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किशन बाहेती : घुमक्कड़ी एक चलती फिरती पाठशाला है।

घुमक्कड़ जंक्शन पर आज आपसे मुलाकात करवा रहे हैं कलकत्ता निवासी किशन बाहेती से। ये घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप के संस्थापक सदस्य एवं अच्छे घुमक्कड़ हैं। घुमक्कड़ एवं घुमक्कड़ी में इनके प्राण बसते हैं, मजाल है कि कोई घुमक्कड़ कलकत्ता से गुजरता हुआ इनकी पकड़ से बच पाए। घुमक्कड़ों को हर संभव सहायता देते हैं। व्यवसाय के व्यस्त समय से कुछ समय चुराकर घुमक्कड़ी करना इनकी फ़ितरत में है, आइए सुनते हैं किशन बाहेती से घुमक्कड़ी जीवन की कथा……

1 :-आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर और बचपन के जीवन के विषय में पाठको को बताये की वह समय कैसा था?
@ बीकॉम के साथ चार्टर्ड अकाउंट का प्राथमिक स्तर पास करने के बाद व्यवसाय में जुड़ने के कारण वह स्थगित रह गयी। जन्म और कर्मस्थली दोनों ही कलकत्ता है, पैतृक निवास बीकानेर, राजस्थान है। इतने साल बंगाल में रहने के बावजूद राजस्थान के प्रति अपना मोह कम नहीं हुआ है।
सयुंक्त भरा पूरा परिवार होने के कारण बचपन बड़ा शानदार रहा। पिताजी और छ: भाइयों का परिवार सभी एक साथ रहते थे, तो आप समझ सकते है कि प्यार और स्नेह कितना मिला होगा।
बचपन की बात क्या लिखूँ और क्या छोड़ूँ समझ नहीं आता, खेलकूद, शरारत, मौज-मस्ती और पढ़ाई किसी में भी हम पीछे नहीं थे, कोई ऐसा कोई आभ्यंतर खेल (इंडोर) और मैदानी खेल (आउटडोर) नही जो हमने नही खेला। मै समझता हूँ कि मोबाइल और कंप्यूटर उस समय नहीं था तो अच्छा ही था। हम पाँच दोस्त अपनी शरारतों के कारण प्रसिद्ध थे। इसके अगर किस्से सुनना चालू करूँ तो कई पन्ने कम पड़ेंगे। हर दिन हर पल एक यादगार पल था, कोई लौटा मेरा बचपन …
रविवार के दिन पिताजी या चाचाजी और के साथ कहीं न कहीं घूमना हो ही जाता था। इसके अलावा साल में एक या दो बार कलकत्ता के बाहर की घुमक्कड़ी हो जाती थी ।

2 :- वर्तमान में आप क्या करते है एवं परिवार कौन कौन है?
@ वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण के निर्यात और थोक व्यवसाय से जुड़ा हुआ हूँ, जिसमे में करीबन बीस साल से संलग्न हूँ।
आज भी हम सभी पिताजी के भाई संयुक्त परिवार की तरह ही रहते है, एक घर न सही पर एक दूसरे के दिल में। त्यौहार और पारिवारिक कार्यक्रम सब एकत्रित होकर मनाते है। वर्तमान परिवार में माँ-पिताजी, अर्धांगिनी (कृष्णा) और एक पुत्र (तनमय) है, जो अभी आठवीं में है।

3 :- घूमने को रूचि कहाँ से जागृत हुई?
@ घुम्मकड़ी की रूचि तो विरासत में मिली है। पिताजी के साथ साल में एक या दो बार कलकत्ता के बाहर घूमना हो ही जाता था। जो कालान्तर में उम्र के साथ साथ घुमक्कड़ी का नशा बढ़ता ही चला गया। इसके अलावा ताउजी मद्रास में रहते थे तो गर्मियों की छुट्टियों में वहाँ चले जाते चले जाते थे। वहाँ से दक्षिण भारत की सैर को निकल पड़ते। पर ये नशा कुछ वर्षो ठंडा पड़ गया। शायद 99 के जोड़ में ज्यादा व्यस्त हो गए थे। पर 2006 से आज तक प्रतिवर्ष अपने मित्रो के साथ साल में कम से कम दो यात्रा तो पक्की हो ही जाती है।

