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ठगड़ी (बांझ) कौन?

एक लड़की थी, जिसका नाम मोहिनी, मोहिनी सिर्फ़ 16 साल की थी. खूबसूरत, प्यारी सी, मासूम. तभी उसके लिए एक रिश्ता आया,लड़का सरकारी नौकरी में था, अधिकारी था. एक लड़की के माता-ता को और क्या चाहिए, इतना अच्छा रिश्ता वो इंकार करे तो भी क्यों? अतः उन्होने लड़के के घर जाकर सब देखभाल लिया,अच्छा घर अच्छा वरसब कुछ पसंद आ गया उन्होने बात आगे बढाई I अगले रविवार लड़का अपने माता-पिता के साथ लड़की देखने मोहनी के घर आया, शालीन सरल स्वभाव की मासूम मोहनी एक ही नजर में भा गयी अतुल को, अतुल जो देखने आया था।
पंडित बुलाया गया, मुहुर्त देखा गया और 10 दिसम्बर तय हुआ विवाह का दिन, मेहमानों से सजा आंगन, बाहर बाजा का शोर, उमंग में नाचते बाराती, घर में इधर-उधर बारात स्वागत की तैयारी में भागते घर वाले, मोहनी भी अपने आने वाले खुबसूरत पलों की याद में सपने संजोए दुल्हन का श्रृंगार करते बैठी थी। विवाह सम्पन्न हुआ, दुल्हन के विदा होते  सारे घर में सन्नाटा सा पसर गया।
मोहिनी डोली से उतर कर  पहला कदम ससुराल में रखती है। सास-श्वसुर, ननद, भाभी सभी ने उसे हाथों हाथ लिया। खूब स्वागत सत्कार हुआ, हंसी ठिठोली हुई। दिन बीतने लगे, मोहिनी को मानो संसार की हर खुशी मिल गयी। चाहने वाला पति, भावनाओं का सम्मान करने वाला ससुराल, प्यार करने वाले ननद देवर, ख्याल रखने वाली भाभी (जेठानी)। अपने सुख के संसार में खो गयी मोहिनी। साल बीता, दो साल, तीन साल, साल पर साल बीतने लगे। हल्की सी खुसर-फ़ुसर घर वाले, पड़ोसी और रिश्तेदारों में शुरु हो गयी। शादी को तीन साल हो गए, अभी तक बहू की गोद हरी नहीं हुई। कहीं कुछ कमी तो है। कहीं बांझ तो नहीं? अचानक एक दिन सास ने आकर मोहिनी से कहा- अभी तक इस घर में नन्हे-मुन्ने की किलकारी सुनाई दे जाना था। पर लगता  है कि तुममें कुछ कमी है। अतुल के साथ जाओ और किसी अच्छे डॉक्टर से अपना चेकअप करावो।
मोहिनी असमंजस में थी कि आखिर वो अपने पति से कहे भी तो क्या और कैसे? रात को अतुल ने आते ही प्रश्न गोली की तरह दागा- आज  माँ ने तुमसे कुछ कहा था? सहमी सी मोहिनी ने सारी बात अपने पति को बता दी। अतुल ने कहा कि -कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना, किसी से फ़ोन पर बात की और बताया कि डॉक्टर शर्मा इस मामले में विशेषज्ञ है। हम कल ही सुबह 9 बजे जाकर उसे दिखा देंगे। मोहिनी ने सर झुका कर हाँ कर दी। सुबह-सुबह दोनो तैयार होकर डॉक्टर के यहां गए। डॉक्टर ने सारा चेकअप किया मोहिनी का और कल सारा रिपोर्ट लेकर जाने को कहा। दोनो वापस घर आ गए। घर में आते ही सवालों की झड़ी लिए सास ससुर ने प्रश्न आरंभ किया। क्या कहा डॉक्टर ने? इसमें कुछ कमी तो नहीं? और कितने दिन इलाज लगेगा ???? वगैरह वगैरह……….
