय सचिवों को अलग से निर्धारित कक्ष में बैठाया जाएगा और उन्हें केवल आवश्यकता पड़ने पर ही कैबिनेट कक्ष में बुलाया जाएगा।

राजस्व मंत्री सुरेश पुजारी ने इस निर्णय को “लोकतांत्रिक प्रणाली की बहाली” करार दिया और कहा, “यह कोई नया नियम नहीं है, बल्कि वह प्रक्रिया है जो एक संसदीय लोकतंत्र में स्वाभाविक रूप से लागू होनी चाहिए। बीते 24 वर्षों में यह प्रणाली बिगड़ चुकी थी, अब उसे वापस पटरी पर लाया गया है।”

पूर्ववर्ती बीजेडी सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका को उस दौर में कमतर कर दिया गया था और नौकरशाहों को अत्यधिक शक्तियाँ मिल गई थीं।

बीजेपी लंबे समय से बीजेडी सरकार पर आरोप लगाती रही है कि सत्ता का संचालन निर्वाचित प्रतिनिधियों के बजाय नौकरशाहों द्वारा किया जा रहा था। विशेष रूप से पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के प्रमुख सचिव वी. के. पंडियन को लेकर यह आरोप बार-बार उठता रहा है कि उन्होंने मंत्रियों और विधायकों से अधिक प्रभाव रखा।

नए निर्देश में यह भी कहा गया है कि कैबिनेट में रखे जाने वाले मामलों पर संबंधित मंत्री या राज्य मंत्री ही चर्चा की शुरुआत करेंगे, और सचिव केवल तब बोलेंगे जब उनसे राय मांगी जाएगी। साथ ही, कैबिनेट मेमो की समयबद्ध तैयारी और उसे तीन कार्यदिवस पूर्व जमा करने की व्यवस्था भी तय की गई है।

दूसरी ओर, बीजेडी ने इस फैसले को “राजनीतिक नौटंकी” करार दिया है। पार्टी के वरिष्ठ विधायक कालिकेश सिंह देव ने कहा, “सरकार को दिखावे की बजाय राज्य के विकास और जनकल्याण पर ध्यान देना चाहिए। प्रशासनिक दक्षता जमीन पर दिखनी चाहिए, न कि केवल कागज़ों पर।”

विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला सत्ता के केंद्र में राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका को पुनर्स्थापित करने का संकेत देता है, साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि मंत्री अपने विभागों की जिम्मेदारी खुद लें और कैबिनेट चर्चाओं में सक्रिय भागीदारी करें।