रामबाण औषधियों का निर्माण छत्तीसगढ़ के वनों में

रायपुर, 09 सितम्बर 2014/ वन सम्पदा से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ के वनों में लोगों को जीवन देने वाली मूल्यवान आयुर्वेदिक वनौषधियों का व्यावसायिक उत्पादन भी शुरू हो गया है, जो विभिन्न बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए रामबाण साबित हो रही हैं। वनौषधि उत्पादन के इस कार्य में बड़ी संख्या में स्थानीय वनवासी परिवारों को रोजगार भी मिल रहा हैै। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ के वनों को वनवासियों की आमदनी बढ़ाने और उनके रोजगार से जोड़ने की नीति अपनाई है। इस नीति के अनुरूप ग्रामीणों की ग्राम वन समितियों और  महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा वनौषधियों का संग्रहण कर बाजार की मांग के अनुसार उनका प्रसंस्करण भी किया जा रहा है। इसके लिए राज्य के 27 में से 5 जिलों में सात स्थानों पर वनौषधि प्रसंस्करण केन्द्र संचालित किए जा रहे हैं। इनमें तैयार वनौषधियों को अच्छी आकर्षक पैकेजिंग के साथ राज्य शासन द्वारा ‘छत्तीसगढ़ हर्बल्स’ के ब्रांड नाम से बाजार में उतारा गया है। इस ब्रांड नाम के साथ इन उत्पादों को आयुर्वेदिक डॉक्टरों , मरीजों और ग्राहकों का अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है।

