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अमेरिका-चीन व्यापार वार्ता में बनी सहमति, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है बड़ा असर

अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से जारी व्यापार तनाव के बीच एक महत्वपूर्ण प्रगति सामने आई है। जिनेवा में दो दिवसीय गहन वार्ता के बाद अमेरिका और चीन ने एक व्यापार समझौते पर सहमति जताई है, जिसकी पुष्टि अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट और चीन के उप-प्रधानमंत्री हे लीफेंग ने की है।

वार्ता के समापन के बाद बेसेन्ट ने कहा, “हमें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार वार्ता में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।” अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर ने भी रविवार को समझौते की पुष्टि की। यह वार्ता ऐसे समय हुई जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर कड़े टैरिफ लगाए थे, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था।

चीनी उप-प्रधानमंत्री हे लीफेंग ने बातचीत को “गंभीर और स्पष्ट” बताया। समझौते की विस्तृत जानकारी सोमवार को साझा की जाएगी।

समझौते के मुख्य बिंदु

बताया जा रहा है कि अमेरिका ने चीन पर लगाए गए टैरिफ को 145 प्रतिशत से घटाकर 80 प्रतिशत तक लाने की इच्छा जताई है। हालांकि, इसके बदले चीन को भी कई रियायतें देनी होंगी। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि टैरिफ 50 प्रतिशत तक लाया गया तो दोनों देशों के बीच सामान्य व्यापार की बहाली संभव हो सकेगी।

अमेरिका में चीन से आयातित वस्तुओं की कमी और कीमतों में वृद्धि के कारण घरेलू महंगाई पर असर पड़ रहा है। प्रमुख रिटेल कंपनियों जैसे वॉलमार्ट और टारगेट ने चेतावनी दी थी कि यदि टैरिफ जारी रहा तो स्टोरों में वस्तुएं कम हो जाएंगी और उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत चुकानी होगी।

चीन की स्थिति

चीन की निर्माण गतिविधियां पहले ही मंद पड़ चुकी हैं और पिछले महीने देश की फैक्ट्री उत्पादन दर में 16 महीनों की सबसे तेज गिरावट दर्ज की गई। ऐसे में चीन भी वार्ता को लेकर गंभीर था। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की स्थिति स्थिर है और वे आर्थिक प्रोत्साहन योजना (stimulus package) के जरिए संकट का सामना कर रहे हैं।

अमेरिका की चुनौती

दूसरी ओर, अमेरिका में महंगाई बढ़ने की आशंका और फेडरल रिज़र्व के साथ संभावित टकराव ने ट्रंप प्रशासन के लिए स्थिति को जटिल बना दिया है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने संकेत दिया है कि निकट भविष्य में ब्याज दरों में कटौती की संभावना नहीं है, जिससे सरकार की आर्थिक नीति पर असर पड़ सकता है।

दोनों देशों के इस समझौते को वैश्विक स्तर पर राहत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच चल रहा व्यापार युद्ध दुनिया भर में आर्थिक अनिश्चितता का कारण बन गया था।