एक गुनाहगार की तरह मोहिनी कटघरे में खड़ी आरोपों को चुपचाप सुनती रही। अतुल ने कहा कि कल रिपोर्ट आने दो। तभी कुछ कहा जा सकता है। दुसरे दिन नियत समय पर अतुत और मोहिनी डॉक्टर के यहाँ जाते हैं। डॉक्टर ने सब कुछ सामान्य बताया। मोहिनी की सारी रिपोर्ट अतुल के हाथों में थी।  कहीं कोई कमी नहीं मोहिनी में। फ़िर भी कुछ टॉनिक और दवाईयाँ सेहत के लिए लिख दी थी। मोहिनी को ढांढस बंधाते हुए डॉक्टर ने कहा कि – मोहिनी! परेशान न हो, सब कुछ सामान्य है, तुम पूरी तरह से सक्षम हो माँ बनने में। कभी कभी कुछ देर हो जाती है। पर चिन्ता करने वाली कोई बात नहीं है। तुम में कोई कमी नहीं है। अचानक डॉक्टर ने अतुल से कहा – अतुल बेहतर होगा कि तुम भी अपना चेकअप करवा लेते। हो सकता है तुममे ही कुछ ……………।  अतुल को जैसे बिजली का करंट सा लगा हो, बदल उठा वो डॉक्टर पर – आपने ऐसा कहने का साहस कैसे किया, मै एक मर्द हूँ और मर्द में क्या कमी हो सकती है, मैं पूरी तरह से सक्षम हूँ संतान उत्पन्न करने में। कमी होगी तो इसमें…………उंगली का इशारा मोहिनी की तरफ़ था…………मोहिनी सकपका सी गयी……… चिड़चिड़ाते हुए अतुल मोहिनी को घसीटकर वहाँ से घर ले आता है।
घर में किसी के सामने कुछ भी कहने से वह मोहिनी को मना कर देता है। घर आते ही दवाई और टॉनिक मोहिनी के हाथों में थमा देता है। कुछ दिनों का इंतजार करने के बाद घर में कोहराम सा मच जाता है। मोहनी माँ क्यों नहीं बन रही है। यह प्रश्न हर किसी की जुबान पर…………उलाहना, प्रताड़ना का दौर थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। ……बांझ, कलमुंही, ठगड़ी जैसे शब्द बाण नश्तर की तरह मोहिनी के कानों में सुबह शाम चुभते रहते……………खामोशी से पाने आँसुओं को सब से छुपाकर मोहिनी घर के कामों में खुद को व्यस्त रखने का प्रयास करती रहती। इस तरह साल भर और बीत गया। अब तो हर आने वाला रिश्तेदार भी व्यंग्य करता – अरे अभी तक आंगन में बाल-गोपाल की किलकारी सुनाई नहीं दे रही है। बहू को कहीं दिखाते क्यों नहीं? डॉक्टर,हकीम,वैद्य,साधू-संत……… जिसने जहाँ  जो नाम बताया, मोहिनी को वहाँ ले जाया गया। पूजा पाठ, हवन पूजन, सब के बाद भी नतीजा शुन्य ही रहा……………मोहिनी पर अत्याचार और बढने लगे।
जो अपनी सेवा से सबके दिलों पर राज कर रही थी, वो अचानक सबकी आँखों की किरकिरी बन गई, आँसुओं में बीत रहे थे उसके दिन रात। अतुल भी बात-बात पर उससे गुस्सा करता और अब तो उस पर हाथ भी उठाने लगा था।