4 :- किस प्रकार की घुम्मकड़ी आप पसंद करते है, ट्रैकिंग, रोमांचक खेल भी क्या सम्मिलित है, कठिनाई बताये?
@ बंधन में बंध कर रहना बचपन से नहीं सुहाता, घुम्मकड़ी का भी यही हाल है, कभी गोआ के समुद्र मन को लुभाते है तो कभी लेह की वादियाँ बार-बार बुलाती है। सुंदरवन का जंगल हो या जैसलमेर का मरुधर हो हर जगह पसंद है।
वैसे भी घुमक्कड़ किसी भी बंधन से परे होता है। रिवर राफ्टिंग, पैरा ग्लाइडिंग आदि करने का मौका मिला है। अगर घर से बाहर घुमक्कड़ी के लिए निकलते है तो थोड़ी बहुत कठिनाई का सामना तो करना ही पड़ेगा। पर किसी भी कठिनाई को बाधा न मानकर सतत बढ़ते रहना ही घुमक्कड़ की निशानी है।

5 :- उस यात्रा के बारे में बताये जहाँ पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?
@ पहली यात्रा, उसके बारे में बताना थोडा मुश्किल होगा, क्योकि उस समय में सिर्फ तीन साल का था तब राजस्थान घूमा था। खैर 2006 की कश्मीर यात्रा की में अपनी घुमक्कड़ी जीवन की पहली यात्रा समझता हूँ, तब से आज तक ये कदम नहीं रुके। हम करीब चालिस लोग थे और कश्मीर घूमना शायद हर किसी का सपना था। डल झील में सुबह सवेरे हाउस बोट में कहावा पीते हुए फूलों से भरे शिकारों का अविश्मरणीय दृश्य, गुलमर्ग की पहाड़ियों पर चालीस घोड़ो के काफिले का साथ चलना आज भी याद है। शंकराचार्य मठ का सूर्योदय और निशात बाग की कभी न भूलने वाली शाम।चाहे व्यवसायिक कारण हो कश्मीर के लोग टूरिस्ट के साथ बड़े ही अच्छे से पेश आते है। इसके अलावा ये यात्रा इसलिए और यादगार थी क्योकि पहली बार हम चालीस लोग एक साथ हवाई जहाज में हनुमान चालीसा और अंताक्षरी खेलते हुए श्रीनगर से जम्मू पहुचे थे।

6:- घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार और शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते है?

@ इसके लिए मुझे कभी दिक्कत नहीं हुई, क्योकि मेरी इस घुमक्कड़ी में परिवार का पूरा सहयोग रहा। ज्यादातर घूमना परिवार या मित्रो के साथ ही होता है। जो एक ही विचार धारा वाले है। जैसा देश वैसा भेष में रहने में किसी को कभी आपत्ति नहीं हुई।

7 :- अपनी अन्य रुचियों के साथ बताएँ और आपने ट्रेवल ब्लॉग कब, क्यों प्रारम्भ किया?

@ घुमक्कड़ी के अलावा फोटोग्राफी, चलचित्र, किताबे पढ़ना और थोडा (बहुत) खाने का शौक है। जो कहीं न कहीं घुम्मकड़ी से ही सबंधित है। लिखने के मामले में थोडा आलसी हूँ, अपना एक ब्लॉग भी बना रखा है यात्रा द यादे पर वहा अभी तक कोरा कागज पड़ा है।
सफ़र है सुहाना में मेरी कुछ पोस्ट प्रेषित है। इसके अलावा घुमक्कड़ी दिल से के फेसबुक पन्ने पर कभी कभी भड़ास निकाल लेता हूँ। वैसे सही कहे तो अपनी घुमक्कड़ी के साथ उसके यादो को संजो रखने का ब्लॉग से बेहतर कोई साधन नहीं। इसके अलावा कहीं न कहीं इससे दूसरे घुमक्कड़ों और सैलानियों को काफी मदद मिलती है।

8 :- आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओ से क्या सीखने मिला?

