सोयाबीन की अधिक उत्पादन देने वाली किस्में विकसित करें वैज्ञानिक: डॉ. पाटील
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन अनुसंधान परियोजना की 48वीं वार्षिक समूह बैठक आज यहां कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागार में प्रारंभ हुई।
वार्षिक बैठक के शुभारंभ सत्र को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित करते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति डॉ. एस.के. पाटील ने देश में सोयाबीन के रकबे, उत्पादन और उत्पादकता मे कमी पर चिन्ता जताते हुए सोयाबीन की अधिक उत्पादन देने वाली नवीन किस्में विकसित करने और उन्हें किसानों तक पहुंचाने का आव्हान किया। बैठक की अध्यक्षता भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर के निदेशक डॉ. व्ही.एस. भाटिया ने की। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक (बीज) डॉ. डी.के. यादव विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। बैठक में सोयाबीन परियोजना के तहत देश भर में संचालित 22 केन्द्रों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
बैठक को संबोधित करते हुए डॉ. पाटील ने कहा कि छत्तीसगढ़ में दुर्ग, बेमेतरा और कबीरधाम जिलों में लगभग तीन लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सोयाबीन की खेती की जाती है। उन्होंने राज्य में सोयाबीन के रकबे को बढ़ाने के लिए नये क्षेत्रों की पहचान कर वहां सोयाबीन की फसल लिए जाने की जरूरत बताई। उन्होंने सोयाबीन का बीज उत्पादन बढ़ाने पर भी जोर दिया। डॉ. पाटील ने कहा कि सोयाबीन में म्यूटेशन ब्रीडिंग की काफी संभावनाएं हैं जिससे इसमें प्रजातीय विविधता बढ़ाई जा सके। उन्होंने सोयाबीन की खेती में कृषि यंत्रों के उपयोग की आवश्यकता भी जताई।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक (बीज) डॉ. डी.के. यादव ने कहा कि देश में बहुत बड़े क्षेत्र में सोयाबीन का उत्पादन हो रहा है। अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन परियोजना के तहत संचालित विभिन्न केन्द्रों में इस पर व्यापक अनुसंधान भी हो रहा है। उन्होंने कहा कि जो केन्द्र अनुसंधान की किसी विशिष्ट क्षेत्र में उत्कृष्टता के साथ कार्य कर रहे हैं उन्हें उन्हीं विशिष्ट क्षेत्रों पर कार्य केन्द्रित करना चाहिए। उन्होंने सभी केन्द्रों को सफलता की कहानियां जारी करने के निर्देश दिए।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर के निदेशक डॉ. व्ही.एस. भाटिया ने अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन परियोजना के संबंध में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि भारत में वर्ष 2012 के बाद से मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण सोयाबीन के रकबे, उत्पादन और उत्पादकता में कमी आई है। सोयाबीन के रकबे में लगभग 7 प्रतिशत और उत्पादन में लगभग 11 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से सोयाबीन की ऐसी नयी किस्में विकसित करने का आव्हान किया जो मानसून में देरी, सूखा, अतिवर्षा और उच्च तापक्रम के प्रति सहनशील हों और अधिक उत्पादन दे सकें। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक अनुसंधान डॉ. एस.एस. राव ने कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालित गतिविधियों और उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। परियोजना के प्रमुख अन्वेषक डॉ. राजेन्द्र लाकपाले ने अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया।