मोदी सरकार के तीन साल
आज मई की सोलह तारीख है, तीन साल हो गये सरकार को। जरा पीछे मुड़कर देखा जाए, याने कि सिंहावलोकन कर लिया जाए। कहने वाले तो कहते हैं कि अभी मुड़कर क्या देखना? 2019 और उसके बाद 2024 में देखना। नहीं भाई लगे हाथ होमवर्क करते चलें तो आगे चलकर परेशानी नहीं होगी कम से कम सरकार के कामों पर भी एक नजर डालते चलें।
आम नागरिक को दो-चार चीजों से ही साबका पड़ता है, पहला उसकी रसोई का खर्च। रसोई के खर्च में कोई कमी नहीं आई है, खर्च बढ़ा ही है। मतलब मंहगाई कम नहीं हुई। फैक्टरीजनित उत्पादों के मुल्य भले ही कम हुए हों पर खेतजनित उत्पादों के मुल्य बढ़े ही हैं। रोजगार के अवसर पैदा होने की बजाय कम ही हुए हैं, नोटबंदी को लेकर भले ही सफलता के दावे किए गये, पर मुझे भ्रम ही लगता है। सबसे अधिक लात अगवाड़े और पिछवाड़े पर मध्यम वर्ग ने ही खाई है पर राष्ट्रवाद के इंजेक्शन से दर्द कम हुआ। हाँ इस कदम से चोरों में खलबली तो है।
दूसरा शैक्षणिक संस्थानों की फीस में बढ़ोतरी हुई, निजी संस्थानों के कहने ही क्या हैं, वे तो हर साल बढ़ोतरी करते हैं। सरकारी शैक्षणिक संस्थानों की दशा में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। जबकि इन्हें निजी शैक्षणिक संस्थानों के समतुल्य खड़ा करना था। जिससे मध्यम वर्ग भी सरकारी स्कूलों के प्रति विश्वास जगता और वह भी इधर का रुख करता। शिक्षा माफिया पर लगाम लगाने की आवश्यकता है।
तीसरा सरकारी संस्थानों में सुविधा शुल्क में कोई कमी नहीं आई है। वह उसी गति से बदस्तूर जारी है, आज भी बिना पैसे दिए कोई काम नहीं होते। पहले लाल नोट चलता था अब गुलाबी वाला चलने लगा। मतलब इधर भी मंहगाई बढ़ गयी।
चौथा रेल विभाग क्या काम कर रहा है पता ही नहीं चलता। सिर्फ रेल पटरियां बिछाने और जन सुविधाओं के नाम पर भावनात्मक दोहन कर यात्री किराया बढ़ाने से काम नहीं चलने वाला। यात्रियों को सुविधाएँ भी उपलब्ध करानी होंगी। आम यात्री की जेब पर सीधे 40% का अतिरिक्त भारतीय पड़ रहा है। उस पर टिकिट पर बिना मांगी सब्सिडी जताकर बेइज्जती की जा रही है। सुविधाओं के नाम पर इल्ले। गरमी के मौसम में ट्रेन विलंब से चल रही हैं ऐसा लग रहा है कि इस विभाग पर मंत्री का कोई नियंत्रण नहीं है।
पांचवां रोजगार के साधन नहीं बढ़े। आई टी सेक्टर छंटनी कर रहा है, नई भर्तियां नहीं हो रही। केन्द्र हो या राज्य दोनों के विभाग अमले की कमी से जूझ रहे हैं। भर्ती न होने के कारण बेरोजगारों की संख्या बढ़ते जा रही है। इसलिए सरकारी भर्तियां जल्द ही खोलनी होगी और निजी क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे।
सरकार की सबसे बड़ी #सफलता है कि उस पर अभी तक #भ्रष्टाचार के कोई #आरोप #नहीं #लग #पाये वरना विपक्ष ताक में बैठा है कि कहीं से कोई छोटा सा छिद्र दिखाई दे और उसमें घुस जाए। यह एक बड़ी उपलब्धि है।
मनरेगा और गैस सिलेंडर आबंटन ने ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं का समर्थन जुटा लिया है। वित्त मंत्री कह रहे है कि हमारी अर्थ व्यवस्था विश्व में सबसे अधिक तेजी 7.5 की दर से बढ रही है। हमको भैया ये आंकड़े समझ नहीं आते। जब रसोई एवं दैनिक आवश्यकता का खर्च कम होगा तब पता चलेगा कि विकास हो रहा है। सरकार कमाई कर मंहगाई पर लगाम लगा रही है।
देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है विशेषकर कश्मीर से आमजन भावनात्मक रुप से जुड़ा है। सीमा पर जब भी हमला होता है उसके कान खड़े हो जाते हैं और सुनने का प्रयास करता है कि जवाबी कारवाई क्या हो रही है। इस विवाद को हल करने में वही ढाक के तीन पता दिखाई देते हैं। कुछ करिए जनाब, सहमति बनाकर 370 ही खत्म करिए। वैसे इन तीन बरसों में सेना का गौरव बढ़ा है तथा रक्षा संसाधनों की बढ़ोतरी पर भी जोर दिखाई दे रहा है।
आधारकार्ड को अनिवार्य करने से आम नागरिक भी लालफीताशाही के चंगुल में फंस गया है जिससे उसकी निजता एवं स्वतंत्रता का हनन हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि जंजीरों में जकड़ लिया गया है। जो सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं उन्हें जोड़ा जा सकता है पर सभी के लिए अनिवार्य करना समझ नहीं आता। जब अनिवार्य किया जा रहा है तो इसे “नागरिक पहचान पत्र” के रुप में मान्यता भी दी जानी चाहिए।
चलते चलते वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें तो मजबूत सरकार की वजह से विश्व में भारत की धमक बढ़ी है। सरकार का झुकाव अमेरिका की तरफ दिखाई दे रहा है। कई कहते हैं कि पुराने मित्र रुस को रुसा दिया जा रहा है। यह भी याद रखना चाहिए कि चीन से युद्ध के समय रुस ने हथियार देने से मना कर दिया था। ऐसी स्थिति में तिगुनी कीमत में ही सही अमेरिका ने हथियार दिए थे। पर अमेरिका पुंजीवादी है, वह फायदे के संबंध देखता है। साथ ही ईरान, ईराक, सऊदी इजराइल आदि से संबंध सुधार कर बैलेंस बनाने का ठीक काम किया है। मने विदेश नीति के मामले में सरकार का रिपोर्ट कार्ड ठीक ही है।
आम नागरिक को दो-चार चीजों से ही साबका पड़ता है, पहला उसकी रसोई का खर्च। रसोई के खर्च में कोई कमी नहीं आई है, खर्च बढ़ा ही है। मतलब मंहगाई कम नहीं हुई। फैक्टरीजनित उत्पादों के मुल्य भले ही कम हुए हों पर खेतजनित उत्पादों के मुल्य बढ़े ही हैं। रोजगार के अवसर पैदा होने की बजाय कम ही हुए हैं, नोटबंदी को लेकर भले ही सफलता के दावे किए गये, पर मुझे भ्रम ही लगता है। सबसे अधिक लात अगवाड़े और पिछवाड़े पर मध्यम वर्ग ने ही खाई है पर राष्ट्रवाद के इंजेक्शन से दर्द कम हुआ। हाँ इस कदम से चोरों में खलबली तो है।
दूसरा शैक्षणिक संस्थानों की फीस में बढ़ोतरी हुई, निजी संस्थानों के कहने ही क्या हैं, वे तो हर साल बढ़ोतरी करते हैं। सरकारी शैक्षणिक संस्थानों की दशा में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। जबकि इन्हें निजी शैक्षणिक संस्थानों के समतुल्य खड़ा करना था। जिससे मध्यम वर्ग भी सरकारी स्कूलों के प्रति विश्वास जगता और वह भी इधर का रुख करता। शिक्षा माफिया पर लगाम लगाने की आवश्यकता है।
तीसरा सरकारी संस्थानों में सुविधा शुल्क में कोई कमी नहीं आई है। वह उसी गति से बदस्तूर जारी है, आज भी बिना पैसे दिए कोई काम नहीं होते। पहले लाल नोट चलता था अब गुलाबी वाला चलने लगा। मतलब इधर भी मंहगाई बढ़ गयी।