@ यूँ तो अब तक की गयी हर छोटी बड़ी यात्रा किन्ही न किन्ही कारणों से रोमांचक रही है, चाहे वो सुंदरवन के मैंग्रोव जंगल में बाघ को देखना हो, चाहे सम के मरुधर मे कंपकंपी छुड़ा देनी वाली रात में, खुले आसमान के नीचे सोना।
हाल ही में लद्दाख यात्रा का एक वाकया कभी नहीं भूल सकता । पेंगोंग में एक रात गुजारने के बाद, हम सुबह 9 बजे लेह के लिए रवाना हुए । जिसके बीच चांगला से होते हुए जाना था। यूँ तो मौसम ठंडा ही था पर ज्यों ज्यों हमारी गाड़ियाँ चांगला के दर्रे के करीब जा रही थी तापमान शून्य से कम होते होते माइनस पहुच गया। सड़क और आस पास के हरियाली रहित पहाड़ सुनहली वर्फ की चादर से ढक गए थे। चारों तरफ का नजारा बेहद खूबसूरत और मनमोहक लग रहा था। सडकों पर बर्फ जमकर कड़ी हो चुकी थी, जिससे गाड़ी को चलने में दिक्कत हो रही थी और बिल्कुल धीमी गति से चल रही थी। हमने अपने वाहन चालक रेंचो को पहिये में चैन बांधने की सलाह दी, जिससे बर्फ पर पहिये की पकड़ मजबूत रहे। पर जल्दबाजी के कारण वो लोहे की सांकल लाना भूल गया। अब बस राम राम करते हुए हम चले जा रहे थे कि अचानक एक मोड़ पर जैसे ही रेंचो गाड़ी को मोड़ने लगा तभी गाड़ी पूरी तरह से संतुलन खोकर कर फिसल कर खाई की तरफ जाने लगी। पल भर में सारे देवता के नाम स्मरण हो गए, रेंचो जिसका पैर वैसे भी ब्रेक पर था पूरा जोर लगा कर ब्रेक लगाने की कोशिश की । 2 इंच के खाई के तरफ फासले पर गाड़ी फिसलते हुए रुकी । सभी को नीचे खाई दिख रही थी, यूँ तो मौसम के कारण पहले से हाथ-पैर ठन्डे पड़े थे, अब मस्तिष्क पूर्ण रूप से शून्य पड़ गया। गाड़ी हमें यमराज के भैंसे सी प्रतीक हो रही थी। मुँह से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे न तो मरा न तो राम। कुछ क्षण बाद जब रेंचो को गाड़ी से बाहर निकलते देखा तब थोडा होश सा आया। उसने सड़क के किनारे की बर्फ को हटाकर मट्टी को निकालकर गाड़ी के पहियो पर लगा दी और फिर से चलने को तैयारी की। हम किंकर्तव्यविमूढ़ होकर 10 km के इस सफ़र में बैठे रहे। रेंचो धीमी गति से आगे के किसी बाहन के चक्र चिन्हों के ऊपर चलता रहा। चांगला दर्रे पहुँच कर जान में जान आई। आज भी इस बात को याद करके धड़कन तेज हो जाती है ।
अभी तक भारत के 21 राज्यो को छू चूका हूँ, आप सोच रहे होगा छू चुका का क्या मतलब हुआ? तो बता दूँ कि हमारा भारत इतना बड़ा है कि कोई भी इसे एक जन्म में तो पूर्ण रूप से घुम्मकड़ी करके ख़त्म नहीं कर सकता इसके लिए कई जन्म कम पड़ेंगे ।
21 राज्यो में किए गए खास जगहों का ब्यौरा इस प्रकार- तीर्थाटन:- चार धाम (बद्रीनाथ, पुरी, रामेश्वरम और द्वारका) 11 ज्योतिर्लिंग और पशुपतिनाथ, हरमंदिर साहेब आदि।
एतिहासिक स्थल :- लाल किला, ताजमहल, जलियावाला बाग, चार मीनार, अजंता-ऐलोरा की गुफाएं, खुजराहो, कोणार्क मंदिर, इंडिया गेट, हवा महल, महाबली पुरम और मैसूर पैलेस आदि अदि।
पर्वतीय स्थल :- ऊटी-कोडाइकनाल और मुन्नार, श्रीनगर-गुलमर्ग और लद्दाख, दार्जलिंग-गंगटोक आदि आदि।

9:- घुमक्कड़ी से क्या देखा और सीखा?

@ घुमक्कड़ी अपने आप में एक चलती फिरती पाठशाला है जो नित नए पाठ पढ़ाती। भिन्न भिन्न जीवन शैली, खान-पान, लोक संस्कृति आदि देखने और सीखने को मिलती है। हरमंदिर साहब के यहाँ मानव सेवा धर्म किसे कहते है ये जाना, मणिकर्णिका घाट पर जीवन का असली सत्य मृत्यु है ये फिर से ज्ञान बोध हुआ, पुरी के मंदिर पर हवा के विरुद्ध लहराती ध्वजा को देख ईश्वर के प्रति आस्था और दृढ हो गयी, पहाड़ों पर लोगो के रहन सहन को देखकर विषम परिस्थितियों में जीने की कला का ज्ञान हुआ। यहाँ तक गोआ में विदेशी लोगों को प्राणायाम करते देख खुद पर शर्मिन्दिगी आ रही थी कि हम तो अपनी सुसंस्कृति को छोड़ कर विदेशी कूसंस्कृति अपना रहे है और वो हमारी अच्छी चीजो को जीना चाहते है।

10 :- नए घुमक्कड़ों के लिए क्या सन्देश है?

