खजुराहो शैली की प्रतिमाएँ : फ़णीकेश्वर महादेव

रायपुर से 70 किमी की दूरी पर फ़िंगेश्वर कस्बे में त्रिआयतन शैली का प्राचीन शिवालय है। त्रिआयतन से तात्पर्य है कि तीन गर्भगृह और संयुक्त मंडप। इन तीन गर्भ गृहों में मुख्य में फ़णीकेश्वर महादेव विराजे हैं और द्वितीय में शंख, गदा, पद्म चक्रधारी विष्णु स्थानक मुद्रा में हैं और तीसरे में मंदिर का कलश रखा हुआ है।


इस मंदिर का मंडप सोलह स्तंभो पर निर्मित है। मंदिर का स्थापत्य उतना सुडौल एवं सुंदर नहीं है, जितना पाली एवं जांजगीर के कल्चुरी कालीन मंदिरों का शिल्प है। शिल्प की दृष्टि से यह परवर्ती काल तेरहवीं या चौदहवीं शताब्दी का माना जा सकता है।


मंदिर की भित्तियों पर दो थरों में हल्के काले रंग के पत्थरों पर उकेरी गई प्रतिमाएँ जड़ी हुई हैं। इनमें भक्ति एवं भोग दोनों प्रदर्शित किए गए हैं। मिथुन प्रतिमाएं उस काल की शिल्प परम्परा का पालन करती दिखाई देती हैं। इन मिथुन प्रतिमाओं में वात्सायन के काम सूत्र में वर्णित, चुंबन, आलिंगन, मैथुन आदि को प्रदर्शित किया गया है। इसके साथ ही राम एवं कृष्ण से संबंधित प्रतिमाएँ भी दिखाई देती है।


भित्ति शिल्प में मुरलीधर, अहिल्या उद्धार, हनुमान द्वारा शिव पूजन, उमा महेश्वर, नृसिंह अवतार, मत्स्यावतार, वराह अवतार, मेघनाद एवं लक्ष्मन का युद्ध, नृत्यांगनाएं एवं बादक, दर्पणधारी अप्सरा मुग्धा को भी स्थान दिया है।इस मंदिर के निर्माण के पार्श्व में छ: मासी रात वाली किंवदन्ति प्रचलित है। निश्चित तिथि पर मंदिर तैयार हो गया परन्तु कलश चढाने की समयावधि निकलने के कारण कलश नहीं चढ़ पाया और उसे एक गर्भ गृह में ही स्थापित कर दिया गया।


तिरानवे वर्षीय राजा महेन्द्र बहादुर कहते हैं कि उनके नाना के पुर्वज दो ढाई सौ वर्ष पहले जंगल में शिकार करने आए थे। यहाँ आकर उन्होंने झाड़ झंखाड़ के घिरे हुए इस सुंदर मंदिर को देखा तो इस स्थान पर ही बसने का निश्चय कर लिया। उन्होंने अपनी जमीदारी का मुख्यालय फ़िंगेश्वरी को बना लिया और समस्त धार्मिक कर्मकांड इस शिवालय से ही सम्बद्ध हो गए।


फ़णीकेश्वर महादेव पंचकोसी यात्रा में सम्मिलित महादेव हैं, यहाँ मकर संक्राति के समय पंचकोसी यात्रा होती है। मान्यता है कि विष्णु के नाभि पद्म की पांच पंखुड़ियाँ चम्पारण, पटेवा, फ़िंगेश्वर, कोपरा एवं बहम्नेश्वर नामक स्थाक पर गिरी एवं उनसे चम्पेश्वर, पाटेश्वर, फ़णीकेश्वर, कर्पुरेश्वर, एवं बह्मनेश्वर नामक शिवलिंग पांच कोस में प्रकट हुए और तभी से श्रद्धालुओं द्वारा पंचकोसी यात्रा की जाती है।
फ़णीकेश्वर महादेव नाम से प्रतीत होता है कि इसका निर्माण कलचुरी राजाओं के अधिन फ़णिनागवंशी शासकों ने कराया होगा। परवर्ती काल का होने कारण इसके प्रतिमा शिल्प में सुंदर सुडौलता नहीं होने पर इसका महत्व कम नहीं हो जाता।


यहाँ शक्ति उपासना का त्यौहार दशहरा उत्सव भी परम्परागत रुप से दो ढाई शताब्दियों से मनाया जाता है। यह पर्व दशमी तिथि को न मनाकर त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन समस्त मंदिरों में ध्वजारोहण के साथ पूजा पाठ किया जाता है। फ़िर महल से सवारी निकाली जाती है और नगर भ्रमण किया जाता है। इसके पश्चात महल में पान सुपारी (अतिथि स्वागत) की परम्परा का पालन किया जाता है। इस शिवालय की भित्तियों में जड़ी मिथुन प्रतिमाएँ किसी अन्य मंदिर से कम नहीं है और यह छत्तीसगढ़ के इतिहास की बहुमूल्य धरोहर है।

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