ऐसा मंदिर जहाँ चार सौ वर्षों बाद पुरुषों को विपत्ति काल में प्रवेश मिला

अभी तक हम सुनते आए हैं कि फ़लां देवालय दरगाह में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, तो फ़लां में शुद्रों को प्रवेश नहीं दिया जाता। परन्तु एक ऐसा देवी मंदिर है जहाँ पुरुषों का प्रवेश वर्जित है तथा वहाँ की पुजारी भी महिला है। है न हैरानी वाली बात। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।


बंगाल की खाड़ी ओड़िसा के तटवर्ती जिले केन्द्रपाड़ा के सतभाया गाँव में पंचुबाराही देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है। वर्तमान में पर्यावरणीय उथल पुथल के कारण समुद्र के जल स्तर बढ़ने के कारण तटीय रेत का कटाव हो रहा है। यह मंदिर तट के किनारे स्थित होने के कारण समुद्री कटाव प्रभावित क्षेत्र में आ गया।

एक समाचार के अनुसार 3440 एकड़ वाली सतभाया ग्राम पंचायत समुद्र तट पर है। यहां के पांच गांव मोहनपुर, सनागहिरमथा, परमानंदपुर, कदुआनासी व साहेबनगर समुद्र में डूब चुके हैं। निर्वासित गांव वालों को बसाया जा चुका है। कुल तीन गांव बचे हैं।


समुद्री कटाव के कारण इस मंदिर को अन्यत्र सुरक्षित भू खंड पर विस्थापित किया जा रहा है। यह कार्य पुरुषों के बिना संभव नहीं है, इसलिए 400 वर्षों बाद इस मंदिर में पुरुषों का प्रवेश हुआ है और उन्होंने छ: टन वजनी पंचुबाराही देवी की प्रतिमा एवं अन्य प्रतिमाओं को बंइसनली के रास्ते नाव से बगापटिया गांव पहुंचाया।

यहाँ बनाए हुए नवीन मंदिर में जून में प्रतिमाओं की स्थापना की जाएगी। गांव में प्रतिमाओं के पहुंचने पर कनिका के राजपरिवार के वंशज शिवेन्द्र नारायण भंजदेव ने पूजा अर्चना की। परम्परानुसार इन्हें आज भी क्षेत्रवासी अपना राजा मानते हैं।


पंचुबाराही मंदिर की पुजारिन मछुआरिन सुजाता दलई का कहना है कि अब तक पुरुषों का मंदिर में जाना मना था। वे बाहर से दर्शन करते थे। बढते जल स्तर के कारण इस इलाके के सात में से पांच गांव के 571 परिवार अन्यत्र जा बसे हैं। मंदिर खंडित होने के खतरे को देखते हुए प्रतिमाओं को स्थानांतरित करना पड़ा एवं चार सौ बरस पुरानी परम्परा भग्न हो गई।

 

फ़ोटो – समाज लाइव से साभार