@ कई योनियों के बाद अपने सुकर्मो के कारण हमे मनुष्य योनि मिली है। इसे हम कूपमंडूक बनकर न जिएँ, प्रकृति बाहें फैलाये आपका स्वागत कर रही है, घुमक्कड़ बनकर सिर्फ सड़को और पहाड़ो की खाक छानने से बेहतर ऐसा कुछ कार्य साथ में करें कि समाज और प्रकृति दोनों का कल्याण हो। अपने घुमक्कड़ी जीवन में सामाजिक, पारिवारिक और प्राकृतिक तालमेल को बनाये रखे। इसमें महिलाओं का भी योगदान उतना होना चाहिए जितना की पुरुषों का। इसके लिए जरुरी है की अपने यात्रा अनुभव को चित्रों और लेखनी के माध्यम से दुनिया में साझा करें, वर्ना आपका ज्ञान और अनुभव आप तक ही सीमित रह जायेगा।

36 thoughts on “किशन बाहेती : घुमक्कड़ी एक चलती फिरती पाठशाला है।

  • वाह किशन जी, बहुत कुछ जानने मिला । लद्दाख यात्रा तो आजीवन अविस्मरणीय हो गयी । वैसे सुनहली बर्फ होने का क्या कारण था ? ललित जी का विशेष आभार

    • Kishan bahety

      सबसे पहले मै ललित जी को धन्यवाद और आभार व्यक्त करना चाहुगा जिन्होंने मुझे ये मंच दिया ।

      लद्दाख की पहाड़ी पर हरियाली न होने के कारण सूर्य को किरणे सीधी बर्फ पर पड़ रही थी , जिससे पहाड़ पर उसका रंग सुनहला सा प्रतीत हो रहा था ।

  • Kapil Choudhary

    तर्क सहित पूरा जीवन चक्र कह दिये। अवविस्मरणीय लद्दाख की यात्रा तो बहुत रोमंचित करता है ।

    • Kishan bahety

      कपिल भाई ,
      धन्यवाद ,
      जीवन में मै जैसा हु और जैसा अनुभव किया बस वही दिल से लिखा है

  • Pratima

    Kya baat hai kishan ji. Bahut hi sunder shabdon se sja interview hai aapka.padhkar bahut hi acha lga.aise hi ghumte rahiye aur apne anubhav hm sb kath bant te rahiye…lalit ji apka bahut bahut dhnawad dil se.

    • Kishan bahety

      ये सब आप सभी घुम्मकड़ और ब्लॉगर मित्रो को संगती का असर है ।
      खासकर मुकेश जी , रितेश जी और ललित जी जिन्होंने बार बार लिखने के लिया उत्साहित किया ।
      धन्यवाद

  • बहुत दिनों बाद अपने किशन लल्ला के जीवन के वर्क टटोलने ओर उनको पढ़ने का मौका मिला इसके लिए ललित सर सचमुच बधाई के हकदार है।क्योंकि उनके सामने सभी अपना दिल खोल कर रख देते है और आज का हीरा खोज लाये है —हमारे एडमिन को भी बधाई हो-
    लद्धाख का खतरनाक अनुभव सुनकर वाकई में होश फ़ाख्ता हो गए। घुमक्कड़ी में कब क्या हो जाये इसके लिए भी हमको तैयार रहना चाहिए।
    घुमक्कड़ी दिल से —-
    मिलेंगे फिर —जय हिंद -^-

    • Kishan bahety

      बुआजी
      आखिर मन की मुराद पूरी हो ही गयी और मुझे भी अपनी ब्लोगेर श्रेणी में शामिल कर ही दिया ।
      ललित जी को इसके लिए साधुवाद । कठिनाई से लड़कर भी घूमने वालो को घुम्मकड़ कहते है ।
      धन्यवाद दिल से
      मिलेगे फिर से

  • जय हो, बहुत बहुत आभार ललित सर इस घुमक्कड़ जंक्शन पर घुमक्कड़ों के बारे में जानकारिया देने के लिए.