एक दिन गुस्से में अतुल ने मोहिनी को उलाहना दिया, मेरा तो वंश ही खत्म हो जाएगा तेरी वजह से।  तुम मेरे माँ-बाप को वंश चलाने के लिए औलाद का सुख भी नहीं दे पा रही हो। फ़िर वे तुम्हे इस घर में रखे हुए हैं, ये उनका बड़प्पन है। मुझे दु:ख होता है अपने माँ-बाप की पीड़ा को देख कर………पर मैं क्या कर सकता हूँ, समझ में नहीं आ रहा है। सहमी सी मोहिनी डरते हुए धीरे से कहा- डॉक्टर साहब ने कहा था, आप भी एक बार जाकर अपना भी चेकअप करवा लेते शायद………तड़ाक, तड़ दो थप्पड़ रसीद कर दिए, अतुल ने मोहिनी की बात पुरी होने के पहले, उसके गाल पर -“ठगड़ी, बांझ औरत, हमारे रहमो करम का ये सिला दिया तूने, खुद की कमी को छुपाने के लिए तुम्हारी यह मजाल की हमारी कमजोरी  को बताने का दुस्साहस करो…………माँ ठीक ही कहती थी कि इस बांझ औरत को अभी घर से निकाल दो और दूसरी शादी कर लो। पर मैने रहम किया तुम पर और माँ की बात नहीं सुनी। अब तो लगता है माँ सही कहती थी………तुम्हे तुम्हारी औकात दिखानी ही पड़ेगी………गुस्से पैर पटकते हुए अतुल घर से निकल जाता  है……… फ़िर तो घर में तमाशा ही शुरु हो जाता है। सास-ससुर,जेठ-जेठानी, ननद, देवर सभी मोहिनी को भला-बुरा सुनाते हैं…………जुल्म बढता जाता है, मोहिनी का क्रंदन सुनने वाला वहाँ कोई नहीं…।
और एक दिन इन्तिहा हो जाती है अत्याचार की। ठगड़ी, बांझ, कहकर मोहिनी को धकियाते हुए उसके ससुराल वाले जबरदस्ती घर से बाहर फ़ेंक देते हैं। रोती बिलखती मोहिनी की पुकार   उनके कानों तक नहीं पहुंचती। ससुराल का दरवाजा मोहिनी के लिए हमेशा के लिए बंद हो जाता है।
माथे पर ठगड़ी और बांझ का दाग लिए मोहिनी अपने मायके लौट जाती है……मोहिनी का इम्तिहान अभी खत्म नही हुआ है। यहाँ भी रिश्तेदार, पड़ोसी, जान-पहचान वाले सभी मोहिनी को ही हिकारत भरी निगाहों से देखते हैं और तानों के नश्तर चुभाते हैं। वकील का नोटिस………कोर्ट का फ़ैसला और अंजाम…………तलक………।
मोहिनी अपने आगे की पढाई पूरी करती है। फ़िर से कॉलेज जाती हे, पुराने दर्द को भुला कर एक नयी जिन्दगी की शुरुवात करने का प्रयास करती है। मोहिनी के पड़ोस में मनीष रहने आता है। मनीष पेशे से सब इंजिनियर है। पढा लिखा समझदार युवक है। उसे धीरे-धीरे मोहनी की सारी कहानी का पता चलता है………। मोहिनी के सम्मोहन से वो पहले ही उसकी ओर आकृष्ट था, अब उसके दिल में मोहिनी के प्रति प्यार, सम्मान और हमदर्दी और भी अधिक बढ जाती है। वो शादी का प्रस्ताव लेकर मोहिनी के पिता के पास जाता है। मोहिनी के घर वाले सब अवाक रह जाते हैं मनीष के इस प्रस्ताव से………………… सारी सच्चाई मनीष के सामने रखने के बाद और विचार विमर्श के पश्चात मोहिनी का परिवार वाले उसकी दूसरी शादी के लिए तैयार हो जाते हैं…………फ़िर घर में शहनाईयाँ गुंजती हैं…………ढोल नंगाड़े बजते हैं…………और मन में एक प्रश्न चिन्ह लिए मोहिनी मनीष के आँगन में दुल्हन बनकर कदम रखती है, कशमकश और अज्ञात आशंकाओं के साथ नए जीवन की शुरुवात करती है।

