कोरबा: ऊर्जा नगरी की व्यथा

ई ऊर्जा नगरी है रजा। यहाँ चारों तरफ़ सिर्फ़ पावर पावर और पावर ही दिखाई देता है। पहला पावर मसल्स पावर माना जाता है। यहाँ के ठेकेदार इतने पावर फ़ुल हैं कि कुछ वर्षों पूर्व कोयला डम्प की जांच करने आए संसदीय समिति के सदस्यों को ही दिनमान खुले आम सोंट दिए, बेचारे जान बचा कर भागे। उसके बाद कोई समिति जाँच में नहीं आई। मतलब खूब दबंगई है। दूसरा पावर है बिजली का पावर – यहाँ चारों तरफ़ बिजली पैदा करने के प्लांट हैं। लगभग 8000 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है और जिनमे कुछ तो बाबा आदम के जमाने के हैं जो प्रदूषण मानकों पर खतरनाक स्तर पर हैं और घोर प्रदूषण फ़ैला रहे हैं। यहाँ का निवासी सांझ तक तो एकाध पाव धूल खा ही जाता है। तीसरा पावर है – सत्ता का पावर, उसका एक नमूना सामने दिखाई दे रहा है।

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कुछ वर्षों पूर्व कोरबा से कटघोरा आ रहा था तो रास्ते में छुरी के समीप नवोदय स्कूल का निर्माण होते देखा। सोचा कि चलो यह क्षेत्र के विकास में उल्लेखनीय कार्य है। अभी भ्रमण के दौरान देखा तो स्कूल की चार दिवारी से लग कर “वेदांता का पावर प्लांट” बन गया है। जो कभी भी उत्पादन शुरु कर सकता है। अब पावर प्लांट बन गया है तो हमको क्या तकलीफ़ है? हमको तो तकलीफ़ नहीं है पर नवोदय स्कूल में पढ़ने वाले नौनिहालों को तकलीफ़ है। जब यह प्लांट उत्पादन प्रारंभ करेगा तब स्कूल का प्रत्येक विद्यार्थी एकाध पाव स्लेग की धूल रोज खाएगा और साल छ: महीने में अस्थमा का शिकार हो जाएगा। इसके स्लेग में मर्करी का अंश भी होता है, इसलिए 3-4 साल में अपनी पढ़ाई पूरी करते हुए फ़ेफ़ड़ों के कैंसर या अन्य बीमारियों का भी तोहफ़ा प्रमाण पत्र के साथ ले जा सकता है। इस विकट परिस्थिति में भविष्य बनाने आए बच्चों का जीवन ही नरक हो जाएगा।

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ऐसा नहीं है कि इस पावर प्लांट का विरोध स्थानीय निवासियों ने नहीं किया। जब यहां पावर प्लांट के लिए भूमि आबंटित की जा रही थी तो छूरी ग्राम पंचायत था। पंचायती राज अधिनियम में ग्राम की सीमा में किसी भी उद्योग को लगाने के लिए ग्रामसभा की अनापत्ति होनी चाहिए। अब ग्राम सभा आपत्ति दर्ज करा दी तो इस ग्राम पंचायत को रातों रात नगर पंचायत में तब्दील कर दिया गया। ग्रामवासियों का कहना है कि ग्राम के किसी भी व्यक्ति या ग्राम पंचायत ने नगर पंचायत बनाने का प्रस्ताव सरकार को नहीं दिया और सरकार ने मेहरबान होकर नगर पंचायत तोहफ़े में दे दी।

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नगर पंचायत तोहफ़े में देने का कारण था कि गाम सभा से छुटकारा पाना। अब अधिकारियों के लिए वेदांता प्लांट को अनापत्ति देने का रास्ता खुल गया और स्कूल की सीमा में पावर प्लांट का निर्माण हो गया और तो और हाई वोल्टेज लाईन का टावर भी स्कूल की बाऊंडरी के भीतर लगा दिया गया। प्लांट का कोयला डम्प स्कूल के भवन के बगल में ही है, अगर प्लांट प्रारंभ होता है तो कोयले की धूल सीधे ही क्लास रुम में पहुंचेगी। अब प्लांट तो हट नहीं सकता, सेठों के अरबों रुपए का निवेश हुआ है। लगता है कि दो चार साल बाद जब कोरबा जाऊंगा तो स्कूल ही नहीं दिखाई देगा। नौनिहालों के भविष्य से अधिक आवश्यकता पावर की जो है।

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