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25 अगस्त 2003 का मुंबई ब्लास्ट : ऐतिहासिक सबक

समाज और राष्ट्र तभी दीर्घजीवी होते हैं, जब वे अपने अतीत की स्मृतियों से कुछ सीख लेते हैं। इतिहास केवल गौरवगाथाओं का संग्रह नहीं होता, उसमें असावधानियों और कटु अनुभवों की कहानियाँ भी छिपी रहती हैं। 25 अगस्त 2003 का दिन भी ऐसा ही था, जब मुंबई की गलियों ने हमें अतीत की लापरवाहियों और भविष्य की सावधानियों दोनों का संदेश दिया।

अगस्त का महीना भारत के लिए वैसे भी विशेष मायने रखता है। इसी महीने देश ने आज़ादी का स्वाद चखा था, पर इसी महीने ने विभाजन का दर्द, डायरेक्ट एक्शन डे की हिंसा और भारत छोड़ो आंदोलन के रक्तरंजित पन्ने भी देखे। स्वतंत्रता के बाद भी यह षड्यंत्रकारी साया देश का पीछा नहीं छोड़ पाया। मुंबई ब्लास्ट उसी साये का नया रूप था।

वह सोमवार का दिन था। मुंबई की भीड़भरी सड़कों पर रोज़ की तरह हलचल थी। जावेरी बाजार, जहाँ हमेशा ग्राहकों की चहल-पहल रहती है, अचानक भय और चीखों से भर गया। टैक्सी में छिपाया गया बम जैसे ही फटा, पूरा इलाका हिल उठा। कांच के टुकड़े हवा में बिखर गए, दुकानों की दीवारें दरक गईं और लोगों की चीखें आसमान तक गूँज गईं। वहाँ खड़े टैक्सी ड्राइवर को समझ ही नहीं आया कि उसके इंतज़ार में बैठे सवार ने उसे मौत के मुँह में धकेल दिया है। देखते ही देखते 29 लोगों की जान चली गई और सौ से अधिक घायल ज़मीन पर तड़प उठे।

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प्रशासन अभी बचाव कार्य शुरू ही कर पाया था कि खबर आई—गेटवे ऑफ इंडिया पर भी विस्फोट हुआ है। वही तरीका, वही हथियार, वही आतंक। वहाँ भी दर्जनों लोग लहूलुहान होकर गिरे पड़े थे। फर्क बस इतना था कि उस टैक्सी ड्राइवर की जान बच गई, जो गाड़ी से बाहर निकलकर टहलने लगा था। उसका बयान ही वह धागा बना, जिसने इस खूनी साजिश के गुनहगारों तक पुलिस को पहुँचाया।

जल्द ही परत दर परत सच खुलने लगा। हनीफ, उसकी पत्नी फहमीदा, और अशरत अंसारी—तीनों का नाम सामने आया। वे अकेले नहीं थे; उनके पीछे था पाकिस्तान से संचालित लश्कर-ए-तोयबा का जाल। एक-एक कर आरोपी गिरफ्तार हुए और अदालत के कठघरे तक पहुँचे।

न्याय की प्रक्रिया लंबी रही। 2009 में सजा-ए-मौत का ऐलान हुआ, 2012 में हाईकोर्ट ने इसे बरकरार रखा। अपीलें चलीं, तारीखें बढ़ती गईं, और देश ने इंतजार किया कि इस पाप का उचित दंड मिले। लेकिन नियति ने अपना खेल खेला—मुख्य आरोपी हनीफ सईद की 2019 में बीमारी से मौत हो गई।

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यह घटना केवल आँकड़ों का खेल नहीं थी—54 लोगों की मौत और सैकड़ों घायल। यह उन परिवारों की त्रासदी थी, जिन्होंने एक ही क्षण में अपने प्रियजनों को खो दिया। यह उस शहर की पीड़ा थी, जो अपनी चमक-दमक के बीच अचानक खून और धुएँ में डूब गया।

इतिहास ने उस दिन हमें एक बार फिर सचेत किया कि स्वतंत्रता और शांति केवल प्राप्त कर लेने भर से सुरक्षित नहीं रहतीं, उन्हें हर पल बचाना और संजोना पड़ता है। 25 अगस्त का ब्लास्ट इस बात की जीवित स्मृति है कि अतीत की असावधानी हमें हमेशा याद दिलाती है—भविष्य की सुरक्षा के लिए सतर्क रहना ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।