सूखा बुंदेलखंड, हर बून्द को बचाना होगा
आल्हा-ऊदल, वीरसिंह बुंदेला, छत्रसाल, लक्ष्मीबाई जैसी अनगिनत वीरों की भूमि बुंदेलखंड। जहां के हर गांव में ऐतिहासिक विरासत पसरी है। गढ़, गढ़ी, किलों में बच्चे खेलकूद कर बड़े होते है, लेकिन शास्वत रूप से नीर हीन यह धरा अब पूर्ण रिक्त हो चली है।
8-9 वीं सदी में यहां के चंदेल शासकों ने गांव-गांव तालाब खुदवाए थे, परंतु भू-माफियाओं ने आज उन तालाबों पर कॉलोनियां तान दी है। जिन जगहों का नाम तालाबों के कारण सागर, बरुआ सागर, वीरसागर, तालबेहट, तालचिरी, वर्माताल, तालमऊ आदि पड़ा था, वहां के तालाब अब तलैया भी नही बचे हैं।
इस क्षेत्र में सदानीरा नदियों की कमी ये तालाब ही पूरी करते थे। इनके माध्यम से भू जल रिचार्ज होता रहता था। कई जगह बावड़ियाँ जिन्हें डुहेला भी कहते हैं, जल आपूर्ति के साधन रहे हैं। कुंए भी अब सिर्फ ब्याव में नेग करने के लिए ही जिंदा है।
आज बुन्देलखण्ड में जल संकट का कारण लोग स्वयं है। पुराने जल संग्रहण क्षेत्र जैसे तालाब,बावड़ी और कुंए अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। इससे वर्षा जल का संग्रहण तो समाप्त हुआ ही, बल्कि भूजल रिचार्ज होना भी बन्द हो गया।
अब लोगों को पानी की आपूर्ति अधिकांश रूप से ट्यूबवेल या बोर से हो रही है। जल का उपयोग एक तरफ़ा है, यानी हम सिर्फ जमीन से पानी निकाल रहे हैं, न कि उसमें पानी डाल रहे हैं।
यही कारण है कि बुंदेलखंड में बोर का गड्ढा 300-400 फुट होना सामान्य बात है। अब भी हम चेते नही है। विकास की बयार ला रही पंचायतों द्वारा गांवों में सिर्फ सड़क के नाम पर सीसी रोड का निर्माण हो रहा है, जिनमे गलियों को पूरी तरह सीमेंट से पैक कर दिया जाता है, अब बरसात के पानी को जमीन में जाने की जगह बन्द हो जाती है, तो वह नालों-नदियो में बह जाता है।
पेड़ों की कटाई भी जबरदस्त तरीकों से अंधाधुंध हो रही है। पहले लोग बगीचों में गमले लगाते थे, तो अब गमलों में बगीचे लगाते हैं। छायादार और बड़े वृक्ष की जगह कमनीय सुंदर शो प्लांट्स ने ले ली है, जो जल संरक्षण में चुल्लू भर पानी भी न बचा पाते हैं।
बुन्देलखण्ड को सूखा या जल संकट से बचने के लिए पुनः चंदेलों, बुंदेलों, बंजारों और पूर्वजों द्वारा बनवाये गये तालाबों और कुंओं के जीर्णोद्धार की ओर बढ़ना होगा।
अधिक से अधिक संख्या में बड़े और छायादार वृक्ष जैसे – पीपल, बरगद, पाकड, आम , अर्जुन आदि लगाने होंगे और संकल्प लेना होगा कि पानी की एक भी बून्द बेकार न जाने देंगे। इसे सरकारी नही असरकारी जन आंदोलन बनाना होगा। बुंदेलखंड की हर बून्द को बचाना होगा।