घुमक्कड़ी ज्ञान का एक असीमित भंडार : हर्षिता जोशी
पाठकों आज से हम घुमक्कड़ पाठकों के लिए एक नया कॉलम प्रारंभ कर रहे हैं। जिसमें हम आपको भारत के एक नामी घुमक्कड़ से मिलवाए करेंगे। जिससे प्रेरणा लेकर पाठकों का रुझान घुमक्कड़ी ओर बढे एवं इन घुमक्कड़ों से आपको घुमक्कड़ी के क्षेत्र की कठिनाइयों एवं आनंद का भी पता चले। इस कॉलम में घुमक्कड़ों से हमने दस सवाल पूछे हैं। आज हम आपकी मुलाकात करवा रहे हैं घुमक्कड़ ब्लॉगर हर्षिता जोशी से………
1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
अल्मोड़ा ही वो जगह है जहाँ से जीवन का आरम्भ हुआ .इस शहर की फिजाओं ने मेरे बचपन की किलकारियों से ले कर युवा अवस्था का अल्हड़पन सब कुछ देखा है . इंटर तक की शिक्षा एडम्स गर्ल्स इंटर कॉलेज से हुयी. उस समय टीवी पर हमारे स्कूल की छुट्टी के समय विक्रम बेताल आया करता था तो उसे देखने के लिए दो सौ से ऊपर सीढियाँ धरधराते हुए एक साँस में उतर जाया करती थी ये ख्याल तो कभी आया ही नहीं अगर किसी दिन गिर पड़ी तो क्या होगा !!
इसके आगे पंतनगर यूनिवर्सिटी से भौतिक विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री ली, डिग्री के साथ साथ इन दो वर्षों में आत्म निर्भर बनना भी इस जगह ने सीखा डाला. हॉस्टल से कॉलेज, कॉलेज से लाइब्रेरी और लाइब्रेरी से कैंटीन जाना आदत में शुमार होने लगा. पंतनगर की यादों का किस्सा खोलूं तो आँखों में आंसू आने लगते हैं.
इसके बाद ऍम -टेक के दौरान एक साल पौड़ी रहने का अवसर मिला. ये जगह अपने घर से दूर पड़ती थी पर रहने के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं थी. मेरे कमरे की खिड़की से चौखम्बा कुछ यूँ दिखती थी कि सुबह बिस्तर पर आँख खुले तो सामने धवल हिमालय श्रंखला नजर आये. अपना तो दिन बन जाता था एक तरह से . ऐसे कमरे तो होटल में कितने हजारों का किराया दे कर ना मिले और हम करीबन मुफ्त में आनंद उठाते थे .
यहाँ से विदाई ले कर अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में राष्ट्रिय भौतिकी प्रयोगशाला में आना हुआ .अब तक पहाड़ों से रहने का अनुभव था पर अब भारत के दिल यानिकि दिल्ली आ गयी . नयी जगह के साथ नयी दिनचर्या और नए दोस्त मिल गये. शनिवार रविवार छुट्टी रहने कि वजह से दिल्ली का चप्पा चप्पा छान मारा था तब .दिल्ली मेट्रो तभी से मेरी पसंदीदा बन गयी थी जो अभी भी है .
मैंने छह महीने पंतनगर में और छह महीने बरेली के श्री राम मूर्ति स्मारक इंजीनिरिंग कॉलेज में लेक्चरर के रूप में काम किया . इस दिशा में कार्य करने का ज्यादा अवसर नहीं मिला क्यूंकि जल्दी ही शादी हो गयी और बैंगलोर आ गयी।
2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?
पिछले छह सालों से बैंगलोर में ही जमे हुये हैं . घर में एक पांच साल कि बेटी और मेरे पति विनय है जो कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर है . इसके अतिरिक्त मायके ससुराल दोनों में भरा पूरा परिवार है . मेरा एक छोटा भाई है जो कि उत्तराखंड में ही सेवारत है और देवर बैंगलोर में ही है .हाल फ़िलहाल मैं अभी बच्चे के कारण जॉब नहीं कर पा रही हूँ।
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?
ये गुण विरासत में मिला होगा क्यूंकि मेरे पापा घूमने के शौक़ीन हैं. बाकि शादी से पहले जब हम दोनों में बातचीत हुयी तो विनय की तरफ से सवाल आया था क्या शौक है तो मैंने जवाब दिया जिंदगी में एक ही शौक है घूमने का, तो यहीं पर अपनी बात पक्की हो गयी. जीवन साथी ऐसा मिला जो खुद ही घूमने का शौक़ीन निकला और तब से हमारी घुमक्कड़ी जारी है
4 – ट्रेकिंग वगैरहा भी करती हैं? किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं?
