छत्तीसगढ़ में आठ शहरों में लगेंगे बायो-सीएनजी प्लांट, रियायती दर पर मिलेगी जमीन
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की पहल पर छत्तीसगढ़ में स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। राज्य के सभी नगरीय निकायों में जैविक और कृषि अपशिष्ट के प्रसंस्करण के लिए बायो-सीएनजी संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। रायपुर और भिलाई सहित आठ नगर निकायों में इसके लिए भूमि चिन्हित कर ली गई है। इन स्थानों पर भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) और गेल इंडिया लिमिटेड (GAIL) द्वारा लगभग 800 करोड़ रुपये की लागत से संयंत्र लगाए जाएंगे।
सार्वजनिक उपक्रमों को मिलेगी रियायती जमीन
राज्य मंत्रिमंडल ने 17 अप्रैल को हुई बैठक में यह फैसला लिया कि इन संयंत्रों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को भूमि महज ₹1 प्रति वर्गमीटर की दर पर लीज पर उपलब्ध कराई जाएगी। इसके अनुपालन में नगरीय प्रशासन विभाग ने सभी ज़िलों के कलेक्टरों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं।
बीपीसीएल और गेल को प्रति स्थान 10 एकड़ भूमि 25 वर्ष की लीज पर दी जाएगी। इन संयंत्रों में जैविक कचरे और कृषि अपशिष्टों से बायो-सीएनजी का उत्पादन किया जाएगा।
आयात पर निर्भरता होगी कम
वर्तमान में देश में प्रयोग की जाने वाली सीएनजी का लगभग 46 प्रतिशत हिस्सा आयात किया जाता है। सरकार की योजना है कि बायो-सीएनजी के बढ़ते उत्पादन और उपयोग से इस आयात पर निर्भरता को घटाया जाए। बायो-सीएनजी न केवल वाहनों के लिए एक वैकल्पिक ईंधन है, बल्कि इसे खाना पकाने, बिजली उत्पादन और औद्योगिक प्रक्रियाओं में भी प्रयोग किया जा सकता है।
क्या होता है बायो-सीएनजी?
बायो-सीएनजी एक प्रकार की स्वच्छ गैस होती है, जिसे जैविक कचरे जैसे गोबर, खाद्य अपशिष्ट और औद्योगिक कीचड़ से तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में इन कचरों को एक सील बंद टैंक (एनारोबिक डाइजेस्टर) में डाला जाता है, जहां ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में गैस तैयार होती है। इसे और परिष्कृत कर 95 प्रतिशत तक शुद्ध मीथेन प्राप्त की जाती है, जो ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों में प्रयोग योग्य होती है। इस प्रक्रिया में एक उत्कृष्ट जैविक उर्वरक भी प्राप्त होता है।
एक माह में शुरू होगी टेंडर प्रक्रिया
नगरीय प्रशासन विभाग के अनुसार आठ स्थानों पर भूमि का चिन्हांकन पूरा हो चुका है और आगामी एक महीने के भीतर टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। टेंडर प्रक्रिया पूर्ण होते ही निर्माण कार्य की शुरुआत होगी। इस परियोजना से न केवल कचरे के प्रबंधन को नया विकल्प मिलेगा, बल्कि राज्य को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी यह एक मजबूत कदम साबित होगा।