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विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों तथा जलदूतों ने पानी बचाने के उपायों पर रायपुर में किया चिंतन

रायपुर, एक अगस्त 2018/ आज राजधानी रायपुर में “छत्तीसगढ़ जल चिंतन – 2018” सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। इसका आयोजन जल संसाधन विभाग छत्तीसगढ़ शासन द्वारा किया गया था।

इस कार्यक्रम में जल संसाधन मंत्री श्री ब्रजमोहन अग्रवाल सहित केन्द्रीय जल संसाधन सचिव यू पी सिंह, जल संसाधन सचिव छत्तीसगढ़ सोनमणि बोरा, दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट के निदेशक एवं नीति आयोग के सदस्य श्री अतुल जैन एवं केन्द्रीय जल आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं वाटर डाइजेस्ट के श्री पण्ड्या ने भी जल संरक्षण एवं जल संवर्धन पर अपने विचार रखे।

जल संसाधन मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल ने पानी को बचाने और बढ़ाने के लिए कम लागत वाली स्थानीय स्तर पर उपयोगी छोटी-छोटी योजनाएं बनाने पर जोर दिया। श्री अग्रवाल ने कहा कि जल संरक्षण की छोटी-छोटी योजनाएं गांव या ग्राम पंचायत स्तर की होनी चाहिए। ऐसी योजनाओं में आम जनता की भागीदारी होगी और उनमें जागरूकता आएगी। दुनियाभर में इस ज्वलंत समस्या का समाधान करने जन-जागरूकता की सबसे ज्यादा जरूरत बताई जा रही है। छोटी योजनाओं से यह जरूरत भी पूरी हो सकती है। देशभर के विषय विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और जल दूतों ने सम्मेलन में दिन भर पानी बचाने के उपायों पर चिंतन किया।

केन्द्रीय जल संसाधन सचिव श्री यू.पी. सिंह ने कहा कि जल संरक्षण एवं जल संवर्धन की दिशा में प्रबंधन की महती भूमिका होती है। वाटर रिसोर्स मैनेमेंट और डिमांड साइड मैनेजमेंट जरूरी है। श्री सिंह ने बताया कि केन्द्र सरकार भू-जल के संरक्षण के लिए अटल भू-जल योजना ला रही है। इस योजना के जरिये हर गांव में भू-जल प्रबंधन के लिए काम किया जाएगा।

जल संसाधन विभाग के सचिव श्री सोनमणि बोरा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में उपलब्ध जल संसाधन को सिंचाई के लिए सही ढंग से उपयोग करने के लिए जल संसाधन विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ जल समृद्धि अभियान शुरू किया गया है। अभियान के अंतर्गत प्रदेश के तीन हजार से अधिक छोटे-बड़े जलाशयों की जियो टेगिंग की गई है। जियो टेकिंग की रिपोर्ट के आधार पर इन जलाशयों की वर्तमान क्षमता का परीक्षण किया जा रहा है।

दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट के निदेशक एवं नीति आयोग के सदस्य श्री अतुल जैन ने देश के विभिन्न राज्यों के अनेक गांवों और इलाकों का उदाहरण देकर जल संरक्षण और संवर्धन का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि देश में ग्रामीण क्षेत्रों के पारम्परिक ज्ञान एवं तरीके ही जल संरक्षण और जल संवर्धन के लिए बेहतर साबित हो रहे हैं। पानी बचाने के लिए गांवों की जमीन और वहां के निवासियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का आंकलन करना जरूरी है।