राखीगढ़ी का उत्खनन, डीएनए और आर्य आक्रमण सिद्धांत का सच
राखी गढ़ी (हरियाणा) में उत्खनन के पश्चात भारतीय इतिहास को बदलने वाली कई खोजें सामने आई, यहाँ उत्खनन करने वाले डेक्कन युनिर्वसिटी के कुलपति डॉ बसंत शिंदे से दीपाली पाटवडकर ने बात की। इस वार्तालाप का हिन्दी अनुवाद योगिनी बर्डे द्वारा किया गया तथा यह अनुवादित साक्षात्कार साप्ताहिक विवेक में प्रकाशित किया गया है।
कुछ दिन पहले, हरियाणा में राखीगढ़ी की खुदाई की खबर जारी की गई थी। हड़प्पा संस्कृति के इस गांव में ईसा. पूर्व 6,500 के मानव संस्कृति अवशेष मिले हैं। हाल ही में की गई खुदाई में यहां मानव कंकाल मिले हैं। इन कंकालों के डीएनए नमूनों का विश्लेषण प्रयोगशाला में किया गया। जिससे ये पता चला की इनके पूर्वज मध्य एशिया के निवासी नहीं थे, और इन DNA नमूनों में स्थानीय ancestory होने के सबूत मिले है। यह उत्खनन डेक्कन कॉलेज के कुलपति, डॉ. वसंत शिंदे और उनकी टीम किया । उस बारे में डॉ. शिंदेजी के साथ दीपाली पाटवडकर का साक्षात्कार प्रस्तुत है…
प्रश्न: नमस्कार महोदय! सबसे पहले, इस महत्वपूर्ण खोज के लिए आप और आपके सहयोगियों की हार्दिक बधाई! राखीगढ़ी की खुदाई के बारे में आपसे जानना चाहते हैं?
डॉ. शिंदे: राखीगढ़ी से पहले कुछ स्थानों पर मानव कंकाल मिले थे। लेकिन उनसे डीएनए प्राप्त नहीं हो पाया था। ये बात ध्यान मे रखते हुए हमने राखीगढ़ी मे सावधानीपूर्वक उन कंकालो को निकाला ताकि वो किसी भी प्रकार से दूषित ना हो जिन्हें 4,500 साल पहले राखीगढ़ी में दफनाया गया था। हमे डीएनए के तीन अच्छे नमूने मिले। इस डीएनए नमूने के विश्लेषण के लिये लखनऊ के शोध केंद्र और हार्वर्ड की एक प्रयोगशाला मे भेजा गया था। इन दोनों स्थानों की रिपोर्ट काफ़ी हद तक समान है|
प्रश्न: इस विश्लेषण के परिणाम क्या हैं?
डॉ. शिंदे: ऐसा लगता है कि यह डीएनए पूरी तरह से स्वदेशी है, भारतीय है।| यह डीएनए ईरानी लोगों के साथ थोड़ा संबंध दर्शाता है, लेकिन मध्य एशिया के लोगों से कोई संबंध नहीं दर्शाता। Central Asian DNA का कोई निशान नहीं है हालांकि Local Ancestry देखी जा सकती है।
प्रश्न: AIT पर इस खोज का क्या प्रभाव है?
