महेशपुर की नृसिंह प्रतिमाएं :डॉ कामता प्रसाद वर्मा
ग्राम महेशपुर, बिलासपुर-अम्बिकापुर सड़क मार्ग पर उदयपुर के आगे 2 कि.मी. दूरी पर स्थित ग्राम जजगी से दायें तरफ कच्चे सड़क मार्ग पर लगभग 5 कि.मी. दूरी से बायें तरफ लगभग 1 कि.मी. अंदर स्थित हैं। यहां पर अनेको प्राचीन शिवलिंग तथा मंदिरों के ध्वंशावशेष होने से इसे महेशपुर की संज्ञा दी गई प्रतीत होती हैं। उदयपुर स्थित प्राचीन रामगढ़ की पहाड़ी में स्थित सीता बेंगा तथा जोगी मारा की विश्व प्रसिद्ध पुरातत्वीय स्थल से लगभग 8 कि.मी. दूरी पर महेशपुर स्थित है। ग्राम महेशपुर स्थित प्राचीन टीले रेंड़ नदी के किनारे स्थित हैं। झारखण्ड झंकार नामक पुस्तक के पृष्ठ 2 में उल्लेख है कि महेशपुर में 12 मंदिरों के अवशेष हैं जिनमें से एक ईंट का तथा शेष पत्थर के थे । भारतीय गजेटियर सरगुजा1 के अनुसार रामगढ. के पूर्व दिशा में लगभग 9.6 कि. मी. दूरी पर सिरिधी के निकट और कोहर के तट पर 12 मंदिरों के भग्नावशेषों को 1864 में मि. डेलगन ने उत्खनन कार्य किया था । संभवतः यह स्थल वर्तमान महेशपुर ग्राम हो सकता है ।
राम महेशपुर सरगुजा जिले की उदयपुर तहसील के अंतर्गत दक्षिणी सीमा में उदयपुर से अम्बिकापुर मार्ग पर चार कि. मी. दूरी पर स्थित जजगी ग्राम से दायें तरफ पक्के सडक मार्ग पर 6 कि. मी. दूरी से आगे बायें तरफ मानपुर मार्ग पर 2 कि.मी. दूरी पर स्थित है । यह ग्राम 00 उत्तरी अक्षांस तथा 0000 दक्षिणी देशांश पर स्थित है .ग्राम के उत्तरी सीमांत में रेंड नदी के किनारे से बस्ती के मध्य प्राचीन प्रस्तर टीलों के अवशेष विद्यमान हैं । (रे. चि.-32) रेंड़ नदी का उद्गम सरगुजा जिले में मतरिंगा पहाड़ से हुआ है जो उत्तर दिश की तरफ बहकर महेशपुर के सन्निकट से आगे प्रवाहित होती है ।सृष्टि के नियम के अनुसार जब संसार पर किसी प्रकार का कष्ट आता है और पृथ्वी में अत्याचारों का प्रभाव बढ़ जाता है तब विश्वरूप सर्वात्मा संसार का हित करने के लिये अवतरित होकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करते हैं। वे लीला से अवतार धारण करते हैं और अपनी योगमाया से स्वछन्द लीला करते हैं तथा पृथ्वी का भार उतारने के लिये अनेक रूप धारण कर अन्त में इसका परित्याग कर देते हैं। 1 अवतारों के द्वारा वे प्रत्येक युग में धर्म की रक्षा करते हैं । अतः अवतार का मुख्य उद्देश्य है धर्म की रक्षा करना तथा अधर्म का विनाश। 2 यद्यपि अनेक देवों के अवतार पृथ्वी पर हुये हैं लेकिन उनमें विष्णु के अवतार सर्वप्रंमुख एवं सर्वप्रसिद्ध हैं। विष्णु के अवतार तीन प्रकार के कहे गये हैं -पूर्ण, आवेश तथा अंश । पूर्ण अवतार एक विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिये जीवन भर के लिये धारण किया जाता है, जैसे राम तथा कृष्ण अवतार। आवेश अवतार में जीवन के कुछ भाग में ही उद्देश्य की पूर्ति कर दी जाती है जैसे परशुराम । अंशावतार में भगवान का कुछ अंश मात्र अवतरित होता है।
विष्णु के अवतारों की संख्या यद्यपि ज्यादा है लेकिन अनेक विद्वानों ने कुल 10 अवतारों को ही मान्यता प्रदान की है जिन्हे उनके रूप के अनुसार 3 भागों में विभाजित किया जा सकता हैः-
1. पशु अवतार- मत्स्य, कूर्म, वराह 2. मानवीय अवतार- वामन , राम (दाशरथी), राम (भार्गव), कृष्ण -बलराम, बुद्ध, कल्कि तथा 3. मिश्रित अवतार-नृसिंह
