शरीर को ऊर्जा, स्फ़ूर्ति और पोषण देने वाला बस्तर का पारम्परिक पेय

भूख प्यास लगने पर तरल पेय पदार्थ भी शरीर को उतनी ऊर्जा, स्फूर्ति एवं पोषण देते हैं जितना की ठोस भोजन से प्राप्त होती है। गर्मी के दिनों में शरीर को जल की आवश्यकता अधिक होती है वरना लूह जल्दी लग जाती है। पेट में तरल सुपाच्य होने के कारण शरीर को जल की जलापूर्ति बनी रहती है।


शहरों में गर्मी के दिनों में स्वास्थ्यवर्धक शिकंजी, छाछ, गन्नारस, आम का पान, बेल का रस एवं शरबत का उपयोग किया जाता था अब इन प्राकृतिक पेयों का स्थान कोक पेप्सी आदि ने ले लिया जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताए जाते हैं। बाबा रामदेव द्वारा इन्हें टायलेट क्लिनर बताने पर लोग पुनः परम्परागत पेय पदार्थों का सेवन करने लगे हैं।

वनांचल के निवासी भोजनापूर्ति के लिए पेय पदार्थों को अधिक महत्व देते हैं, पेज, पसिया, लंदा आदि अन्न से बनने वाले एवं सल्फी, छिंदरस, ताड़ी, खजूररस आदि वृक्षों से निकलने वाले पेयों का सेवन करते हैं। जो कि स्वास्थ्य के लिए सर्वदा हितकारी हैं।

बस्तर यात्रा के दौरान वहाँ की माटी एवं संस्कृति के साथ जुड़ाव महसूस होता है। हल्बी, भतरी बोली तो समझ आती है पर गोंडी दोरली पल्ले नहीं पड़ती।बस्तरिया पेयपदार्थ हाट बाजारों में बिकने आते हैं एवं आपको घरों में भी उपलब्ध हो सकते हैं। यात्रा के दौरान मैंने लंदा सेवन कर उसका स्वाद जाना। खमीर उठा हल्का सा तीखा खट्टा स्वाद था। चखना के साथ दो दोना पीने के पूरा स्वाद पता चला।

लंदा बनाने की प्रक्रिया बताते हुए भाई चंद्रा मंडावी Chandra Mandavi कहते हैं कि इसे बनाने के लिये चावल को पीसकर उसके आटे को भाप में पकाया जाता है। पकाने के लिए चूल्हे के ऊपर मिटटी की हांड़ी रखी जाती है जिसमें पानी भरा होता है और हांड़ी के ऊपर टुकना रखा जाता है, जिसमें चावल का आटा होता है अच्छी तरह भाप में पकाया जाता है, फिर उसे ठंडा किया जाता है।

इसके पश्चात एक अन्य हंडी में आवश्कतानुसार पानी लेकर उसमे पके आटे को डाल देते है साथ ही हंडी में अंकुरित किये भुट्टे (जोंधरा) के बीज जिसे अंकुरित करने के लिये ग्रामीण रेत का उपयोग करते है, भुट्टे के अंकुरण के पश्चात उसे भी धुप में सुखा कर उसका भी पावडर बनाया जाता है लेकिन इसे ढेंकी (ग्रामीण चक्की) में पिसा जाना उपयुक्त माना जाता है।

फिर इसे भी कुछ मात्रा में चावल वाले हंडी में डाल दिया जाता है जिसका उपयोग खमीर के तौर पर किया जाना बताते है और गर्मी के दिनों में २-३ दिन, ठण्ड में थोडा ज्यादा समय के लिए रख देते है। तैयार लांदा को १-२ दिन में उपयोग करना होता है अन्यथा इसमें खट्टा पन बढ़ जाता है। बस्तर में दुःख, त्यौहार या कहीं सगा के यहाँ जाने पर भी लोग इसे लेकर चलते है।

नौ तपा शुरु होने वाला है एवं भयंकर गर्मी पड़ रही है ऐसे समय में बाहर यात्रा करने के लिए साथ मे पेय पदार्थों का होना आवश्यक है वरना हवा का एक गर्म झोंका निढाल कर देने के लिए पर्याप्त है। इसलिए पेय पदार्थ पर्याप्त मात्रा में साथ होना चाहिए एवं लूह से बचने के लिए प्याज साथ में रखें, यह अनुभूत नुश्खा है और कभी बस्तर आएं तो सल्फी लंदा का स्वाद लेना न भूलें।