    किशन जी आपसे जब हमारी पहली बार मेरी साउथ इंडिया की यात्रा पर हुई थी तभी आपकी आत्मीयता का पता लग गया था, और आज तो आपके बारे में विस्तृत जानकारी पढ़कर दिल गार्डन गार्डन ओह सॉरी बाग़ बाग़ हो गया, अब तो मिलने का दिन भी आ रहा है, इंतज़ार में। ……

    • Kishan bahety

      ये तो आप लोगो का प्रेम है । मैंने तो बस आपको जानकरी प्रदान कर अपना घम्मकड़ मित्र का कर्तव्य निभाया ।
      मिलेगे फिर से
      घुम्मकड़ी दिल से

  • किसन जी के जीवन के बारे में ओर नजदीकी से जानकारी मिली। वैसे वह एक अच्छे दोस्त होने के साथ एक बेहतरीन घुमक्कड़ है। किसन दा आपको सैल्यूट.. ।

    • Kishan bahety

      धन्यवाद घुम्मकड़ी दिल से मंच का जिसके कारण आप जैसे अच्छे और सच्चे मित्रो से मुलाकात हुई ।

      दिल से धन्यवाद

  • chandresh kumar

    वाह किशन जी आपकी घुमक्कड़ी सभी को प्रेरित करेगी. ऐसे ही घूमते रहिये. मुझे ख़ुशी है की मैंने आप के साथ दो बार घुमक्कड़ी की और आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला.

    • Kishan bahety

      चंद्रेश जी
      आपकी घुम्मकड़ी से हमे भी बहुत कुछ सिखने को मिलता है ।
      बस झोला उठाये और चल दिए ।
      आपसे हुई मुलाकात सदैव याद रहेगी ।
      हर मुलाकात में एक छुपे हीरे का दर्शन करा देते है ।
      धन्यवाद दिल से

  • डॉ.प्रदीप कुमार त्यागी

    बढ़िया किशन भाई….सच कहा आपने घुमक्कड़ी एक चलती फिरती पाठशाला है..?

    • Kishan bahety

      डॉ साहब
      मै इस पाठशाला का छात्र हु , आपलोग अध्यापक है जिनसे नित कुछ न कुछ सिखने मिल रहा है ।
      धन्यवाद दिल से

  • किशन जी के बारे में लिखने के लिए मेरे शब्दकोष में शब्द नहीं हैं। जितने अच्छे घुमक्कड़ हैं उससे कहीं ज्यादा अच्छे इंसान हैं। आपकी यात्राएं सर्वदा हमारे लिए प्रेरक रही है, खासकर आपकी नेपाल यात्रा के चित्र देखने के बाद तो एकबारगी ऐसा लगा जैसे अभी उड़कर चला जाऊं उन स्थानों को देखने, लेकिन अभी तक वो सुअवसर नहीं आया। पिछले तीन वर्षों से कोलकाता आकर आपसे मिलने की तमन्ना को दिल में पाल कर रखा है, शायद अगले वर्ष वो पूरी हो जाए। आप सर्वदा खुश रहें, स्वस्थ रहें, संपन्न रहें और घूमते रहें, ईश्वर से यही प्रार्थना है।

    • Kishan bahety

      मेरी घुम्मकड़ी को नया आयाम देने का श्रेय कही न कही आपको और आपके द्वारा बनाये गए समूह / परिवार घुम्मकड़ी दिल दे को जाता था । आपसभी से पर्यटक और घुम्मकड़ का फर्क पता चला ।
      मिलेगे फिर से
      घुम्मकड़ी दिल से

  • Yogi Saraswat

    बहुत ही सुन्दर और शानदार साक्षात्कार ! मेरा परम सौभाग्य है कि किशन जी से कुछ देर की मुलाकात हुई है !! एक बढ़िया घुमक्कड़ का बढ़िया परिचय !!