ु ने ब्रह्मा से यह वरदान मांगा था कि यह किसी प्राणी से , आकाश, पृथ्वी आदि पर कहीं भी , किसी शस्त्र से ,दिन अथवा रात में न मारा जाय। इसी कारण इन्हे यह विचित्र रूप धारण करना पड़ा । महेशपुर से प्राप्त नृसिंह प्रतिमाओं का तुलनात्मक विवरण निम्नानुसार है- (1) नृसिंह:-यह प्रतिमा चतुर्भुजी है जिसके ऊपरी दायें हाथ में चक्र ,बायें ऊपरी
इनमें से नृसिंह अवतार का वर्णन यहां पर किया जा रहा है -हिरण्यकशिपु का वध करने तथा प्रहलाद की रक्षा करने के लिये विष्णु ने नृसिह अवतार लिया । हिरण्यकशिपु हाथ में शंख धारण किये हैं तथा दोनों निचले हाथों से हिरण्यकष्यप का पेट फाड़ते हुए प्रदर्शित किया गया है । प्रतिमा के पादपीठ में नीचे पुरूष प्रतिमा पीठ के बल लेटी हुई तथा बायें पार्श्व में एक देवी खड़ी हुई प्रदर्शित है । पादपीठ के दोनों पार्श्व में गज ब्याल का अंकन है । इस प्रतिमा का माप 66 x 78 x 33 सें. मी. है तथा काल 10 वीं शती ई. है ।
(2) नृसिंह:-इसका माप 53 x 75 x 23 सें. मी. है। इसकी संरचना पूर्व में अलिंद में निर्मित वराह प्रतिमा के सदृश्य है क्योंकि यह प्रतिमा भी एक अलिंद में निर्मित है जिसमें निचले भाग को छोड़कर तीन तरफ की पट्टी सादी है । निचले भाग में पुष्प अलंकरण है । नृसिंह चतुर्भुजी हैं जो ऊपरी दायें हाथ में चक्र धारण किये हैं तथा बायें ऊपरी हाथ में शंख धारण किये है। इसमें नृसिंह बायें निचले हाथ से हिरण्यकश्यप को पकड़े हैं तथा दायें निचले हाथ से उसका पेट फाड़ रहे हैं साथ ही दायें पैर से राक्षस को दबाये हुये प्रदर्शित हैं । अलिंद के दोनों तरफ द्विभंग मुद्रा में नायिकायें खड़ी हुई अंकित हैं । नायिकाओं के पीछे पाशर््व में गज व्याल तथा ऊपर नीचे मकरमुख का अंकन है । यह प्रतिमा दो खण्डों में टूटी है तथा मंदिर के जंघा भाग में स्थापित रही होगी । (छा.चि. क्र.53) (3) नृसिंह:-इसका माप 45 x 30 x 12 सें. मी. है। यह प्रतिमा भी निशान पखना नामक टीले के मंदिर क्र.1 से प्राप्त हुई है । नृसिंह उकड़ू बैठे हुये प्रदर्शित हैं जो अपनी दोनों जंघा में हिरण्याकश्यप को लिटाकर अपने निचले दोनों हाथ से पेट फाड़ते हुये दृष्टव्य हैं। नृसिंह के दोनों ऊपरी हाथ खण्डित हैं । नृसिंह का मुख विकराल , कानों में कुण्डल, गले में हार , हाथों में कंगन , आभूषण हैं। हिरण्यकश्यप का बांया हाथ नीचे की तरफ लटका हुआ भूस्पर्श कर रहा है। यह प्रतिमा भूरे बलुआ प्रस्तर से निर्मित है। (छा.चि. क्र.54)
(4) नृसिंह:- इसका माप 39 x 40 x 20 सें. मी. है। इस प्रतिमा का बांया हिस्सा खण्डित है तथा यह प्रतिमा भी पीले रंग के बलुआ प्रस्तर से निर्मित है । यह प्रतिमा भी किसी मंदिर का भाग है । नृसिंह चतुर्भुजी हैं जिसके ऊपरी दोनों हाथ खण्डित हैं तथा निचले दोनों हाथ से हिरण्यकश्यप का पेट फाड़ते हुये प्रदर्शित है। नृसिंह राक्षस को अपने बायें पैर की जंघा में लिटाये हैं तथा उसका कमर से निचला भाग लटका हुआ प्रदर्शित है । नृसिंह का मुख विकराल, गले में माला, हाथों में कंगन, बाजूबंद , कटिमेखला आभूषण हैं । नृसिंह का दांया तथा बांया पैर घुटने से खण्डित है । नृसिंह के दांये तरफ गज व्याल तथा नीचे तरफ एक सहायक का अंकन है । गज व्याल के ऊपरी भाग में मकरमुख का अंकन है। (छा.चि.