डॉ. शिंदे: पहले, देखते हैं कि AIT अर्थात Aryan Invasion Theory (आर्य आक्रमण सिद्धांत) क्या है। सबसे पहले, जर्मन विद्वान मैक्समुलर ने वेदों का अध्ययन किया। इसमें बार बार आनेवाले, ‘आर्य’ शब्द के उल्लेख से, उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि आर्य कहीं बाहर से आए हैं। उसके बाद, ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने भी यही विचार लिया। आजादी के बाद, भारतीय शोधकर्ताओं मे भी इस संबंध में मतभेद थे।
कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, आर्य भारतीय थे, जबकि अन्य ने अंग्रेजों के मतो का अनुसरण किया। ‘आर्यों ने हमला किया था’ यह साबित करने के लिए आज तक कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया है।
इस आर्य मुद्दे में पुरातात्विक और अनुवांशिक सबूत प्राप्त करने के लिए राखीगढ़ी की खुदाई महत्वपूर्ण है। यह उत्खनन दिखाता है कि राखीगढ़ी के लोग इसी भूमि मे रचे बसे थे। इसके अलावा, यह भी समझ आता है कि इस तरह के डीएनए वर्तमान में हरियाणा के लोगों में पाए जाते है।
हाल ही में, डॉ. ज्ञानेश्वर चौबे (जनुकीय शास्त्रज्ञ, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) द्वारा किए गए जनुकीय संशोधना का निष्कर्ष यह है कि भारतीय लोगों में पिछले 10 हजार वर्षों से genetic continuity देखा गया है। बाहर से कोई आया हुआ नही दिखाई देता|
प्रश्न: भारत मे “जेनेटिक कंटिन्यूयिटी“ के साथ साथ “कल्चरल कंटिन्यूयिटी” के बारे भी विशेष चर्चा होती है. तो इस प्रकार की “कल्चरल कंटिन्यूयिटी” के बारे मे राखीगढ़ के उत्खनन मे कुछ पता चलता है?
डॉ. शिंदे: पाकिस्तान में मेहेरगढ़ और गुजरात में भीराना इस संबंध मे महत्वपूर्ण स्थान है । यहां काफ़ी अच्छा उत्खनन हुआ है। लगभग 8,500 साल पहले के अवशेष यहां हैं। इस दौरान के, विकास के विभिन्न चरण यहाँ देखे जा सकते है। पहले छोटे घर, फिर आयताकार घर, उसके बाद, कई कमरों वाले घर| यहाँ योजनाबद्ध शहर भी दिखता है। कृषि से संबंधित प्रगति भी यहाँ देखी जा सकती है| विभिन्न प्रकार के मिट्टी के बर्तन भी यहाँ की तकनीकी और सामाजिक प्रगति को दर्शाते है। अगर हमने माना की आर्य बाहर से आए थे, तो वे अपनी संस्कृति और तकनीक भी साथ लाते और परिणामस्वरूप हमे यहाँ के जनजीवन मे कुछ अचानक बदलाव दिखाई देते। जबकि ऐसे कुछ बदलाव नही दिखाई देते है, जो भी बदलाव है वह क्रम के अनुसार दिखाते है। परंपराएँ कही भी खंडित नही दिखाई देती।
यह निरंतर धारा आज भी आज तक बहती है। उदाहरण के लिए, कच्छ में हड़प्पा के दिनों में जिस प्रकार के मोतियों का भी उपयोग किया जाता था, और आज किया जाता है, और वे एक ही विधि का उपयोग करके बनाए जाते है। ऐसी कई परंपराओं को संरक्षित किया गया है। ऐसा लगता है कि एक सांस्कृतिक निरंतरता Cultural continuity है।
प्रश्न: अगर आर्य बाहर से नहीं आए,, तो भारत में आर्य – द्रविड़ विभाजन के बारे में आपकी क्या राय है?
डॉ. शिंदे: जैसे ही AIT एक कृत्रिम सिद्धांत था, वैसेही आर्यन-द्रविड़ विभाजन भी कृत्रिम है। अगर आर्य बाहर से नहीं आए थे, तो उन्होने यहाँ के मूल निवासियोको बाहर खदेड़ने का सवाल ही नही आता।
प्रश्न: जाति, उपजाति के विभाजन के बारे में डीएनए की विश्लेषण से क्या पता चलता है?
डॉ. शिंदे: भारत के लोगों में एक प्रकार की डीएनए दिखाई पडती है। जिससे यह निश्चित होता है कि सभी लोग मूल निवासी भी है, और सबके पूर्वज एक है। धर्म, वर्ण, जाति, Race यह सारे विभाजन पूर्णत: कृत्रिम है |
प्रश्न: ईसा पूर्व 2000 के करीब, हड़प्पा सभ्यता के लोग किसी दूसरी जगह स्थानांतरित हो गए थे। क्या इसका कुछ प्रभाव दिखता है?
