राजनीति से ओटीटी तक भाषा का गिरता स्तर

किसी शायर ने कहा है –
फितरत को नापसंद है सख्ती जदाद में
पैदा हुई ना इसलिए हड्डी जबान में
लगता है कि इस प्रकार की कविताओं अथवा संदेशों से हमारा भारतीय समाज बहुत दूर हो गया है। हम भूल गए हैं कि शब्दों का अपना प्रभाव होता है। शब्द ‘ब्रह्म’ की मान्यता दुनिया के सम्मुख स्थापित करने वाले देश के लोग ही शब्द की मर्यादा भूल गए हैं। यह कथन केवल किसी पक्ष को लेकर नहीं कहा जा रहा है। हमारे समाज का कोई भी अंग शब्दों के प्रति संवेदनशील नहीं है। इस विषय पर आप गंभीरता से नहीं अपितु सामान्य रूप से भी विचार करेंगे तो आपको स्थितियां भयावह प्रतीत होंगी। राजनीतिक, साहित्यिक, कला आदि हर क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यक्तियों द्वारा प्रयोग किये जा रहे शब्द किसी भी सहृदय व्यक्ति के हृदय को लहूलुहान करने का सामर्थ्य रखते हैं।
देश की दिशा तय करने का दंभ भरने वाले राजनेताओं द्वारा समूचे राष्ट्र के विभिन्न सदनों में प्रयोग होने वाली भाषा के स्तर से देश का हर नागरिक परिचित है। यही लोग जब मीडिया के माध्यम से जन सामान्य से रूबरू होते हैं तो फिर सोने पर सुहागा जैसी स्थितियां हो जाती हैं। इसके ऊपर किसी भी प्रकार की अतिरिक्त टिप्पणी की आवश्यता मुझे दिखाई नहीं देती।
इसी प्रकार लगभग सभी ओटीटी प्लेटफार्म्स ने इसी प्रदूषित नदी के प्रवाह को आगे बढ़ाने का कार्य किया है। ओटीटी, ऐसे प्लेटफॉर्म हैं, जहां सिनेमा का एक अलग लेवल देखने को मिलता है। जहां सिनेमाघरों में मूवी को सेंसर बोर्ड पास कर अश्लील दृश्यों पर कैंची चलाता है। वहीं ओटीटी पर प्रस्तुत की जाने वाली वेबसीरीज में गाली-गलौच, द्विअर्थी संवाद और नग्नता ही इनकी खूबसूरती मानी है। निर्माता एकता कपूर के ऑल्ट बालाजी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ‘गंदी बात’ वेब सीरीज जिसके अब तक इस सीरीज के 5 सीजन आ चुके हैं और इन सभी में अभद्र शब्दों और हॉट सीन्स की की भरमार है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म एमएक्स प्लेयर पर साल 2020 में वेब सीरीज ‘मस्तराम’ को रिलीज किया गया था। 18 वर्ष से अधिक आयु वाले वयस्क ही इस सीरीज को देख सकते हैं। ये सीरीज उल्लू ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी मिलती है। ओटीटी प्लेटफॉर्म जी फाइव पर उपलब्ध बिग बॉस ओटीटी फेम जिया शंकर और अनंत वी शंकर की वेब सीरीज ‘वर्जिन भास्कर’ भी इस सूची में शामिल है। जियो सिनेमा पर उपलब्ध वेब सीरीज ‘बेकाबू’ जिसके अब तक दो सीजन आए हैं, का नाम भी इनमें शामिल होता है। इसी तरह ‘चरम सुख’, ‘स्पोटलाईट’, ‘माया’, ‘मस्तराम’, ‘सेक्रेड गेम्स’, ‘कविता भाभी’, ‘रागिनी एमएमएस’, ‘फॉर मॉर शोट्स’, ‘ट्रिपल एक्स अनसेंसर्ज’ और ‘देव डीडी’ जैसी वेब सीरीज विभिन्न ओटीटी प्लेटफार्म्स पर देखने के लिए उपलब्ध हैं। इन सभी वेब सीरीज में भाषा की सभी मर्यादाओं के उलंघन के साथ-साथ बालीवुड की फिल्मों द्वारा स्थापित किए गए नग्नता के सभी कीर्तिमानों को ध्वस्त करने का शर्मनाक कार्य भी किया है।
इस सन्दर्भ को जब आगे बढ़ाते हैं तो सोशल मीडिया पर दृष्टिपात करना आवश्यक जान पड़ता है। दरअसल वह सोशल मीडिया ही है जो आज भाषा की मर्यादा का चीरहरण करने में सबसे आगे है। सोशल मीडिया में चाहे यूट्यूब हो, फेसबुक हो, इंस्टाग्राम हो या इसी श्रेणी का कोई अन्य प्लेटफार्म हो; सभी की स्थिति एक जैसी है। कुछ समय पहले यह कहने वाले लोग कि फिल्मी कलाकार अथवा छोटे परदे के कलाकार इस प्रकार की द्विअर्थी शब्दावली का प्रयोग करते हैं कि आप परिवार के साथ बैठकर उनके कार्यक्रम नहीं देख सकते, आज स्वयं वैसा ही कंटेंट तैयार करते हैं। अंतर केवल इतना ही है कि टी वी चैनलों के लोग टी आर पी के लिए वैसा करते रहे हैं और ये लोग वायरल होने के लिए।
