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पगार

पल्लवी ओ पल्लवी, कहाँ हो तुम? कब से मुंह धो कर बैठा हूँ, आधा घंटा हो गया अभी तक नाश्ता नहीं लाई। जल्दी  करो मुझे ऑफ़िस में देर हो रही है।  कल भी टिंकु को स्कूल पहुचाने के कारण देर हो गयी थी। बॉस ने बहुत डांट पिलाई थी। – कमल ने खीजते हुए कहा.
जब तक वो नहीं मिलती नाश्ता मिलने से रहा- पल्लवी ने बेड रुम से ही जवाब दिया।.
क्या???
पगार………..
किसकी पगार ?
मेरी पगार और किसकी पगार – चादर घड़ी करती हुई बेडरुम से बाहर आकर बोली
अरे तुम ये क्या कह रही हो। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा। – कमल ने आश्चर्य भरी नजरों से पल्लवी को देखा।
तुम मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो, मैं घर के काम करती हूँ. तुम्हारे बच्चे पालती हूँ. खाना बनाके परोसती हूँ, कपडे धोती हूँ. सुबह से शाम तक जी तोड़ मेहनत करती हूँ, इन सबकी मुझे पगार मिलनी ही चाहिए. कितनी पगार दोगे पहले बताओ तभी नाश्ता मिलेगा।
क्या बडबड लगा रखी है? तुम्हे किस बात के पैसे चाहिए? सुबह-सुबह ये पगार – बिगार क्यों लगा रखी है? इन  टीवी चैनलों ने तुम्हारा दिमाग खराब कर रखा है। मुझे लगता है कि वो लाल झंडे वाली आंटी तुम्हारे कान भर गयी। तुम घर के काम करती हो न तो क्या ये घर तुम्हारा नहीं है? बच्चे तुम्हारे नहीं हैं क्या? तुम तो शहर की काम वाली बाई जैसे पगार दो पगार दो की रट लगा रही हो  तुम्हारा दिमाग ठीक है कि नहीं?- कमल ने गुस्से में कहा।
“मैं पूरे होश में हूँ. मुझे किसी पागल कुत्ते ने नहीं काटा है. सुना है अब सरकार पति की पगार में हिस्सा देने का कानून बनाने वाली है.”
आं…….. सरकार का दिमाग ख़राब हो गया है क्या? ऐसे उलटे सीधे निर्णय लेने लगी है सरकार। पति – पत्नी में लड़ाई कराने का काम भी करने लगी ये सरकार? और तुम्हे ये सब कैसे पता चला?
कल अखबार में पढा था तभी से सोच रही थी कि तुम्हे आज कह ही दूं।… दिल्ली की संसद में महिला बाल विकास मंत्रालय की तरफ से एक प्रस्ताव रखा  है कि पति की कमाई का दो प्रतिशत हिस्सा पत्नी को पगार के रूप में दिया जाये. ये कानून पास होना ही है, इसीलिए अभी से मेरी पगार तय कर दो. कितनी पगार दोगे बोलो??
अरे  तुम फ़ालतु की बातें छोड़ो और जल्दी से नाश्ता लेकर आओ। नहीं तो मै बाहर ही कर लूँगा। रहने दो तुम्हारा नाश्ता।- गुस्से से कमल ने पैर पटकते हुए दरवाजे की तरफ़ रुख किया। तभी कॉल बेल बजी। दरवाजा खोलने पर पल्लवी के पापा दिखाई दिए।
आते ही बोले -” न सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठा लट्ठ। मैं काफ़ी देर से दरवाजे पर खड़ा तुम्हारा वार्तालाप सुन रहा था। अरे ऐसे कानून कभी पारित होते हैं ?कानून बने या न बने औरत तो घर की लक्ष्मी होती न? घर में जो भी होता है वह सबका होता है ? हमारी संस्कृति में हम नारी को लक्ष्मी मानते हैं, लक्ष्मी धन की देवी होती है। सुख समृद्धि की दात्री होती है। क्या अब लक्ष्मी को भी पगार मांगना पड़ेगा ? घोर कलयुग आ गया है यदि ऐसा ही रहा तो लड़की वाले पहले ही पूछने लगेंगे कि तुम मेरी बेटी को कितनी पगार दोगे? अगर यह स्थिति आ गयी तो सारे सामाजिक संबंध छिन्न भिन्न हो जाएगें। वह कौन कलंकिनी होगी जो अपने बच्चों को दूध पिलाने के पैसे लेगी ?
पापा की बातें पल्लवी और कमल खड़े हुए सुन रहे थे।  उन्होने आगे कहा – बेटी हमने दुनिया देखी है। खोपड़ी के बाल यूं ही धूप में सफ़ेद नहीं किए। पता नहीं किससे बददिमाग की उपज है यह। हमारे यहाँ कन्यादान का रिवाज है.विवाह के समय बेटी का पिता जवाई से अपनी बेटी को सुखी रखने और कोई कमी ना होने देने का वचन लेता है, ऐसा नहीं पूछता कि पगार कितनी दोगे .अरे मैं कमाके लाता हूँ तो पगार कहाँ रखता हूँ तेरी माँ  के पास ही न? कहाँ खर्च किये कभी पूछता हूँ क्या ? पगार मांगने का हक सिर्फ़ उसी को है जिसके बाप ने उसकी माँ को पगार दी हो।
पत्नी को अर्धागिनी ही नहीं, उत्मार्ध भी कहा गया। वह पति के शरीर का उत्तम आधा भाग है समझती है ना तू गृहस्थी के संसार में जीवन की गाड़ी दोनों को मिलकर ही चलानी पड़ती हैं, तू घर संभालती है, कमल बाहर काम करता है, इसने कभी तुझसे खाना-कपडे के पैसे मांगे हैं क्या?? हाँ जितनी जरुरत हो तुझे सोच – समझ के खर्च कर ले. परन्तु फ़ालतु बातों पर घर में विवाद  नहीं होना चाहिए। इससे घर का वातावरण अशांत होने से आर्थिक और शारीरिक हानि ही होती है। जा बेटी चाय बना कर ले आ।
अरे बाप से भी पगार मांगेगी क्या? पापा के इस कथन पर पल्लवी झेंप गयी और कमल ने जोरदार ठहाका लगा कर कहा – पापा! आपने सही समय पर आकर मुझे बचा लिया। अब आप दोनो बाप-बेटी फ़ैसला करो इस पगार का, मैं चला ऑफ़िस .……
संध्या शर्मा
नागपुर

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