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राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह में सम्मानित हुए प्रदेश के 26 शिक्षक

रायपुर, 15 सितम्बर 2014/ राज्यपाल श्री बलरामजी दास टंडन ने शिक्षकों का आव्हान किया है कि वे अपने विद्यार्थियों में अच्छे संस्कार विकसित कर देशभक्ति की भावना भी जाग्रत करें। उन्होंने कहा कि बच्चे अपने  शिक्षकों से केवल अक्षर ज्ञान प्राप्त नहीं करते, बल्कि उनके जीवन को भी ध्यान से देखते हैं और उनकी मानसिकता पर उसका भी असर होता है। शिक्षकों को इसका भी ध्यान रखना चाहिए। उनका व्यक्तित्व ऐसा हो जिससे बच्चे प्रेरणा ले सकें। शिक्षक विद्या-धन के रूप में बच्चों को दुनिया का सबसे कीमती धन देते हैं, जिसकी न तो कोई चोरी कर सकता है और न ही उसे कोई छीन सकता है।
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राज्यपाल श्री टंडन आज यहां राजभवन में राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह 2014 के तहत छत्तीसगढ़ के 26 शिक्षकों को सम्मानित करने के बाद इस आशय के विचार व्यक्त किए। समारोह की अध्यक्षता मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने की। स्कूल शिक्षा और आदिम जाति विकास मंत्री श्री केदार कश्यप विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। राज्यपाल, मुख्यमंत्री और स्कूल शिक्षा मंत्री ने समारोह में सभी सम्मानित हुए शिक्षकों को बधाई और शुभकामनाएं दी। समारोह का आयोजन राष्ट्रीय शिक्षक कल्याण प्रतिष्ठान की छत्तीसगढ़ इकाई और प्रदेश सरकार के लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा किया गया। समारोह  में राज्यपाल ने 19 शिक्षकों को राज्य शिक्षक सम्मान के तहत शॉल, श्रीफल और प्रशस्ति पत्र से नवाजा। उन्होंने सात उन शिक्षकों को भी सम्मानित किया, जिन्हें इस वर्ष शिक्षक दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान प्रदान किया है।
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राज्यपाल श्री टंडन ने मुख्य अतिथि की आसंदी से समारोह को संबोधित करते हुए छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व निर्माण में शिक्षकों की सामाजिक भूमिका पर विशेष रूप से प्रकाश डाला। श्री टंडन ने कहा – भावी पीढ़ी को गढ़ने और उसे संस्कारवान नागरिक बनाने का सबसे महत्वपूर्ण दायित्व शिक्षकों पर है। दुनिया ने बहुत तरक्की कर  ली है। सूचना क्रांति पर आधारित इंटरनेट, फैक्स और मोबाइल फोन जैसे आधुनिक अनुसंधानों से आज की दुनिया एक कमरे में सिमट गई है। हर तरह की सूचना हम अपने कमरे की टेबल पर इन उपकरणों के जरिये पलभर में प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन विज्ञान के ऐसे नये-नये आविष्कार करने वाले बड़े से बड़े वैज्ञानिक को भी किसी न किसी शिक्षक ने ही तो पढ़ाया है। श्री टंडन ने कहा – इसमें कोई शक नहीं की माता-पिता अपने बच्चों को बहुत कुछ देते हैं। इसलिए माता-पिता के प्रति सिर झुकता है। मां-बाप बच्चों को धन-दौलत भी देते हैं। धन की चोरी हो सकती है। जमीन जायदाद, हीरे-जवाहरात आज अगर हमारे नाम पर है तो कल वह नहीं भी रह सकता, लेकिन शिक्षकों से प्राप्त ज्ञान रूपी धन सबसे उत्तम है, क्योंकि उसकी चोरी नहीं हो सकती। विद्या धन सबसे प्रधान है। उसे कोई हमसे छीन भी नहीं सकता।
श्री टंडन ने कहा – यह निश्चित है कि हर बच्चे को जीवन की पहली शिक्षा अपनी मां के दूध के साथ मिलती है, लेकिन समाज में कार्य करने की योग्यता और निपुणता की शिक्षा उसे अपने स्कूल में मिलती है। राज्यपाल ने कहा कि स्कूल भी वह स्थान है, जहां हर बच्चे के भावी जीवन की बुनियाद बनती है और इसमें भी प्राथमिक विद्यालय सबसे पहले आता है। उन्होंने शिक्षकों से कहा कि वे अपने विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिए अच्छी शिक्षा देकर उन्हें देश और दुनिया में श्रेष्ठ कार्य करने लायक बनाएं। शिक्षक न केवल बच्चों को सिखाते हैं, बल्कि स्वयं भी सीखते हैं।
