कहाँ हैं कलियाँ ,फूल कहाँ हैं ?
माटी के कण-कण में क्रंदन, चन्दन जैसी धूल कहाँ है ,
मायूसी के इस मौसम में कहाँ हैं कलियाँ ,फूल कहाँ हैं ?
कहाँ हैं खुशबू, कहाँ हैं खुशियाँ , कहाँ नया संगीत है बोलो ,
विश्वास न हो तो इतिहास को देखो ,वर्तमान के पन्ने खोलो !
वही वचन है , वही भजन है , आवाज़ वही है भाषण की ,
वही रुदन है , वही चीख है, वही सीख है अनुशासन की !
भीख मांगते इंसानों की मीलों लम्बी कतार वही है ,
बरसों के इस अंधियारे में सुबह का इंतज़ार वही है !
कुछ चेहरों पर चर्बी चढ़ गयी और अनगिनत चेहरे सूखे ,
कुछ लोगों की भरपूर रसोई और अनगिनत लोग है भूखे !
सड़कों पर यहाँ बिखरा-बिखरा इंसानों का रक्त वही है ,
केवल करवट बदली इसने ,यह पुराना वक्त वही है !
नए साल का यह दिखावा , फिर भी तो हर साल आता है ,
चूल्हे की बुझी-बुझी राख पर चुटकी भर उबाल आता है !
स्वराज्य करुण