चौथा रेल विभाग क्या काम कर रहा है पता ही नहीं चलता। सिर्फ रेल पटरियां बिछाने और जन सुविधाओं के नाम पर भावनात्मक दोहन कर यात्री किराया बढ़ाने से काम नहीं चलने वाला। यात्रियों को सुविधाएँ भी उपलब्ध करानी होंगी। आम यात्री की जेब पर सीधे 40% का अतिरिक्त भारतीय पड़ रहा है। उस पर टिकिट पर बिना मांगी सब्सिडी जताकर बेइज्जती की जा रही है। सुविधाओं के नाम पर इल्ले। गरमी के मौसम में ट्रेन विलंब से चल रही हैं ऐसा लग रहा है कि इस विभाग पर मंत्री का कोई नियंत्रण नहीं है।
पांचवां रोजगार के साधन नहीं बढ़े। आई टी सेक्टर छंटनी कर रहा है, नई भर्तियां नहीं हो रही। केन्द्र हो या राज्य दोनों के विभाग अमले की कमी से जूझ रहे हैं। भर्ती न होने के कारण बेरोजगारों की संख्या बढ़ते जा रही है। इसलिए सरकारी भर्तियां जल्द ही खोलनी होगी और निजी क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे।
सरकार की सबसे बड़ी #सफलता है कि उस पर अभी तक #भ्रष्टाचार के कोई #आरोप #नहीं #लग #पाये वरना विपक्ष ताक में बैठा है कि कहीं से कोई छोटा सा छिद्र दिखाई दे और उसमें घुस जाए। यह एक बड़ी उपलब्धि है।
मनरेगा और गैस सिलेंडर आबंटन ने ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं का समर्थन जुटा लिया है। वित्त मंत्री कह रहे है कि हमारी अर्थ व्यवस्था विश्व में सबसे अधिक तेजी 7.5 की दर से बढ रही है। हमको भैया ये आंकड़े समझ नहीं आते। जब रसोई एवं दैनिक आवश्यकता का खर्च कम होगा तब पता चलेगा कि विकास हो रहा है। सरकार कमाई कर मंहगाई पर लगाम लगा रही है।
देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है विशेषकर कश्मीर से आमजन भावनात्मक रुप से जुड़ा है। सीमा पर जब भी हमला होता है उसके कान खड़े हो जाते हैं और सुनने का प्रयास करता है कि जवाबी कारवाई क्या हो रही है। इस विवाद को हल करने में वही ढाक के तीन पता दिखाई देते हैं। कुछ करिए जनाब, सहमति बनाकर 370 ही खत्म करिए। वैसे इन तीन बरसों में सेना का गौरव बढ़ा है तथा रक्षा संसाधनों की बढ़ोतरी पर भी जोर दिखाई दे रहा है।
आधारकार्ड को अनिवार्य करने से आम नागरिक भी लालफीताशाही के चंगुल में फंस गया है जिससे उसकी निजता एवं स्वतंत्रता का हनन हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि जंजीरों में जकड़ लिया गया है। जो सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं उन्हें जोड़ा जा सकता है पर सभी के लिए अनिवार्य करना समझ नहीं आता। जब अनिवार्य किया जा रहा है तो इसे “नागरिक पहचान पत्र” के रुप में मान्यता भी दी जानी चाहिए।
चलते चलते वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालें तो मजबूत सरकार की वजह से विश्व में भारत की धमक बढ़ी है। सरकार का झुकाव अमेरिका की तरफ दिखाई दे रहा है। कई कहते हैं कि पुराने मित्र रुस को रुसा दिया जा रहा है। यह भी याद रखना चाहिए कि चीन से युद्ध के समय रुस ने हथियार देने से मना कर दिया था। ऐसी स्थिति में तिगुनी कीमत में ही सही अमेरिका ने हथियार दिए थे। पर अमेरिका पुंजीवादी है, वह फायदे के संबंध देखता है। साथ ही ईरान, ईराक, सऊदी इजराइल आदि से संबंध सुधार कर बैलेंस बनाने का ठीक काम किया है। मने विदेश नीति के मामले में सरकार का रिपोर्ट कार्ड ठीक ही है।