अध्यक्षीय आसंदी से मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा – मुझे लगता है कि हमारे शिक्षक नई पीढ़ी को गढ़ने का कार्य जरूर करते हैं, लेकिन आज के समय में अध्यापन कार्य निश्चित रूप से काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है। रेडियो, टेलीविजन सहित इंटरनेट और वाट्सअप जैसे अत्याधुनिक संचार उपकरणों से ज्ञान-विज्ञान की जो नई-नई सूचनाएं समाज में पहुंच रही है, उनके प्रति बच्चों में भी जिज्ञासा बढ़ रही है।  बच्चा अब अपने शिक्षकों से हर सवाल का जवाब चाहता है, इसलिए ज्ञान-विज्ञान के इस नये दौर में शिक्षकों को हर दिन अपडेट रहने की जरूरत है, ताकि वे बच्चों के सवालों का सटीक जवाब दे सकें।  मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार छत्तीसगढ़ के लगभग 60 लाख बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए वचनबद्ध है। इसमें शिक्षकों की सबसे अहम जिम्मेदारी है। हम प्रदेश के बच्चों के लिए स्कूल भवन, छात्रावास भवन आदि तो बना सकते हैं, लेकिन उन्हें शिक्षा और ज्ञान का प्रकाश तो शिक्षक ही दे सकते हैं। डॉ. सिंह ने इस अवसर पर महान शिक्षक, दार्शनिक और देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन को भी याद किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्चों के प्रति माता-पिता के बाद शिक्षकों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। डॉ. रमन सिंह ने कहा – शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए राज्य सरकार यह वर्ष शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन वर्ष के रूप में मना रही है। हमने यह तय किया है कि अब कक्षा पहली से पांचवी तक और उसके बाद आठवीं तक बच्चों की तिमाही, अर्धवार्षिक और वार्षिक परीक्षा लेकर उनकी पढ़ाई का मूल्यांकन किया जाए। इसके साथ ही उनके मूल्यांकन का रिपोर्ट कार्ड उनके माता-पिता या अभिभावक को बताया जाए, ताकि बच्चे के परिवार को भी मालूम रहे कि स्कूल में शिक्षक उसे क्या पढ़ा रहे हैं और पढ़ाई में बच्चे का प्रदर्शन कैसा है। इसके लिए राज्य सरकार ने प्रत्येक विषय का मासिक पाठ्यक्रम भी तैयार किया है। मुख्यमंत्री ने कहा – प्रदेश के सुदूरवर्ती बलरामपुर-रामानुजगंज, बीजापुर और दंतेवाड़ा जैसे इलाकों में भी हमारे शिक्षक नई पीढ़ी के निर्माण का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। ऐसे इलाकों के मनरेगा के मजदूर परिवारों के विद्यार्थी भी जब इंजीनियरिंग और चिकित्सा शिक्षा की अखिल भारतीय प्रतियोगी परीक्षाओं में चयनित होकर आईआईटी और एनआईटी जैसे संस्थानों में प्रवेश लेते हैं, तो उनकी इस शानदार कामयाबी में शिक्षकों का भी योगदान होता है।
स्कूल शिक्षा और आदिम जाति विकास मंत्री श्री केदार कश्यप ने समारोह में कहा कि आज यहां पुरस्कृत और सम्मानित हो रहे शिक्षकों ने अपनी अलग तरीके की अध्यापन-शैली से शिक्षा के क्षेत्र में खास पहचान बनायी है। श्री कश्यप ने उम्मीद जतायी कि ये सम्मानित शिक्षक अपने स्कूलों के लिए आइकॉन साबित होंगे और अन्य शिक्षकों को भी उनसे प्रेरणा मिलेगी। श्री कश्यप ने शिक्षकों का आव्हान किया कि वे अध्यापन कार्य में आधुनिक समय के अनुरूप मल्टीमीडिया जैसी नई तकनीकों का भी इस्तेमाल करें। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए हर जरूरत को पूरा किया है। बच्चों को निःशुल्क पुस्तकें दी जा रही है। कम्प्यूटर और शाला भवनों की व्यवस्था की गई है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता का ध्यान शिक्षकों को रखना होगा। स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव श्री सुब्रत साहू ने स्वागत भाषण दिया। आभार प्रदर्शन लोक शिक्षण संचालक श्री मयंक वरवड़े ने किया। राज्यपाल के प्रमुख सचिव श्री सुनिल कुजूर सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारी और प्रबुद्ध नागरिक समारोह में उपस्थित थे।

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