शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने एक और कवायद
हर तीन महीने में होगा हर कक्षा और हर विषय का शैक्षणिक ऑडिट
रायपुर, 05 जुलाई 2014/ राज्य सरकार ने शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए स्कूलों के निरीक्षण की प्रणाली को और भी अधिक मजबूत और सुव्यवस्थित बनाने की दिशा में प्रक्रिया शुरू कर दी है। लगभग 38 हजार प्राथमिक स्कूल और 16 हजार से ज्यादा मिडिल स्कूल इस निरीक्षण प्रणाली के दायरे में आएंगे। स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने आज यहां बताया कि इसके लिए हर विकासखंड में शिक्षकों के बीच से वरिष्ठता के आधार पर संकुल शैक्षिक समन्वयक, ब्लॉक स्रोत केन्द्र समन्वयक और ब्लॉक स्रोत व्यक्तियों का चयन किया जाएगा। निरीक्षण के लिए राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एस.सी.ई.आर.टी.) द्वारा स्कूल ऑडिट का प्रपत्र तैयार किया जा रहा है, जिसमें प्रत्येक कक्षा और प्रत्येक विषय का हर तीन महीने के भीतर निरीक्षण होगा। संकुल समन्वयक द्वारा सरपंच अथवा उप सरपंच और शाला प्रबंध समिति के दो सदस्यों के सामने स्कूल का शैक्षणिक ऑडिट किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में प्रदेश में यह वर्ष शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि तत्कालीन अविभाजित मध्यप्रदेश के समय वर्ष 1994-95 से छत्तीसगढ़ में भी सहायक जिला शाला निरीक्षकों की व्यवस्था समाप्त हो गयी है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए स्कूलों की एक सक्षम और सशक्त निरीक्षण प्रणाली बहुत जरूरी है। इसे हम सख्ती के साथ लागू करने जा रहे हैं। डॉ. सिंह के निर्देशों के अनुरूप अब सर्वशिक्षा अभियान के तहत राज्य में विकासखंड स्त्रोत समन्वयकों और संकुल समन्वयकों को भी निरीक्षण की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। राज्य में इस समय सरकारी स्कूलों और अनुदान प्राप्त तथा गैर अनुदान प्राप्त स्कूलों, मदरसों, स्थानीय निकायों के स्कूलों और जनभागीदारी स्कूलों को मिलाकर 37 हजार 755 प्राथमिक और 16 हजार 607 पूर्व माध्यमिक (मिडिल) स्कूल संचालित हो रहे हैं। ये सभी स्कूल निरीक्षण प्रणाली के दायरे में आएंगे। इन स्कूलों में कक्षा पहली से आठवीं तक बच्चों की शिक्षा की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए राज्य सरकार ने गुणवत्ता उन्नयन अभियान चलाने का निर्णय लिया है। इस अभियान में निरीक्षण प्रणाली को मजबूत बनाने पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है।
निरीक्षण प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए इनमें से प्रत्येक कक्षा में बच्चों का तिमाही, अर्द्धवार्षिक और वार्षिक मूल्यांकन सुनिश्चित किया जा रहा है। इसके लिए प्रत्येक कक्षा में माह सितम्बर, दिसम्बर और मार्च तक कौन-कौन से पाठयक्रम पूर्ण होने चाहिए, यह भी तय कर दिया गया है। राज्य सरकार का यह मानना है कि कलेक्टर से लेकर स्कूल के शिक्षकों तक प्रत्येक अधिकारी और शिक्षक को यह जानकारी होनी चाहिए कि कक्षा तीसरी, पांचवी और आठवीं में बच्चों ने हर तीन महीने, छह महीने और सत्र के अंत तक कितना ज्ञान प्राप्त किया है और कितनी दक्षता हासिल की है। अधिकारियों ने बताया कि इस संबंध में स्कूल शिक्षा विभाग ने यहां मंत्रालय से प्रदेश के सभी जिला कलेक्टरों (मिशन संचालक, राजीव गांधी शिक्षा मिशन) समस्त जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों, जिला शिक्षा अधिकारियों और आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्तों को परिपत्र जारी किया