(5) खण्डित नृसिंह:- प्रतिमा का उपरी भाग खण्डित है। नृसिंह चतुर्भुजी हैं। जिसके उपरी दोनों हाथ खण्डित है। नृसिंह अपने दोनो हाथों से राक्षस का पेट फाड़ते हुए प्रदर्षित हैं तथा बांयें पैर से पिषाच को दबा ये हुये अंकित हैं । प्रतिमा के बायें तरफ एक पुरूष प्रतिमा बैठी हुई प्रदर्षित है। नृसिंह का गर्दन से उपरी भाग खण्डित है । इनके गले में हार , यज्ञोपवीत, तथा वनमाला धारण कि ये हुये हैं । प्रतिमा का काल 12वीं शताब्दी ई. है। (छा.चि. क्र.107)
(6) नृसिंह:- यह प्रतिमा एक अलिंद में निर्मित है। अलिंद के उपर जालिकावत अलंकरण है। तथा नीचे पुष्प निर्मित है। अलिंद के दांये तरफ एक नायिका तथा बांये तरफ भी एक नायिका अंकित है। नृसिंह मध्य में निर्मित है। नृसिंह चतृर्भुजी हैं जो दांये उपरी हाथ में चक्र ,बायें उपरी हाथ में पद्म पकड़े हैं । दायें तथा बायें दोनों निचले हाथ से राक्षस का पेट फाड़ते हुये प्रदर्षित हैं। प्रतिमा का मुख खुला हुआ तथा गले में हार, दाहिना पैर मुड़ा हुआ एवं बांया पैर के बल उकड़ूं बैठे हुये प्रदर्षित हैं । यह प्रतिमा भूरे बलुआ प्र स्तर से निर्मित है। प्रतिमा के दोनों तरफ उपर में मकरमुख , मध्य में गज व्याल तथा नीचे भारवाहक का अंकन है। प्रतिमा का काल 10वीं शताब्दी ई. है। छा.चि. क्र.123)
(7) खण्डित नृसिंह:- प्रतिमा का उपरी भाग खण्डित है। नृसिंह चतुर्भुजी हैं जिसके उपरी दोनों हाथ खण्डित है। नृसिंह अपने दोनो हाथों से राक्षस का पेट फाड़ते हुए प्रदर्षित हैं तथा बां यें पैर से पिशाच को दबा ये हुये अंकित हैं । प्रतिमा के बायें तरफ एक पुरूष प्रतिमा बैठी हुई प्रदर्षित है। नृसिंह का गर्दन से उपरी भाग खण्डित है । इनके गले में हार , यज्ञोपवीत, तथा वनमाला धारण कि ये हुये हैं । प्रतिमा का काल 12वीं शताब्दी ई. है। (छा.चि. क्र.107)
(8) नृसिंहः- यह प्रतिमा भी उपर्युक्त वराह, कार्तिकेय एवं चतुर्भुजी गणेश प्रतिमा की भांति अलिंद में निर्मित हैं। नृसिंह चतुर्भुजी है जिनके ऊपरी दायें हांथ में चक्र , तथा बायें ऊपरी हाथ में शंख धारण किये हैं । निचले दोनों हाथों में से दांया हाथ हिरण्यकश्यप की पेट पर तथा बायें हाथ से गर्दन पकड़े हैं । नृसिंह दायें पैर से हिरण्यकश्यप को दबाये हुए हैं तथा बांया पैर भूमि पर रखा है । नृसिंह के दोनों तरफ नीचे कोने में एक-एक देवी