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लखनपुर का प्राचीन देव तालाब नष्ट होने की कगार पर

लखनपुर। प्राचीन काल में धर्मार्थ या किसी मान्यता के निमित्त कूप, वापी, तड़ाग, पुष्करी आदि का निर्माण कराया जाता था। ये जल के साधन प्राणी को अपने जल से तृप्त कर उसका जीवन बचाने के काम आते थे। सनातन काल से चली आ रही परम्परा के अनुसार किसी को जल उपलब्ध कराना पूण्य का काम समझा जाता था। तत्कालीन राजाओं ने अपनी प्रजा के हितों के निमित्त तालाबों का निर्माण कराया और प्रजा का स्नेह प्राप्त किया। ऐसा ही एक तालाब (देवतालाब) “गुप्तकाशी” लखनपुर में है जो संरक्षण के अभाव में अपनी पहचान एवं अस्तित्व खोता जा रहा है।

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मान्यता है कि बनारस निवासी राजा लाखन सिंह के कोई संतान नहीं थी। उन्होने पुत्र कामना हेतू 360 तालाब बनवाने का निर्णय लिआ तथा संकल्प लिया कि वे प्रतिदिन एक तालाब का निर्माण करके ही जल ग्रहण करेगें। लखनपुर में उन्होने मंदिर बनवा कर, उसमें पूजा अर्चना कर पहले तालाब (देव तालाब) का निर्माण करवाया। 360 तालाब खुदवाने के बाद भी वे नि:संतान ही रह गए। इसके बाद उन्होने अपनी धन राशि को शिवमंदिर के समीप बावली में दफ़्न करवा दिया और बनारस लौट गए। तब से इस तालाब में विशेष पर्वों पर पूजा अर्चना होती है।

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किंवदन्ती है कि प्राचीन काल में ग्राम बैगा प्रतिदिन हाथ में तलवार धारण कर तालाब के गर्भ में स्थित मंदिर में देवी-देवताओं की पूजा करने जाता था। तालाब के किनारे पर जाने पर मंदिर में प्रवेश करने के लिए तालाब के पानी में स्वमेव रास्ता बन जाता था और बैगा पूजा करके लौट आता था। एक दिन बैगा पूजा के उपरांत अपनी तलवार मंदिर में भूलवश छोड़ आया। याद आने पर जब वह पुन: तलवार लेने तालाब में आया तो वहाँ बैठी देवी नाराज हो गई और उसने बैगा को तालाब के मंदिर में हमेशा के लिए आना मना कर दिया। उस दिन के बाद तालाब में स्थापित देवी-देवताओं की पूजा परम्परा स्वरुप तालाब के किनारे मेड़ पर बने चबूतरे पर प्रतीक के तौर मांगलिक अवसरों पर अनवरत जारी है।

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लखनपुर के निवासी बताते हैं कि देव तालाब में देवताओं के निवास के कारण इसको प्रवित्र माना जाता था, शौच करने के उपरांत हाथ धोना तथा साबून लगाकर इस तालाब में स्नान करना पूर्णत: वर्जित था। इस तालाब का पानी पूर्व में इतना शुद्ध था कि ग्रामवासी उसका उपयोग पेयजल के रुप में करते थे। वर्तमान में तालाब का प्रदूषित होने के कारण इसकी शुद्धता पर ग्रहण लग चुका है। पेयजल के विषय में तो क्या कहा जाए, इसका पानी आम निस्तारी के योग्य भी नहीं रहा। संरक्षण के अभाव में इस तालाब की दुर्दशा हो रही है। अगर यही हाल रहा तो राजा लाखन सिंह का बनवाया प्राचीन धरोहर देव तालाब नष्ट हो जाएगा।

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त्रिपुरारी पाण्डेय

पत्रकार (लखनपुर -सरगुजा)