आप ही बताइए क्या सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों द्वारा तथाकथित कलाकारों यानि कंटेंट क्रिएटर द्वारा परोसी जा रही सामग्री बच्चों के साथ बैठकर देखने लायक है? हाँ, ये लोग जो खुद को सामाजिक जिम्मेदार बताते हैं, ऐसा दिखाने के लिए ‘यूज इयर फोन…’ लिखना नहीं भूलते। कल तक समाज की ठेकेदारी का जिम्मा लेने वाले अधेड़ उम्र के अनेक लोग यहाँ अपने बेटे, बेटी और बहुओं के साथ पूरी तन्मयता से इस प्रकार की सामग्री तैयार करने में संलग्न नज़र आते हैं। आखिर ऐसा करने से माता लक्ष्मी की कृपा जो होती है।
पिछले दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बने उस यूट्यूब कार्यक्रम और उसके कलाकारों के नाम भी आप भूले नहीं होंगे जिसमें माता-पिता के संबधों पर बच्चों से प्रश्न किए जा रहे थे। इन्हीं सब प्लेटफार्म्स पर युवाओं को गुमराह करने वाले द्विअर्थी शब्दों, गाली-गलौच, मार-धाड़ (गन कल्चर), शराब को लाभप्रद और उत्साहवर्धक पेय दर्शाने वाले गीत, फ़िल्म और रील आदि की भरमार है। इन सभी प्लेटफार्म्स पर उपलब्ध कंटेंट ने जहां भाषा की मर्यादा को समाप्त किया है वहीं ओटीटी प्लेटफार्म्स की अश्लील सामग्री परोसने के आदत का सहयोग भी किया है। उसके बाद जब कभी राजनीतिक लोग इस बारे में कुछ कदम उठाने का प्रयास करते हैं तो वहां भाई-भतीजावाद और जाति-सम्प्रदाय जैसी सामाजिक बीमारियाँ उठ खड़ी होती हैं। जिसका ताजा उदाहरण हरियाणा के रूप में हमारे सामने है।
शब्दों के अमर्यादित प्रयोग की यह कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। राजनेताओं, फिल्मी दुनिया, ओटीटी और सोशल मीडिया के अलावा कुछ और तत्त्व भी इस आग में घी डालने का कार्य करते हैं। जिनमें से प्रमुख हैं कवि सम्मलेन और कॉमेडी शो जैसे आयोजन। देश भर में साहित्य संवर्धन या कविता के नाम पर आयोजित किए जाने वाले कवि सम्मलेनों में कविता के नाम पर कविता के अलावा सबकुछ होता है, नहीं होती तो कविता या साहित्य।
कुछ समय पहले एक विश्वश्विद्यालय के कुलपति ने कवि सम्मलेन कराने से स्पष्ट मना कर दिया। उन्होंने बताया कि हमने कई वर्ष पहले ऐसा कार्यक्रम करवाया था। उसमें तीन-चार कवि-कवयित्रियों ने मंच से अपनी अभद्र भाषा और द्विअर्थी संवादों से जो गन्दगी फैलाई, उसके बाद हमने भविष्य में कवि सम्मलेन न कराने का निर्णय ले लिया। यह सच भी है। आप सभी भी कभी न कभी इससे दो-चार हुए होंगे। इसी तरह का कार्य हास्य के नाम पर अनेक कार्यक्रमों में हास्य-कलाकारों द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के और भी अनेक उदाहरण आपको अपने आस-पास दिखाई दे जायेंगे।
इस समस्या के सन्दर्भ में अधिक विस्तार में जाने की अपेक्षा समाधान की दिशा में सकारात्मक चिंतन रखते हुए विचार करना अपेक्षित है। राजनीति, फिल्मी दुनिया, ओटीटी और सोशल मीडिया, साहित्य और समाज में मर्यादित भाषा में कार्य करने के भी अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं। अनेक राजनेता, फिल्में, ओटीटी वेब सीरीज, सोशल मीडिया मंच अच्छा कार्य कर रहे हैं। पंचायत, गुल्लक, कोटा फैमिली, ये मेरी फैमिली, राकेट बॉय, होम शांति, मालगुडी डेज आदि वेब सीरीज, दंगल जैसी फिल्में, रामायण, महाभारत, हम लोग, तेनाली रामा जैसे अनेक धारावाहिक इसका प्रमाण हैं।
अनेक नेता और साहित्यकार भी अपने मानक व्यवहार और भाषा के लिए स्मरण किए जाते हैं। विज्ञान के इस प्रगतिवादी युग में विचरण करने वाले हम मनुष्यों को स्मरण रखना होगा कि शब्दों का अपना प्रभाव होता है। इन्हीं शब्दों से बनने वाले विचार समाज की दशा और दिशा निर्धारित करते हैं। ऐसे में अपरिहार्य हो जाता है कि हम स्वयं अपने द्वारा प्रयोग किये जाने वाले शब्दों के साथ-साथ किसी भी रूप में संपर्क में आने वाले व्यक्ति की शब्दावली पर पैनी नजर रखें। इस संक्रमण से स्वयं और समाज को बचाने का प्रयास करना होगा, तभी इस समस्या का निराकरण संभव है।
सामयिक चिन्तन 👍👍