20 साल  बाद…………………।

एक विवाह समारोह में मोहिनी  जैसे ही खाने की टेबल पर प्लेट लेने हाथ बढाती है………चौंक उठती है, उसके सामने अतुल खड़ा है……अतुल नि:शब्द मोहिनी को तकते रहता है………मम्मी पीछे से आवाज आती है आनंद की………… आनंद मोहिनी का बड़ा बेटा………मोहिनी पीछे पलटती  है……हाँ बेटा! इधर आओ………अतुल से मिलवाती है………ये मेरा बड़ा बेटा है आनंद। सी एस इंजीनियर है। वो काले टी शर्ट में जो पीछे खड़ा है, वो मेरा छोटा बेटा है अभय है, वो बी ई कर रहा है गर्वमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से और आवाज देकर……शीलू इधर आना बेटा…………एक खुबसूरत सी गुड़िया आती है, उसका परिचय देती है………ये मेरी बिटिया है शालिनी फ़र्स्ट ईयर में बी ई कर रही है………आईए मैं आपको अपने पति से मिलवाती हूँ, उसे मनीष के पास ले जाती है और कहती है, ये देवता मेरे पति हैं………जब मै दूनिया से निराश हो गयी थी, जब सारी खुशियाँ मुझसे रुठ गयी थी, उस पल में  जिन्होने साहस कर मेरा हाथ थामा……ये मनीष  जी हैं……मेरे पति………आपने मिल लिया, मेरी छोटी सी दूनिया में मैं कितनी खुश हूँ, आपने देख भी लिया……सुना है आपने भी मेरे जाते ही दूसरी शादी कर ली थी। कहाँ है आपकी पत्नी और बच्चे………मिलवाएगें नही? कितने बच्चे हैं, क्या क्या कर रहे हैं? मोहिनी के सवालों  का कोई जवाब नहीं दे पा रहा था अतुल…………
नजरें झुका कर जवाब दिया………… हाँ मोहिनी मैने दूसरी शादी कर ली है, मेरी पत्नी सीमा………और संतान?????????? तुमसे क्या छिपाऊं, मेरी संतान नहीं है………मैं आज भी बेऔलाद हूँ……मेरा वंश चलाने वाला आज भी कोई नहीं…… अपने पुरुषत्व मुझे बहुत घमंड था, तुम्हारी बातों ने मेरे अहम को चोट पहुंचाया था, मैने सोचा भी न था कि कमी किसी पुरुष में भी हो सकती है………काश! मैने उस दिन तुम्हारी बात मान ली होती…………तो…………आज मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा है……शर्मिन्दगी भी।
मोहिनी – बस मैं आपसे एक ही प्रश्न पूछती हूँ, ठगड़ी कहकर आपने मुझे घर से निकाला था ना…………अब आप ही बताएं………ठगड़ी (बांझ) कौन?

सुनीता शर्मा
रायपुर (छत्तीसगढ)

8 thoughts on “ठगड़ी (बांझ) कौन?

  • January 22, 2012 at 09:10
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    समाज की वास्तविकता बयान करती रोचक और सार्थक कहानी के लिये सुनीता को बधाई और आपका आभार।

  • January 22, 2012 at 10:03
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    ham 21vi sadi me ji rahe hai lekin aaj bhi hamara samaj in sabhi purane vatavaran me hai , avashyak hai ki ham sabhi logo ko iska khul kar virodh karna chahiye , manish ka kadam sahasik tha , aur aap ko bhi badhaiya ki aap ne is kahani ke madhyam se logo ko jagruk karne ka prayash kiya hai
    hame asha hai ki aap se aise hi jagrukta ki misal bhari sandesh milta rahe

  • January 22, 2012 at 10:03
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    ham 21vi sadi me ji rahe hai lekin aaj bhi hamara samaj in sabhi purane vatavaran me hai , avashyak hai ki ham sabhi logo ko iska khul kar virodh karna chahiye , manish ka kadam sahasik tha , aur aap ko bhi badhaiya ki aap ne is kahani ke madhyam se logo ko jagruk karne ka prayash kiya hai
    hame asha hai ki aap se aise hi jagrukta ki misal bhari sandesh milta rahe

  • January 22, 2012 at 10:08
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    समाज की वास्तविकता यही है आज भी दोष नारी को दिया जाता है, चाहे वह दोषी हो या ना हो. लेकिन चुपचाप अन्याय सहना और इसे नियति मान लेना भी गलत है.

    बहुत अच्छी कहानी लिखी है आपने सुनीता जी, नारी मन की पीड़ा को उजागर करते शब्द… इसे हम तक पहुचाने के लिए ललितजी का बहुत-बहुत आभार..

  • January 23, 2012 at 08:09
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    बांझ शब्‍द का प्रयोग ही दर्दनाक घटना हैं इसका परहेज हर जगह होना चाहिये , चाहे कहानी ही क्‍यो न हो ……………

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