घुमक्क्ड़ी तो घुमक्कड़ी है हर तरह की पसंद है अभी साथ में छोटा बच्चा है तो अधिकतर ऐसी जगहों में जाते हैं जहाँ जाने में बेटी भी आराम से जा सके तो ट्रैकिंग नहीं हो पाती है .
5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?
पहली बार की बात करूँ तो मुझे समझ नहीं आ रहा किसे पहला कहूं. कुछ यादें आ रही हैं तो सभी बता देती हूँ .अपनी याद में सबसे पहले मैं स्कूल से एजुकेशनल टूर पर अल्मोड़ा के समीप पपरसेली गयी थी और तब मैंने पहली बार हैंड पंप देखा और चलाया था ये मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम ना था . इसके अतिरिक्त परिवार के साथ मैं सबसे पहले मैं महाराष्ट्र गयी थी वहां अजंता -एलोरा, दौलताबाद देखा था .ब्लॉगिंग के लिहाज से मैंने सबसे पहले ऊटी की यात्रा लिखी है इसमें ये सीखा था कि हाथी का कभी फोटो लेना हो तो फ़्लैश लाइट उसकी आँख में नहीं पड़नी चाहिए वर्ना वो बिदक सकता है .
6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?
परिवार की प्रथमिकता पहले है तो उसीके हिसाब से कोई प्लान बनाते हैं ,अभी फ़िलहाल छोटा बच्चा है साथ में तो उन जगहों को कवर कर रहे हैं जो कि आसानी से कि जा सकती हैं .
7 – आपकी अन्य रुचियों के विषय में बताईए?
गाने सुनना, सोना और गूगल सर्फिंग
8 – घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?
जिंदगी एक सफर ही है इसमें जितने ज्यादा से ज्यादा स्टेशन देख लें उतना अच्छा है. अलग अलग जगहों का अलग अलग रहन सहन, अलग संस्कृति , अलग खान पान बहुत कुछ जानने और सिखने को मिलता है घुमक्कड़ी से .घुमक्कड़ी ज्ञान का एक असीमित भंडार है .
9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?
सबसे रोमांचक यात्रा के नाम पर एक ही याद आती है .एक बार में हल्द्वानी से पौड़ी जा रही थी. मैं हल्द्वानी से कोटद्वार तक डायरेक्ट बस से पहुँच गयी थी और तभी कोटद्वार में बारिश होने लगी मुझे उसी दिन पहुंचना जरुरी था तो मेरे पास रुकने का विकल्प नहीं था तो मैं एक टेक्सी जो पौड़ी जा रही थी में बैठ गयी और अब्भी गुमखाल तक भी नहीं पहुंचे कि दोनों तरफ पहाड़ों पर सफ़ेद सफ़ेद बर्फ दिखने लगी और मन में आया वाह अब तो रास्ता बढ़िया काटने वाला है पर गुमखाल से आगे रोड ब्लॉक थी अब गाड़ी ना आगे जाने जैसी ना पीछे !! अब बड़ी समस्या हो गयी दूसरी दिक्कत ये भी थी एक मेरी वाली टेक्सी में कोई लेडीज सवारी भी नहीं थी तो अब घर वाले भी थोड़ा चिंतित होने लगे . अब वहां पर खड़े हो कर रुकने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था. धीरे धीरे कर के शाम हो गयी अब तो मुझे भी डर लगने लगा था और थोड़ी देर में मेरी वाली टेक्सी से दो लोग बोले कि वो पैदल जा रहे हैं ,वो दोनों मुझे पूरी टेक्सी में वो ही दो लोग ठीक लग रहे थे तो मैंने उनसे पूछ लिया कि मैं भी चलूँ आपके साथ तो जवाब आया चल सकती है तो चल, अब अकेले छोड़ कर भी कैसे जाएँ और उनके साथ में बर्फ में सोलह किलोमीटर चल कर मैं पौड़ी पहुंची. इस घटना से मुझे अनुभव कि इंसानियत अभी मरी नहीं है आज भी अच्छे लोग जिन्दा हैं.
घुमक्कड़ी तो अभी बस शुरू ही हुयी है ,अपने कदम अभी तक उत्तराखंड, हिमाचल, राजस्थान,कर्नाटक,आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना,ओडिशा, अंडमान, पॉन्डिचेरी और गोवा तक पड़े हैं.अरे हाँ अमेरिका के बारे में तो बताना ही भूल गयी, वहां की राजधानी वाशिंगटन, न्यूयोर्क और फ्लोरिडा का ऑर्लैंडो वो ही मैजिक किंगडम वाला देखा हुआ है।
10 – नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?
