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भारत ने किया कूटनीतिक अभियान का आगाज़, सभी दलों के सांसदों को भेजेगा विदेशी दौरों पर

पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले और उसके जवाब में भारत द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद केंद्र सरकार अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अपना पक्ष मजबूती से रखने की तैयारी में है। इसके तहत सरकार ने सभी दलों के सांसदों की टीमों को दुनिया के प्रमुख देशों में भेजने की योजना बनाई है।

सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्रालय लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय के साथ मिलकर उन सांसदों की सूची तैयार कर रहा है जिन्हें इन प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा बनाया जाएगा। शुरुआत में ये दल यूरोप और खाड़ी देशों का दौरा करेंगे। इस प्रयास का उद्देश्य यह बताना है कि भारत आतंकवाद का शिकार हुआ है और इसके जवाब में आतंकवादियों के ठिकानों पर कार्रवाई की गई।

सरकार का मानना है कि विभिन्न संसदीय समितियों से जुड़े अनुभवी सांसद अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की एकजुटता और आतंक के खिलाफ उसकी ठोस कार्रवाई का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। इस पहल में विपक्षी दलों को भी शामिल किया गया है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कई विपक्षी सांसदों से संपर्क किया है, जिसमें कांग्रेस के शशि थरूर और सलमान खुर्शीद, एनसीपी(एसपी) की सुप्रिया सुले, टीएमसी के सुदीप बंद्योपाध्याय, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, डीएमके की कनिमोझी और बीजेपी के बैजयंत पांडा शामिल हैं।

यह कदम 1994 और 2008 की तरह ही है, जब भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ अपना पक्ष मजबूत किया था। 1994 में पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के कार्यकाल में, विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल जिनेवा भेजा गया था, जिसने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत के खिलाफ पाकिस्तान के प्रस्ताव को विफल किया था।

सलमान खुर्शीद ने द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “मुझे गुरुवार रात सरकार की ओर से संदेश मिला, जिसे मैंने पार्टी नेतृत्व तक पहुंचा दिया है। यह एक सर्वदलीय प्रयास है, और अंतिम निर्णय पार्टी ही लेगी कि किसे भेजा जाए।”

यह कदम घरेलू राजनीति की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। कांग्रेस ने सरकार पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को राजनीतिक रंग देने का आरोप लगाया है। वहीं भाजपा ने देशभर में तिरंगा रैलियों का आयोजन किया है। कांग्रेस भी अब ‘जय हिंद’ रैलियों की योजना बना रही है और सवाल उठा रही है कि प्रधानमंत्री ने केवल एनडीए मुख्यमंत्रियों को ही इस ऑपरेशन पर ब्रीफिंग क्यों दी, सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को क्यों नहीं बुलाया गया।

इस नए कूटनीतिक अभियान के जरिए भारत यह संदेश देना चाहता है कि आतंकवाद के विरुद्ध देश एकजुट है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारत की स्थिति को गंभीरता से लेना चाहिए।