शिक्षकों रास नहीं आ रहा स्कूलों का समय परिवर्तन
स्कूलों के समय परिवर्तन से शैक्षिक गुणवत्ता का क्या संबंध
सरकार द्वारा जितने प्रयोग शिक्षा विभाग में किए जाते हैं उतने किसी भी अन्य विभाग में नहीं किए जाते होंगे। इस बार जिस नए प्रयोग की तैयारी सुर्खियों में है वह है शाला लगने के समय में परिवर्तन। इसके तहत सभी सरकारी स्कूलों को प्रातः 9.00 बजे से दोपहर 3.00 बजे तक लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं। दो पालियों में लगने वाले स्कूलों के लिए प्रथम पाली का समय प्रातः 7.00 बजे से दोपहर 12.00 बजे और द्वितीय पाली का समय दोपहर 12.15 बजे से शाम 5.15 बजे तक तय किया गया है। जिसमें यह प्रयोग भी शामिल है कि प्रथम पाली में उच्च कक्षाओं की शाला लगेगी और द्वितीय पाली में निम्न कक्षाओं की। क्योंकि अभी तक होता यह था कि निम्न कक्षाएं प्रथम पाली में और उच्च कक्षाएं द्वितीय पाली में लगाई जाती थी।
ऐसी तब्दीली का औचित्य क्या है इसे स्पष्ट करने वाला अभी तक कोई नहीं दिखा है। इतना ही पता चल पाया कि शिक्षा विभाग द्वारा सत्र 2014-15 को शिक्षा गुणवत्ता वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। लेकिन इतना तो अवश्य स्पष्ट होना चाहिए कि इस समय परिवर्तन से शिक्षा की गुणवत्ता का क्या संबंध है। अखबारों में भी इस आशय के समाचार आए दिन छप रहे हैं पर किसी भी अखबार ने शालाओं के समय परिवर्तन के औचित्य की शिनाख्त करने की कोशिश अब तक नहीं की है न ही शासन द्वारा जन हित में ऐसा कोई वक्तव्य अखबारों में जारी किया गया है जिससे आम जनता को इस समय परिवर्तन का औचित्य समझ में आता।
पाली वाले मिडिल और हाई स्कूल का समय स्पष्ट नहीं
शासन द्वारा जारी निर्देश में पाली में लगने वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शाला लगाने का समय निर्धारित किया गया है लेकिन ऐसी शाला जहां मिडिल और हाई स्कूल पाली में लगती है उसका समय निर्धारण स्पष्ट नहीं किया गया है। वहां कौन सी शाला पहली पाली में लगेगी और कौन सी दूसरी पाली में इसे लेकर संस्था प्रमुख ही भ्रमित हैं। इसलिए कहीं मिडिल स्कूल सुबह की पाली में लगाई जा रही है तो कहीं हाई स्कूल। इसलिए शाला समय में एकरूपता लाने की शासन की योजना की पोल अभी से खुल गई है।
वैसे भी सरकारी स्कूल आजकल गरीबी रेखा का स्कूल बन गया है। इनमें ऐसे परिवारों के बच्चे ही पढ़ते है जिनके पालक गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करते हैं। इसके लिए सरकार सात बजे स्कूल खोले या बारह बजे इससे उनको कोई मतलब नहीं है। जो सरकार के इस निर्णय पर मीन-मेख निकालते उनके बच्चे तो सरकारी स्कूलों में पढ़ते ही नहीं।
दिनेश चैहान,
छत्तीसगढ़ी ठीहा, नवापारा- राजिम,
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