बस इतना ही कहूँगी ” सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ, जिंदगानी गर रही भी तो नौजवानी फिर कहाँ “”।
शानदार
Travel related point.
कुछ नया मिलेगा.
वाह ! हर्षिता जी बहुत बढ़िया और प्रेरणादायी साक्षात्कार ।
दरोगा बाबू धन्यवाद
बहुत सुन्दर विवरण आनन्द आया पढ़कर।साथ ही एक सीख और मिली, विश्वास बढ़ा कि अभी इंसानियत जिंदा है।
जी सही कहा आपने कि इंसानियत अभी जिंदा है
बहुत बढ़िया और प्रेरणादायी साक्षात्कार ।
धन्यवाद
बहुत सुंदर साहसी विवरण ।
आपकी सार्थक कोशिश का अभिनन्दन
।। ॐ।।
बहुत सुंदर साहसी विवरण ।
आपकी सार्थक कोशिश का अभिनन्दन
रुचिकर और ज्ञानवर्धक
।। ॐ।।
वाह Ladies First के कथन को सार्थक करती इस शानदार नई शुरुआत के लिए बहुत बहुत बधाई! हर्षिता को बहुत दिनों से जानता हूं लेकिन फिर भी बहुत कुछ नया जानने को मिला उसके लिए शुक्रिया ओर हर्षिता जी उनके आने वाले सुखद ओर घुमक्कड़ी भरे जीवन के लिए ढेरों शुभकामनाये
आभार
अच्छी शुरुआत है ये किसी के घुमक्कड़ी जीवन से परिचित होने का । ललित जी आपका प्रयास सराहनीय है आपको धन्यवाद ।
हर्षिता सर्वप्रथम आपको बधाई और आपके जीवन के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा ।
धन्यवाद रितेश जी
शानदार शुरूआत ।
Hi Harshita,
Congrates for your blog..what a amzing interview.
If you remember we did our graduation together.
Yes.we should enjoy our life..live each nd every moment of life.
हाँ हाँ नितिन मुझे अच्छे से याद है। हम लोग कॉलेज टूर में बिनसर और दुनागिरी भी तो गए थे
Very nice Harshita! Khoob ghoomo aur khush raho!
थैंक्यू कविता।
बहुत अच्छी शुरूआत करी है गुरुदेव
वाह यह कॉलम बढ़िया शुरू किया है आपने
Bhaut sundar bhai ji
Harshit ji
Aapse milkar prasannta hui
ये जानकर मुझे भी बहुत प्रसन्नता हुई
हर्षिता जी बहुत बढ़िया .Keep it up.
आभार
बहुत अच्छा लगता है वर्तमान की भाग-दौड़ भरी जिंदगी से समय निकाल का महिलाएँ भी घुमककड़ी में किसी से पीछे नहीं है ! वैसे तो आपसे घुमककड़ी ग्रुप पर काफ़ी समय से जानकारी है फिर भी काफ़ी कुछ नया जानने को मिला ! बढ़िया साक्षात्कार !
सही कहा आपने परिचय तो काफी पुराना है
waah harshita ji,
aaj padha aapka interview. kab publish ho gayi dhyaan nahin aayaa. badhiya bayata aapne pahadi to waise bhi ghumakkad hote hai hain, nasargik gun trekking hi hai, par aapne yah abhi kiya nahin. koi baat nahin. aap maidaani jagahon ki napiya ham pahadon ko naapte hain.
सबसे पहले पब्लिश हुआ था प्रकाश जी। सही कहा आपने घूमना पहाड़ियों का नैसर्गिक गुण है। हल्की फुल्की ट्रैकिंग तो हम लोगों की कही भी आते जाते हो जाती है सामान्य तौर पर घर भी जाना हो तो सौ पचास सीढियां तो चढ़नी रहती ही हैं क्योंकि अल्मोड़ा को सीढ़ियों के शहर के तौर पर भी जाना जाता है सो बचपन से ही चढ़ने और चलने की खूब आदत रही है। बस आजकल आपकी दुआ से मैदान नाप रहे हैं।
घुमक्कड़ी एक नशा सा चढ़ता है और जीवन को आनंदित कर देता है। शानदार साक्षात्कार। अगर फॉन्ट साइज़ थोड़ा बड़ा हो सके पढने में ज्यादा सहूलियत होगी। शुक्रिया।