आर्य बाहर से आए थे इसका तो कोई सबूत नही मिलता लेकिन, इसके विपरीत, साक्ष्य पाया जाता है- कि इधर से लोग बाहर गए थे। जैसे ही हड़प्पा के लोग गांव छोड़कर चारों दिशाओं को बिखरे गए थे। कुछ लोग पूर्व, दक्षिण में बस गए हैं। साथ मे वे अपनी संस्कृति और तकनीक भी लेकर गये। इसलिए उन रिहायशी क्षेत्रों मे अचानक बदलाव, विकास देखे जा सकते है। हड़प्पा के कुछ लोग पश्चिम में चले गए। संदर्भ इस पूर्व 1800 के दौरान, इराक में हिटाईट लोगों के दस्तावजों मे इंद्र, वरुण इत्यादि वैदिक देवताओं के नाम हैं । इससे निष्कर्ष निकलता है की वे भारत से वहां गये थे।
प्रश्न: क्या उत्खनन से मिले सबूतों को वैदिक साहित्य मे कुछ समर्थन मिलता है?
ऋग्वेद में, सरस्वती नदी की प्रशंसा की गई है और नदी के तट पर शहरों का उल्लेख किया गया है। कई वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्तमान घग्गर नदी प्राचीन सरस्वती नदी है। पुरातात्विक उत्खनन में, घग्गर के तटों पर, हड़प्पा संस्कृति के शहर पाए जाते हैं, जैसे राखीगढ़ी, कालीबंगा और बनवाली । इस नदी के तट पर 65% से अधिक शहर, रिहायशी क्षेत्र पाए जा सकते हैं। ऐसे शहर हड़प्पा पूर्व अतीत में मौजूद नहीं हैं, और न हीं बाद में । तो ऐसा लगता है कि हड़प्पा के लोगों ने ऋग्वेद की रचना की है ।
इन के अलावा, गांवों में अग्निकुंड पाए गए हैं। विशेष रूप से, राखीगढ़ी में विभिन्न आकारों के अग्निकुंड थे, मानव आकार के अग्निकुंड भी पाये गये हैं । इससे ये प्रतीत होता है के ये यज्ञ करनेवाले लोग थे, जिनका वर्णन ऋग्वेद में पाया जाता है।
क्या हड़प्पा के लोग और ऋग्वेद लिखने वाले लोग एक ही है? इसके बारे में विशेष शोध की आवश्यकता है।
प्रश्न: हाल ही में, दिल्ली के पास सिनौली में तीन रथों के अवशेष पाए गए हैं। क्या आप इसके बारे में कुछ बता सकते हैं?
डॉ. शिंदे: यह वास्तव में एक बहुत ही महत्वपूर्ण खोज है। वे सेनानी थे जो लोग रथ बनाते थे। AIT का मानना यह है कि, ‘आर्य’ लोग भारत में रथ और घोड़े लाए। लेकिन यहां तो पहले से ही रथ देख चुके हैं । शायद वह रथ खींचने के लिए घोड़ों का इस्तेमाल करते थे। यह खोज AIT पर फिर से एक प्रश्न चिह्न का कारण बनती है। इधर भी डीएनए का अध्ययन करना आवश्यक है।
प्रश्न: यहाँ से हड़प्पन संस्कृति के अध्ययन का प्रवास कैसे होगा?
डॉ. शिंदे: राखीगढी का अनुसंधान सिर्फ शुरुआत है। इससे कई चीज़े निश्चित रूप मे उभरकर सामने आई है । जल्द ही संशोधन पत्र प्रकाशित किया जाएगा। लेकिन इस शोध को पूरा करने के लिए और अध्ययन की आवश्यकता है। विभिन्न दौर के और विभिन्न क्षेत्रों से मानव डीएनए प्राप्त करना आवश्यक है। उनके अध्ययनों से ही हड़प्पा के बारे में विस्तृत जानकारी सामने आएगी।
कुछ खोजें इतिहास बदलने का सामर्थ्य रखती हैं, ये उनमे से एक है। शानदार, महत्वपूर्ण जानकारी… साझा करने हेतु आभार
यह प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है की मँक्समुलर और मँकाले द्वारा कलुषीत कीये गये गौरवशाली ईतीहास को ऐसेही ठोस प्रमानो के द्वारा फीरसे प्रज्वलीत कीया जाये। मै आपके कार्य के लीये आपको ह्रुदय से धन्यवाद देता हु ।