    • Kishan bahety

      धन्यवाद जी
      सोभाग्य हमरा जो आप जैसे मित्र मिले ।
      वो चन्द लम्हों की मुलाकात
      जिंदगी भर की याद बन गयी

  • वाह मजा आ गया पढ कर।चांगला का रोमांचक सफर तो अभी पता लगा,पहले कभी बताया नही आपने।

    • Kishan bahety

      पहाडी यात्रा का रोमांच आपसे बेहतर कौन जान सकता है ।
      आपसे ये रोमाँच अगर पहले साँझा कर देता तो अभी पढ़ने में आनंद न आता ।
      धन्यवाद दिल से

  • Kishan bahety

    अनुज अभिषेक ,
    आपसे न मिलने का कारण एक समय में आपकी कोलकाता यात्रा मेरी लद्दाख यात्रा थी ।
    बहुत जल्द इस अफ़सोस को भी दूर कर देगे ।
    धन्यवाद

  • Sandhya Sharma

    व्यवसाय से वक्त निकालकर घुमक्कडी करना सचमुच बहुत बड़ा काम है। सीखते रहिए इस चलती-फिरती पाठशाला से और बांटते रहिए अनुभव। हार्दिक शुभकामनाएं…

    • Kishan bahety

      बस वक्त मिलते ही निकल पड़ता हु , प्रकृति से कुछ नया सीखने ।
      धन्यवाद दिल से

    • Kishan bahety

      धन्यवाद जी

  • नरेश सहगल

    सुन्दर और शानदार साक्षात्कार .आपके बारे में पहले से ही काफी मालूम था फिर भी कुछ नहीं बातें जानने को मिली . मुझे ख़ुशी है कि आप जैसे सज्जन मित्र से सपरिवार मिल चूका हूँ .
    ललित जी को भी धन्यवाद .

    • Kishan bahety

      कोलकाता गंगासागर यात्रा के दौरान आपसे हुई मुलाकात को मेरे पिताजी अभी भी याद करते है । आपका शांत स्वाभाव और मृदु भाषित उन्हें भा गयी ।
      धन्यवाद दिल से

  • वाह बाबू मोशाय

    बंधन में बंध कर रहना सुहाता नहीं और यहाँ “घुमक्क्ड़ी दिल से ” के बंधन में पता है कितनो को बाँध दिया! इसी से पता चल जाता है की आपका व्यक्तिवे कितना चुंबकीय है ..बिलकुल लदाख के मैग्नेटिक हिल ही तरह …
    कठिनाई को बाधा न मानकर सतत बढ़ते रहना ही घुमक्कडी है और आपकी इसी बात को सार्थक करते हुए हम सब एक साथ ऐसा कुछ कार्य जरूर करते रहेंगे जो समाज और प्रकृति दोनों के लिए कुछ तो कल्याणकारी होगा और उसे भी एक दिन कोरे कागज पर उतार कर हमेशा के लिए …..यात्रा द यादे बना देंगे

    इसी आशा में की जल्द ही मुलाकात होगी और यही कहेंगे .. मिलेंगे फिर से घुमक्क्ड़ी दिल से

    • kishan bahety

      मिलेंगे फिर से
      घुम्मकड़ी दिल से

  • प्रिय किशन जी,

    आपका शाब्दिक परिचय और फिर साक्षात्‌ परिचय तो मुझे ओरछा में मिला था जब आपके आने से पहले हर कोई आपको ही याद कर रहा था, आप कहां तक पहुंच चुके हैं, कितने मिनट में पहुंचने वाले हैं, ये सब जानकारी ऐसे ही मिल रही थी जैसे TV पर क्रिकेट मैच की कमेंटरी में हर बॉल के बाद X runs required in Y balls. Required run rate Z ” बताते चलते हैं।

    फिर भी, ललित जी द्वारा लिया गया ये साक्षात्कार आपके व्यक्तित्व और आपके जीवन के उन अनबूझे पन्नों को खोल रहा है, जिनको हम शायद और किसी तरीके से जान ही नहीं सकते थे। अपने बारे में बहुत सारी बातें हम खुद ही बतायें तो बतायें, हमारे दोस्त भी हमसे वह सब बातें पूछते हुए संकोच करेंगे! ऐसे में इस जैसे साक्षात्कार अमूल्य होते हैं क्योंकि हम खुद ही अपने पन्ने खोलते चले जाते हैं।

    आपको बधाई और शुभ कामनाएं !

    • kishan bahety

      धन्यवाद ,
      ये आप सभी का प्रेम था और मिलने की प्यास थी जो मुझे ओरछा खीची ले आयी ,
      जितना आप लोग इंतजार कर रहे थे उतना ही मुझे आप सभी से मिलने का था ।
      जब सबसे दिल से जुड़ गए तो दिल खोल कर रख दिया ।
      बाकि ललित जी का साधुवाद इसके लिए

  • वाह बहुत खूब बेहतरीन जानकारी पूर्ण लेख

    • kishan bahety

      धन्यवाद

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