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वक्फ अधिनियम 2025 पर सुनवाई के दौरान सीजेआई संजीव खन्ना ने साधा संतुलन, सरकार और याचिकाकर्ताओं दोनों से पूछे अहम सवाल

वक्फ अधिनियम 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने बुधवार को सरकार और याचिकाकर्ताओं दोनों को अहम सवालों के कटघरे में खड़ा किया। न्यायमूर्ति खन्ना, जो अगले महीने 14 मई को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं, ने दो घंटे चली सुनवाई में कई संतुलित टिप्पणियाँ कीं।

उन्होंने कहा, “कानून में कुछ अच्छे पहलू भी हैं, जिनका कोई ज़िक्र नहीं कर रहा है।” यह टिप्पणी उन्होंने तब दी जब दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें रखीं।

सरकार से माँगा स्पष्ट जवाब

मुख्य न्यायाधीश ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या कोई ऐसा उदाहरण है जब संसद ने एक धार्मिक समुदाय के मामलों से जुड़ी संस्था में किसी अन्य धर्म के व्यक्ति को शामिल करने की अनुमति दी हो। इस पर मेहता ने कहा, “हां, ऐसे उदाहरण हैं, लेकिन मैं उनका नाम नहीं लेना चाहता।”

हालांकि, अदालत इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुई और जवाब की स्पष्टता पर ज़ोर देती रही। सरकार की ओर से बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 का हवाला दिया गया, जो एक धर्मनिरपेक्ष कानून है और मंदिर, वक्फ तथा अन्य धार्मिक व चैरिटेबल संस्थाओं पर लागू होता है। लेकिन न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन ने टिप्पणी की कि यह उदाहरण उपयुक्त नहीं है और इसके बजाय हिंदू धार्मिक एवं चैरिटेबल ट्रस्ट कानूनों की ओर इशारा किया।

वक्फ बाय यूजर की व्यवस्था खत्म करने पर सवाल

सीजेआई खन्ना ने सरकार से पूछा कि दशकों से प्रचलित “वक्फ बाय यूजर” की अवधारणा को नए कानून में क्यों समाप्त किया गया। उन्होंने कहा, “हमें यह स्वीकार है कि इसका दुरुपयोग होता है, लेकिन कई वास्तविक मामले भी होते हैं।”

उन्होंने चेतावनी दी कि “अगर आप वक्फ बाय यूजर को डिनोटिफाई करने जा रहे हैं, तो यह एक बड़ी समस्या बन सकती है।”

याचिकाकर्ताओं से भी सवाल

मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं से भी कई सवाल पूछे। जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने लिमिटेशन एक्ट को नए वक्फ कानून में शामिल किए जाने पर आपत्ति जताई, तो सीजेआई ने कहा कि “लिमिटेशन एक्ट के अपने फायदे और नुकसान दोनों होते हैं।”

गौरतलब है कि 1995 के वक्फ अधिनियम में लिमिटेशन एक्ट लागू नहीं होता था, जिससे वक्फ बोर्ड अतिक्रमण के मामलों पर समयसीमा के बिना कार्रवाई कर सकता था। लेकिन नए कानून में यह छूट हटा दी गई है।

विरासत कानून में दखल?

सिब्बल ने यह भी दलील दी कि नया कानून मुस्लिम विरासत के मामलों में हस्तक्षेप करता है। इस पर सीजेआई खन्ना ने कहा, “आप यह नहीं कह सकते कि संसद विरासत पर कानून नहीं बना सकती। हमारे पास हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम भी है।”

2025 के नए कानून में यह प्रावधान है कि वक्फ-आल-अलौलाद की स्थापना किसी भी उत्तराधिकारी, विशेष रूप से महिला वारिसों के अधिकारों का हनन नहीं करेगी।

धार्मिक स्वतंत्रता बनाम संवैधानिक सीमाएं

सिब्बल ने दलील दी कि वक्फ का प्रबंधन इस्लाम की मौलिक धार्मिक परंपराओं का हिस्सा है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत सुरक्षा प्राप्त है। इस पर न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा, “इन दोनों मुद्दों को एक-दूसरे में न मिलाएँ।”

गौरतलब है कि ‘मौलिक धार्मिक प्रथा’ (Essential Religious Practice) की अवधारणा को लेकर सुप्रीम कोर्ट की नौ-न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के समक्ष पहले से एक मामला लंबित है।

मुख्य न्यायाधीश खन्ना के पास अब सिर्फ 18 कार्य दिवस बचे हैं और वे 14 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। ऐसे में यह मामला उनके कार्यकाल के अंतिम प्रमुख मामलों में से एक माना जा रहा है।

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