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राजधानी रायपुर में गांधी उद्यान के नजदीक जी.ई. रोड पर स्थित छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ की दुकान ‘संजीवनी’ में पिछले वित्तीय वर्ष 2013-14 में इन प्रसंस्करण केन्द्रों से प्राप्त वनौषधियों की लगभग 34 लाख 77 हजार रूपए की बिक्री हुई। वनोपज संघ के अधिकारियों ने आज यहां बताया कि  इसे मिलाकर रायपुर के संजीवनी रिटेल आउटलेट में नौ साल मेें करीब दो करोड़ 17 लाख रूपए की वनौषधियों की बिक्री हो चुकी है। वर्ष 2005-06 में जब इस आउटलेट की शुरूआत हुई, उस समय इसमें 11 लाख 75 हजार रूपए की सामग्री बेची गई। अब पिछले साल 2013-14 में बिक्री का आंकड़ा बढ़कर लगभग तीन गुना हो गया। प्रदेश के वन क्षेत्रों में वनौषधि प्रसंस्करण केन्द्रों में तैयार की जा रही 102 आयुर्वेदिक वनौषधियों को छत्तीसगढ़ सरकार के आयुष विभाग द्वारा ड्रग एवं कासमेटिक एक्ट के अनुसार लाइसेंस भी मिल गया है। इनकी मार्केटिंग के लिए राज्य में छह स्थानों पर गैर काष्ठीय वनोपज (नॉनवुड फॉरेस्ट प्रोड्यूज) मार्ट और 32 स्थानों पर संजीवनी केन्द्रों की स्थापना की गई है। रायपुर के अलावा जिला मुख्यालय दुर्ग, बिलासपुर, अम्बिकापुर, कांकेर और जगदलपुर में भी संजीवनी केन्द्र रिटेल आउटलेट संचालित किए जा रहे हैं।
राज्य के सुदूर वन क्षेत्रों में आयुर्वेदिक औषधियों के उत्पादन का यह कार्य लघु एवं कुटीर उद्योग के रूप में हो रहा है। ये वनौषधि प्रसंस्करण केन्द्र कोरबा जिले के डोंगानाला परिक्षेत्र में ग्राम वन समिति द्वारा, बस्तर (जगदलपुर) जिले के ग्राम कुरंदी (माचकोट परिक्षेत्र) में मां दंतेश्वरी ज्योति महिला स्व-समूह द्वारा, जिला गरियाबंद के ग्राम केशोडार में भूतेश्वरनाथ वनौषधि प्रसंस्करण केन्द्र द्वारा और जशपुर जिले के ग्राम पनचक्की में दंतेश्वरी स्व-सहायता समूह द्वारा चलाए जा रहे हैं। बिलासपुर जिले के ग्राम केंवची में मां नर्मदा स्व-सहायता समूह और इसी जिले के ग्राम अतरिया में योगिता महिला स्व-सहायता समूह ने भी वनौषधि प्रसंस्करण केन्द्रों की शुरूआत कर दी है। नारायणपुर जिले के मुख्यालय नारायणपुर में धनवंतरि स्व-सहायता समूह भी वनौषधि प्रसंस्करण केन्द्र संचालित कर रहा है। डोगानाला (जिला कोरबा) के प्रसंस्करण केन्द्र में त्रिफला चूर्ण, पंचसम चूर्ण, शतावरी चूर्ण, मधुमेहांतक चूर्ण, पायोकिल (दंत मंजन), सर्दी-खांसी नाशक चूर्ण, हर्बल कॉफी चूर्ण, हर्बल मधुमेहनाशक चूर्ण, फेसपेक चूर्ण और केशपाल चूर्ण का उत्पादन हो रहा है। ग्राम कुरंदी (जिला बस्तर) के औषधि प्रसंस्करण केन्द्र में गुड़मार चूर्ण, सर्पगंधा चूर्ण, गिलोय चूर्ण, नीमपत्र चूर्ण सहित बारह प्रकार के चूर्ण तैयार किए जा रहे हैं। गरियाबंद जिले के केसोडार स्थित प्रसंस्करण केन्द्र में भी बारह प्रकार की औषधियां तैयार की जा रही है, जिनमें दर्द निवारक महाविष गर्भ तेल सहित भृंगराज तेल, अश्वगंधा चूर्ण, तुलसी चूर्ण आदि शामिल हैं। जशपुर जिले के ग्राम पनचक्की में संचालित वनौषधि प्रसंस्करण केन्द्र में च्यवनप्राश, कौंचपाक और वासअवलेह भी बनाया जा रहा है। कुछ केन्द्रों में शहद का भी उत्पादन हो रहा है।
अधिकारियों ने बताया कि बिलासपुर जिले के केंवची में स्थित प्रसंस्करण केन्द्र में नौ प्रकार के औषधीय चूर्ण तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें कालमेघ, त्रिफला, पंचसकार, आमलकी आदि के चूर्ण शामिल हैं। बिलासपुर जिले के ही ग्राम अतरिया के प्रसंस्करण केन्द्र में च्यवनप्रास सहित 22 प्रकार के औषधीय चूर्ण और तेल का उत्पादन हो रहा है। जिला मुख्यालय नारायणपुर में संचालित प्रसंस्करण केन्द्र में आठ प्रकार के तेल सहित 32 प्रकार की औषधियां तैयार की जा रही है। इनमें केशविलास तेल, निर्गुण्डी तेल, कर्णरोग नाशक तेल, गोमूत्र क्षार चूर्ण (वटी), सप्तपर्ण घनादि (मलेरिया वटी), ब्राम्ही वटी, गिलोय सत्व आदि शामिल हैं। प्रसंस्करण केन्द्रों में इन सभी वनौषधियों का उत्पादन विशेषज्ञों की देख-रेख में किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि ये सभी वनौषधियां कई प्रकार के बीमारियों के इलाज में कारगर साबित हो रही है, जैसे गिलोय चूर्ण का इस्तेमाल चर्मरोग, वातरक्त ज्वर, पीलिया और रक्ताल्पता (एनिमिया) में काफी उपयोगी है। तुलसी चूर्ण का उपयोग सर्दी-खांसी, कृमिरोग, नेत्र रोग आदि में किया जा सकता है। जामुन-गुठली चूर्ण का इस्तेमाल मधुमेह की बीमारी में काफी लाभदायक है। जोड़ों के दर्द, कमर दर्द, बदन दर्द आदि वात रोगों में महाविषगर्भ तेल का उपयोग किया जा सकता है। च्यवनप्राश का उपयोग शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने में किया जा सकता है।

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