है। परिपत्र में राज्य शासन की मंशा को स्पष्ट करते हुए स्कूलों के निरीक्षण के लिए बिन्दुवार दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इसमें कहा गया है कि हर जिले में कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित जिला शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन समिति द्वारा संकुल शैक्षिक समन्वयकों, विकासखंड स्त्रोत केन्द्र समन्वयकों और विकासखंड स्त्रोत व्यक्तियों का चयन किया जाएगा। प्रत्येक विकासखंड में संकुल शैक्षिक समन्वयक (सी.ए.सी.) के पद पर पूर्व माध्यमिक शालाओं के प्रशिक्षित पांच वरिष्ठतम स्नातक शिक्षकों में एक शिक्षक का चयन किया जाएगा, जो कम्प्यूटर साक्षर भी होगा। प्रत्येक विकासखंड में कुल छह विकासखंड स्रोत व्यक्तियों (बी.आर.पी.) के पद उपलब्ध हैं। इनमें से वरिष्ठतम बी.आर.पी. विकासखंड स्रोत केन्द्र समन्वय के रूप में काम करता है। इन पदों पर विकासखंड के छह वरिष्ठतम प्रधान अध्यापकों का चयन किया जाएगा। उनके चयन में यह भी ध्यान रखना होगा कि उन्हें कम्प्यूटर की प्रारंभिक जानकारी हो और शिक्षक प्रशिक्षण अथवा स्कूली शिक्षा से संबंधित विभिन्न प्रशिक्षण देने में भी वह सक्षम हो। इन पदों पर चयनित होने वाले व्यक्ति प्रशासनिक और शैक्षणिक, दोनों कार्यों के लिए उत्तरदायी होंगे। चयन केवल वरिष्ठता एवं योग्यता के आधार पर किया जाएगा। संकुल शैक्षिक समन्वयक अपने संकुल के स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता का लगातार निरीक्षण करेंगे और स्कूलों की त्रैमासिक आडिट के लिए भी जिम्मेदार होंगे। इसके अलावा वे अपने विकासखंड के ब्लाक स्रोत समन्वयकों (बी.आर.सी.सी.) और ब्लाक स्रोत व्यक्तियों (बी.आर.पी.) के बीच कार्य विभाजन कर स्कूलों के निरीक्षण, शैक्षणिक गुणवत्ता, स्कूल आडिट, शाला प्रबंध समिति और ग्राम पंचायत से सतत सम्पर्क का दायित्व सौपेंगे। संकुल शैक्षिक समन्वयक प्रशिक्षण कार्य भी यथावत करते रहेंगे।
परिपत्र में कहा गया है कि निरीक्षण प्रणाली पर जिला शिक्षा अधिकारी लगातार नियंत्रण और निगरानी रखेंगे। परिपत्र में यह भी कहा गया है कि ग्राम पंचायत द्वारा वेतन पत्रक पर हस्ताक्षर करने के बाद विकासखंड स्रोत केन्द्र समन्वयक (बी.आर.सी.सी.) द्वारा अपने हस्ताक्षर से यह पत्रक विकासखंड शिक्षा अधिकारी को वेतन आहरण के लिए अग्रेषित किया जाएगा। परिपत्र में संकुल समन्वयकों का चयन संबंधित संकुल में पदस्थ शिक्षकों में से और बी.आर.पी. का चयन विकासखंड में पदस्थ शिक्षकों में से करने के निर्देश दिए गए हैं। इसमें कहा गया है कि शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण के बाद इन पदों के लिए चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया इस महीने की 20 तारीख तक पूर्ण कर ली जाए। स्कूल शिक्षा विभाग के एक अन्य प्रतिवेदन के अनुसार स्कूलों में अच्छे परिणाम देने वाले शिक्षकों को तहसील और जिला स्तर पर सम्मानित किया जाएगा, जबकि अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने पर संबंधित शिक्षकों को नियमानुसार दण्डित भी किया जा सकेगा। स्कूल ऑडिट की रिपोर्ट के आधार पर स्कूलों का मूल्यांकन होगा और यह रिपोर्ट ग्राम सभा में प्रधान अध्यापक द्वारा आम जनता को पढ़कर सुनायी जाएगी। इस रिपोर्ट के आधार पर टीप बनाकर विकासखण्ड स्त्रोत समन्वयक द्वारा जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाईट) को भेजा जाएगा और वहां से कलेक्टर की अध्यक्षता वाली समिति के सामने यह रिपोर्ट रखी जाएगी। इसके आधार पर जिला स्तर पर सुधारात्मक और दण्डात्मक दोनों ही तरह के कदम उठाए जा सकेंगे।