गुमगरा वनक्षेत्र की रहस्यमय गुफ़ा : नागमाड़ा
लखनपुर/ छत्तीसगढ़ राज्य का सरगुजा अंचल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ अपने गर्भ में ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व के अनेक रहस्य छुपाए हुए है। जो क्रमश: प्रकाश में आते दिखाई देते हैं। ऐसा ही एक स्थान है लखनपुर ब्लॉक के नागमाड़ा की गुफ़ा। लखनपुर से उत्तर पश्चिम दिशा में गुमगरा-भरतपुर मार्ग पर 15 किलोमीटर की दूरी पर सागौन, साल, शीशम, धौरा एवं अन्य प्रजातियों से आच्छादित गुमगरा वन क्षेत्र के सघन वन मध्य नागमाड़ा का प्राकृतिक अनुपम सौंदर्य दिखाई देता है।
धरती में गुफ़ा की मानिंद एक बड़ी खोह है जिसके ईर्द-गिर्द वृक्षों की लताओं ने अपना मायाजाल रचा है। वृक्षों की जड़ें सर्पाकृति में होने के कारण अदभुत दृश्य उत्पन्न करती हैं। इस गुफ़ा का मुहाना लगभग 7-8 फ़ुट की गोलाई लिए हुए है। इस गुफ़ा में उतरने के लिए वृक्षों की जड़ों का सहारा लेना पड़ता है। वृक्षों की जड़ों से शीतल जल धारा बहती है। जन मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर आता है उसे इस निर्मल जल धारा का जल ग्रहण करना अनिवार्य है। अन्यथा अनिष्ट की आशंका रहती है। अनिष्ट की आशंका के कारण इस स्थान पर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यहाँ की जल धारा का जल ग्रहण करना ही पड़ता है।
नागमाड़ा सदियों से आधुनिक मानवों की नजरो से ओझल होकर वनवासियों की धार्मिक आस्था का केन्द्र बना हुआ है। इस गुफ़ा में विभिन्न प्रजातियों के सर्प दिखाई देते हैं, जिनमें, अजगर, नाग (कोबरा) करैत, अहिराज, चिंगराज एवं अन्य जहरीले सर्प प्रमुख हैं। इस गुफ़ा में स्थिल बिलों से ये सर्प झांकते हुए दिखाई देते हैं। जीवन में सुख-शांति एवं समृद्दि की कामना लिए वनवासी यहाँ सर्पों की पूजा करते हैं। शिवरात्रि के विशेष पर्व में वनवासी मेले की शक्ल में यहाँ उपस्थित होकर आराधना करते हैं और नाग देवता को प्रसन्न करते हैं।
वनवासी कहते हैं कि धार्मिक त्यौहारों के अवसरों पर नागमाड़ा में मुहरी, चांग, एवं डफ़ला प्राचीन वाद्ययंत्र बजने की आवाजें सुनाई देती है, इन वाद्ययंत्रों का उपयोग उनके पूर्वज धार्मिक अनुष्ठानों के अवसरों पर किया करते थे। यह रहस्य है कि इन वाद्ययंत्रों को कौन बजाता है और उनकी आवाज कहाँ से आती है? वाद्ययंत्रों की ये आवाजें वनवासियों में कौतुहल जगा कर अज्ञात की ओर उन्हें खींचती हैं तथा इसी के फ़लस्वरुप यह गुफ़ा धार्मिक आस्था का केन्द्र बनी हुई है।मान्यता है कि इस गुफ़ा में सच्चा एवं शुद्ध प्रकृति का व्यक्ति ही प्रवेश कर सकता है वरना यहाँ निवास करने वाले देव कुपित हो जाते हैं।सदियों से जनमान्यता है इस गुफ़ा में रजस्वला स्त्री के प्रवेश नहीं करना चाहिए। रजस्वला स्त्री के गुफ़ा में प्रवेश करने पर यह जलप्लावित हो जाती है। माड़ा में जल का भराव हो जाता है और गुफ़ा शुद्ध होने पर जल स्वत: ही उतर जाता है। इसलिए वनवासी इस बात का ध्यान रखते हैं उनकी कोई भी परिजन स्त्री माहवारी के समय में नागमाड़ा क्षेत्र में प्रवेश न करे। इस तरह की रोक-टोक वन क्षेत्रों में अन्य दैवीय स्थानों पर सुनाई देती है।
नागमाड़ा की सतह के साथ ही एक लम्बी प्राकृतिक सुरंग है। वनवासी बताते हैं कि उनके पूर्वज एवं बैगा लोग लगभग 1 किलोमीटर लम्बी इस सुरंग के माध्यम से पैदल ही गुमगरा तक का सफ़र तय कर लेते थे। वर्तमान में इस सुरंग में कोई भी प्रवेश नहीं करता क्योंकि जहरीले सर्पों की अधिकता होने से उनके दंश का खतरा हमेशा बना रहता है। क्षेत्रिय जनों की माँग है कि इस महत्वपूर्ण स्थान का संरक्षण एवं संवर्धन होना चाहिए। वनक्षेत्र में और अधिक पौधा रोपण एवं बाड़ इत्यादि से घेरा करके इस प्राकृतिक दर्शनीय स्थल का सौंदर्यवर्धन किया जा सकता है।
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त्रिपुरारी पाण्डेय
(पत्रकार लखनपुर सरगुजा)