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महिला सैन्य अधिकारी पर आपत्तिजनक टिप्पणी: सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री विजय शाह की माफ़ी ठुकराई, एसआईटी जांच के आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह की माफ़ी को खारिज करते हुए उन्हें महिला सैन्य अधिकारी पर की गई आपत्तिजनक और सांप्रदायिक टिप्पणी के लिए कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि मंत्री की माफ़ी “सच्चे पछतावे” से कोसों दूर है और इसे केवल औपचारिकता समझा जा सकता है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने तीखे शब्दों में कहा, “आपकी माफ़ी का क्या मतलब है? यह कोई माफ़ी नहीं, बल्कि मगरमच्छ के आंसू हैं। आपने अब तक एक भी सच्ची और स्पष्ट माफ़ी क्यों नहीं दी? क्या आपको अदालत के कहने का इंतज़ार था?” न्यायाधीश ने यह भी कहा कि यह मामला सशस्त्र बलों की गरिमा से जुड़ा है और ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर एक जिम्मेदार नेता को संयम बरतना चाहिए था।

एसआईटी गठित करने का आदेश

अदालत ने इस मामले की जांच के लिए तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित करने का निर्देश दिया है। यह टीम मंगलवार सुबह तक गठित हो जानी चाहिए और इसमें कम से कम एक महिला अधिकारी होनी अनिवार्य होगी। जांच रिपोर्ट 28 मई तक कोर्ट को सौंपी जानी है।

सुप्रीम कोर्ट ने विजय शाह को फिलहाल गिरफ्तारी से राहत दी है, लेकिन स्पष्ट किया कि उन्हें “अपने कृत्य के परिणामों का सामना करना ही पड़ेगा।” साथ ही, अदालत ने मध्य प्रदेश सरकार को भी नोटिस जारी करते हुए चेताया, “यह आपके लिए अग्निपरीक्षा है, हम इस मामले पर कड़ी निगरानी रखेंगे।”

क्या कहा था विजय शाह ने?

ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत द्वारा आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई के बाद एक जनसभा में विजय शाह ने कथित तौर पर कहा था कि “पाकिस्तान के समुदाय से जुड़ी एक महिला को देश को नंगा करने भेजा गया है।” उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से महिला सैन्य अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी पर निशाना साधते हुए उन्हें “आतंकवादियों की बहन” कह दिया था।

विजय शाह ने शुरुआत में अपने बयान को “गलत संदर्भ में प्रस्तुत” बताया, लेकिन बाद में कहा कि अगर उनके शब्दों से किसी को ठेस पहुंची है तो वह “दस बार माफ़ी मांगने को तैयार हैं”।

राजनीतिक भूचाल और न्यायिक प्रतिक्रिया

विजय शाह के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में भूचाल आ गया था। विपक्षी दलों के साथ-साथ सेना के पूर्व अधिकारियों और यहां तक कि कुछ भाजपा नेताओं ने भी मंत्री की आलोचना की थी।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भी इस पर सख्त रुख अपनाते हुए टिप्पणी की थी कि विजय शाह ने “गटर जैसी भाषा” का प्रयोग किया है और यह सशस्त्र बलों की प्रतिष्ठा पर हमला है। कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था।

अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बयान को “अस्वीकार्य और असंवेदनशील” करार दिया है और सरकार से इस मामले में ठोस कार्रवाई की अपेक्षा जताई है।