लोहे की भैंस-नया अविष्कार
लोहे का पाईप, चद्दर, एंगल, गिरारी, पुल्ली, सफ्टिंग, नट-बोल्ट, स्क्रू इकट्ठे रहा हूँ, अब मैंने जो माडल कागज पे खींचा है उसे मूर्त रूप देने के लिए जरूरत है एक वेल्डिंग मशीन की, जो इन सबको जोड़ दे।एक नया अविष्कार हो जाये, इस मानव जगत के लिए. मैं भी कुछ इस संसार को देना चाहता हूँ.।वेल्डिंग मशीन के लिए दौड़ कर पड़ोसी जागेश्वर के पास जाता हूँ-
“जरा दो घंटे के लिए तेरी वेल्डिंग मशीन दे दे यार,”
“क्या करोगे महाराज आज वेल्डिंग मशीन का?”-जागेश्वर कहता है.
“कुछ नही थोडा पाईप एंगल वेल्डिंग करना है ।”
वेल्डिंग मशीन घर लेकर आ जाता हूँ और मनोयोग से अपने काम में लग जाता हूँ , मेरी मशीन तैयार हो जाती है ,हो जाता है तैयार मेरा नया अविष्कार, “दूध देने वाली मशीन”,
पहले हमारे घर में गाय-भैंसों से कोठा भरा रहता था, उनकी सेवा चाकरी के लिए 5 नौकर, जो दाना-चारा पानी से लेकर सारा काम करते थे, हमें मिलता था शुद्ध दूध, दही, घी, छाछ, और उस समय गरम-गरम गुलाबी मलाई चुरा कर खाने का तो क्या आनंद था. दोपहर में जब सब आराम करते थे तो मैं चुपके से निकल कर मिटटी की हांडी का ढक्कन खोल कर एक झटके में ही पूरी मलाई साफ कर जाता था. सबसे अधिक दूध-घी मेरे ही हिस्से में आता था.
अब ये सब एक गुजरे जमाने की बातें हो गयी, एक दिन फिर भैंस लेने की मन में आई, मैंने माँ को राजी किया, वो तैयार हो गई.लेकिन छोटे भाई ऐसा गणित समझाया कि पूरी योजना फेल हो गई. वो हिसाब लगा कर बोला,
“माँ देख ले हिसाब, एक भैंस खरीद कर उसे खिलाने पिलाने के बाद जो दूध हमें मिलेगा, उसमे हमें घाटा ही है और उसे पालने का सिरदर्द अलग से, इससे सस्ता तो “मोल” का दूध है और कोई समस्या भी नहीं है।”
इतने से ही मेरी योजना फेल हो गई. मैंने सोचा कि इस समस्या का हल अब मशीन से ही करना है ।कम से कम बच्चों को घी – दूध मिल जायेगा,इसलिए मैंने इस मशीन का अविष्कार किया। लोहे की मशीन, बिजली से चलने वाली, बस एक तरफ से चारा डालो, दूसरी तरफ से दूध निकालो, “नो टेंशन”, अब मशीन बन गई. उसे मैंने चालू किया,चारा डाला तो तो दूध निकलने लगा, मोगेम्बो खुश हुआ. एक नया अविष्कार “लोहे की भैंस” बटन दबावों, चारा डालो, दूध निकालो, अचानक देखा कि दूध के साथ-साथ उसी पाईप से गोबर भी निकलने लगा तब मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ.
“अरे! मैं तो एक गोबर निकलने का कनेक्शन बनाना ही भूल गया, गोबर को तो अलग रस्ते से निकालना पड़ेगा. नहीं तो दूध वाले रास्ते से ही आएगा, दूध का सत्यानाश हो जायेगा. नया अविष्कार फेल होने की कगार पर था. मै सर पर हाथ रख कर सोच रहा था कि क्या किया जाये? समस्या का हल कैसे निकाला जाये?
तभी महाराजिन की धमकी भरी आवाज सुनाई दी-
“अरे! पांच बज गए हैं, क्या रात तक सोते ही रहोगे?”
बस हो गया सत्यानाश, योजना पर पानी फिर गया, मेरे नए अविष्कार की भ्रूण हत्या हो गयी. मैंने आँख मलते हुए कहा –
“प्रिये! अगर थोड़ी देर सबर कर लेती तो सात पीढ़ी बैठे-बैठे रायल्टी खाती. एक नई स्वेत क्रांति का जन्म होता। सारा संसार दूध से मालामाल हो जाता। देखो कितना नुकसान हो गया मेरा? जानम समझा करो, सोते से मत जगाया करो?