कड़कनाथ मुर्गे के शौकीनों के लिए खुशखबरी

कड़कनाथ मुर्गे के शौकीनों के लिए खुशखबरी है कि औषधीय गुणों से भरपूर ‘कड़कनाथ’ प्रजाति के मुर्गे-मुर्गियां अब छत्तीसगढ़ में भी मिलेंगे। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा जिला मुख्यालय कांकेर में संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र में बीते अप्रेल माह से मुर्गियों की कड़कनाथ प्रजाति के प्राकृतिक प्रजनन एवं कृत्रिम हैचिंग का कार्य शुरू हो गया है।

 kadaknath
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मुर्गियों की कड़कनाथ प्रजाति मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में पायी जाती है। इसे देश में कालामांसी (कालामांस) के नाम से जाना जाता है। अधिकारियों के अनुसार कड़कनाथ मुर्गी-मुर्गों में अन्य सभी पक्षी वर्ग की अपेक्षा अधिक औषधीय गुण पाए जाते हैं। इनमें प्रोटीन की मात्रा 44 प्रतिशत होती है, जबकि अन्य पक्षियों में 18 से 20 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। कड़कनाथ के मांस में वसा की मात्रा 1.94 प्रतिशत से 2.6 प्रतिशत और अन्य पक्षियों में 13 से 25 प्रतिशत होती है। कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अन्य पक्षियों के 100 ग्राम मांस में 218.12 मिलीग्राम ग्राम होती है। जबकि कड़कनाथ के 100 ग्राम मांस में मात्र 59-60 मिलीग्राम कोलेट्रॉल पाया जाता है। केंद्रीय खाद्य परीक्षण एवं अनुसंधान संस्थान मैसूर ने एक कड़कनाथ पर एक शोध किया था। जिसके अनुसार कड़कनाथ पक्षी का मांस स्वादिष्ट होने के साथ आसानी से पचने वाला होता है।

परम्परागत रुप से मांसाहार के शौकीनों की धारणा है कि कड़कनाथ मुर्गे के मांस के सेवन से व्यक्ति में जोश-खरोश पैदा होता है, इस जोश-खरोश का संबंध मर्दानगी से जोड़ा जाता है। इसलिए इस मुर्गे नाम कड़कनाथ पड़ा। आदिवासी समुदाय इस मुर्गे का उपयोग त्यौहारों पर देवताओं को भेंट-पूजा देने के लिए करता आया है। कालांतर में अत्यधिक मुर्गे मारे जाने के कारण इसके उत्पादन में कमी आई, जिसके कारण जंगलों से इसका सफ़ाया हो गया। अब इसका उत्पादन कुक्कुट केन्द्रों में किया जा रहा है।

कड़कनाथ नस्ल में अनेक गुणों के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य पक्षियों की अपेक्षा अधिक होती है। अधिकारियों ने बताया कि बस्तर अंचल की जलवायु कड़कनाथ के लिए उपयुक्त है। अनुसूचित जनजाति वर्ग में बैकयार्ड कुक्कुट पालन को बढ़ावा देने के लिए भी कड़कनाथ उपयोगी है। कृषि विज्ञान केन्द्र कांकेर में कड़कनाथ प्रजाति के चूजों का उत्पादन किया जाएगा । प्रदेश सरकार की विभिन्न शासकीय योजनाओं के माध्यम से चूजे बस्तर के पशुपालकों को उपलब्ध कराया जाएगा।

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