असम के प्रवासी छत्तीसगढ़ियों साथ पहुना संवाद
पूर्वोत्तर राज्य असम में डेढ़ सौ साल पहले चाय बागानों में रोजगार के लिए गए छत्तीसगढ़ के लोगों की पांचवीं पीढ़ी वहां निवास कर रही है, जिसने वहां छत्तीसगढ़ की सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं को और छत्तीसगढ़ी भाषा को संजोकर रखा है।
छत्तीसगढ़ सरकार के संस्कृति विभाग ने उन्हें राजधानी रायपुर आमंत्रित किया और विभाग द्वारा उनके साथ परस्पर संवाद के लिए यहां परिचर्चा के दो दिवसीय कार्यक्रम ’पहुना संवाद’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। महंत घासीदास संग्रहालय के सभागार में आज परिचर्चा का समापन हुआ। समापन सत्र में छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।
परिचर्चा ’पहुना संवाद’ के समापन अवसर पर असम से आए प्रतिनिधियों ने आज बताया-लगभग 150 वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ के लोगों को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा असम के चाय बगानों में काम करवाने के लिए ले जाया गया था। असम से आये 28 सदस्यीय दल के सदस्यों ने बताया -यहां पर अपने पुरखों की भूमि में आकर खुशी महसूस कर रहे हैं। हम लोगों ने वहां छत्तीसगढ़ के त्यौहार, छत्तीसगढ़ी लोक गीत और लोक संगीत तथा खानपान की सभी परम्पराओं को सहेज कर रखा है। छत्तीसगढ़ के लोग वहां सांसद और विधायक भी निर्वाचित हुए हैं, सरकारी नौकरियों में भी कार्यरत हैं।
श्री दीपलाल सतनामी ने बताया-छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद मिनी माता जी का जन्म भी असम राज्य में हुआ था। छत्तीसगढ़ वित्त आयोग के अध्यक्ष श्री चंद्रशेखर साहू ने छत्तीसगढ़ और असम राज्य के वर्षो पुराने सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों पर विस्तार से चर्चा की। संस्कृति विभाग के संचालक श्री आशुतोष मिश्रा ने कहा – छत्तीसगढ़ सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा इस आयोजन के माध्यम से मूल छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं छत्तीसगढ़ के लोग जो अन्य प्रदेशों में पीढ़ियों से निवासरत है, उनकी संस्कृति में क्या प्रभाव पड़ा है, इसे जानने का प्रयास किया जा रहा है।
संस्कृति विभाग के पूर्व संयुक्त संचालक श्री अशोक तिवारी ने कहा – असम में रहने वाले छत्तीसगढ़ के लोगों के साथ शासकीय स्तर पर संवाद और सम्पर्क का यह पहला प्रयास है। असम से आये प्रतिनिधि मंडल के प्रमुख श्री शंकर चंद साहू ने सुझाव दिया कि असम में रहने वाले छत्तीसगढ़ के लोगों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए वहां छत्तीसगढ़ी संस्कृति केन्द्र की स्थापना होनी चाहिए। परिचर्चा में छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध इतिहासकार आचार्य रमेन्द्रनाथ मिश्र, साहित्यकार डॉ. जे.आर. सोनी, गीतकार श्री लक्ष्मण मस्तूरिया, लेखकगण सर्वश्री आशीष ठाकुर, जागेश्वर साहू, ललित शर्मा और संजीव तिवारी सहित कई प्रबुद्ध नागरिकों ने अपने विचार व्यक्त किए। राजनांदगांव के पूर्व सांसद श्री प्रदीप गांधी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
कार्यक्रम में असम के प्रतिनिधियों में से सर्वश्री शंकर चंद्र साहू, गणपत साहू, जागेश्वर साहू, दीपलाल सतनामी, त्रिलोक कपूर सिंह, दाताराम साहू, तुलसी साहू, रमेश लोधी, नितिश कुमार गोंड और श्रीमती पूर्णिमा साहू सहित अन्य लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने बताया- छत्तीसगढ़ के लोग असम के कछार, कोकराझार, उदालगिरी, सोनितपुर, नौगांव, उत्तरी लखीमपुर, गोलाघाट, जोरहट, शिवसागर, डिबरूगढ़, तिनसुकिया और होजाई जिलों में निवास करते हैं, जो वहां पर चाय बागानों में काम कर रहे हैं और खेती-किसानी सहित अन्य व्यवसायों में भी लगे हैं। वहां छत्तीसगढ़ के विहाव, गीत, कर्मा, ददरिया, सुआ-गीत, गौरा-गौरी गीत तथा देवारी गीत गाने की परम्परा है तथा वहां पर हरेली और छेरछेरा भी मनाते हैं। इस तरह छत्तीसगढ़ी भाषा एवं संस्कृति को कायम रखे हैं।