सचिन त्यागी : समय का सदुपयोग करना सिखाती है घुमक्कड़ी

घुमक्कड़ जंक्शन की इस कड़ी में आपसे मिलवा रहे हैं गाजियाबाद निवासी घुमक्कड़ सचिन त्यागी से, दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक सचिन वर्तमान में स्वयं का व्यवसाय करते हैं एवं समय निकालकर घुमक्कड़ी को भी अंजाम देते हैं। एक भेंट से दौरान इनसे घुमक्कड़ी के विषय में चर्चा हुई, जिससे इनका घुमक्कड़ व्यक्तित्व खुलकर सामने आया। मृदूभाषी सचिन घुमक्कड़ी को सांसारिक अनुभवों के लिए अनिवार्य मानते हैं एवं किसी की भी सहायता करने में नहीं चूकते। आईए जानते हैं उनके विचार, उनकी वाणी से………

1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?@ मेरा जन्म दिल्ली के एक गांव मन्डौली में हुआ। प्रारम्भिक पढाई घर के पास के एक स्कूल में हुई। फिर दिल्ली युनिवर्सटी से बी-ए पास की और घर के बिज़नेस में सबका हाथ बंटाने लगा। मेरा बचपन बहुत लाड़ दुलार में बीता। मुझे बचपन से ही किसी चीज की कमी नही थी। क्योकि मैं घर में सबसे छोटा था और पापा का प्यारा भी।

2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?@ फिलहाल गाज़ियाबाद में मेरी ग्लॉस और एल्युमीनियम शॉप है। परिवार में मेरे अलावा मेरी पत्नी आभा जो एक गृहणी है और मेरा बेटा देवांग जो अभी सात वर्ष का है और मेरी मम्मी है। साथ में मेरे बड़े भाई व उनकी फैमिली भी रहती है।

3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?@ बचपन से ही अखबार में छपी पर्यटन स्थलों की कटिंग रखता था, सरिता व अन्य पत्रिका जिनमे घूमने फिरने की जगहो की जानकारी होती थी। वह भी काट कर रख लेता था। पापा भी हर साल गर्मियों की छुट्टी में कही ना कही घुमाने ले जाते थे। फिर इंटरनेट पर घुमने की जगहो को देखने लगा। बस इन्हीं कारणों से ही मुझमें घूमने जाने की रुचि जागृत होती गयी।

4 – किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों भी क्या सम्मिलितहैं, कठिनाइयाँ भी बताएँ ?

@ वैसे तो घर से बाहर घूमने के लिए निकलना ही मुझे पसंद है। लेकिन पहाड़ व नदियां और जंगल मुझे आकर्षित करते है। और पुराने किले व इमारते भी मुझे पसंद है। वैसे ट्रैकिंग पर मैं ज्यादा नही गया पर मुझे यह पसन्द है। क्योंकि ट्रैकिंग में अपना बौझ खुद उठाना होता है व रास्ता भी खुद तय करना होता है। जो शायद जीवन जीने का आधार भी होता है। “मंजिल तक मुसाफ़िर तो मिलते है बहुत, लेकिन चलना खुद को ही है”

5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?

@ हां वह यात्रा आज भी मुझे याद है , शायद तब मैं आठ साल का था परिवार संग हरिद्वार और मसूरी धनोल्टी की यात्रा पर गया था। मैं पहली बार ही पहाड़ो की यात्रा पर था। उससे पहले मैंने पहाड़ो को भूरे कलर का व खड़ी चढ़ाई वाला ही समझता था। इसलिए मुझे डर भी लग रहा था और मैं पापा से कह भी रहा था कि हमे रस्सी से चढ़ना होगा पहाड़ पर। लेकिन जब देखा कि पहाड़ो पर तो सड़क होती है ,पेड़ होते है चारो और हरियाली होती है ये जानकर व देखकर बहुत अच्छा लगा और उस टूर पर बहुत मजे किये। वापिस आ कर स्कूल में पेंटिंग भी पहाड़ो की करता रहा कुछ दिन तक।

6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?

@ बीच बीच मे परिवार संग यात्रा कर लेता हूं। कभी दोस्तो के साथ भी, बाकी परिवार को मेरी आदत का पता है कि ये बाहर जाकर कोई गलत हरकत नही करेगा। जैसे कुछ लोग रोमांच पाने के लिए बहुत गलत कदम उठा लेते है और फिर अपनी जान तक दांव पर लगा देते है। इसलिए परिवार मुझे जाने देता है। बाकी कभी कभी जल्दी जल्दी यात्रा हो जाती है तो विरोध का भी सामना करना पड़ता है।

7 – आपकी अन्य रुचियों के साथ बताइए कि आपने ट्रेवल ब्लाॅग लेखन कब और क्यों प्रारंभ किया?

@ मुझे बच्चो के संगं खेलना पसंद है, बचपन से ही क्रिकेट के प्रति बहुत लगाव था इसलिए मुझे बॉलिंग करना पसंद है, धीमा संगीत सुनना पसंद है, साथ मे किताबे पढ़ना भी पसंद है और आप जैसे माननीय लोगो का ब्लॉग भी पढ़ता हूं। मैंने कुछ लोगो का ब्लॉग पढ़ा और लगा कि यही तो मुझे चाहिए, बस पढ़ते पढ़ते मन में आया कि मुझे भी लिखना चाहिए। मुझे भी अपनी यात्राओं को ऐसे ही संजोना चाहिए बस लिखने लगा ब्लॉग और बन गया मुसाफ़िर चलता चल। और हां एक बात बताना चाहूँगा की ब्लॉग लिखने के बाद दुनियां को देखने का मेरा नज़रिया ही बदल गया। और आप जैसे मित्र भी बन गए।

8 – घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?

@ देशाटन, तीर्थाटन व पर्यटन या घुमक्कड़ी को इसलिए आवश्यक माना जाता क्योकि इससे हमें जीवन जीने की ऊर्जा मिलती है। हम नई नई चीजों को जानते है। सफर में हुई परेशानी से जूझते हुए उसका हल निकालते है। जिससे हममे आत्मविश्वास आता है। और बहुत से दोस्त भी तो मिलते है। मेरा मानना है की घुमक्कड़ी से जीवन में आनंद भर जाता है।

9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?

@ रोमांचक यात्रा तो कई रही क्योकि हर एक यात्रा का अपना ही रोमांच होता है। वैसे मैं अभी पिछले साल नाग टिब्बा(उत्तराखंड) गया था दोस्तो के साथ, छोटी सी ट्रैकिंग थी, रात में जंगल के बीच कैम्पिंग हुई जिसका बहुत यादगार अनुभव रहा। बस इसलिए यह एक यादगार यात्रा रही । वैसे एक दो बार घर से झूठ बोलकर (स्कूल के समय) भी घूमने गए वो भी यादगार व रोमांचक यात्रा रही। मैे ज्यादातर पर्वतीय इलाकों में ही घुमना पंसद करता हूं, लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व कुछ यात्राएं साऊथ इंडिया में भी की है। हर यात्रा से हमे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। थोड़े से शब्दों में कहूँ तो समय की सही क़ीमत जानने को मिलती है सफर में। हमे समय का उपयोग सही ढंग से करना सीखाती है यात्राएँ। यात्राएं हममे आत्मविश्वास जगाती है जो हमे हर जगह काम आता है।

10 – नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?

@ सर हम भी नये ही है। क्या संदेश दूँ। लेकिन हर व्यक्ति से यही कहूंगा कि जाने से पहले उस जगह की पूरी जानकारी ले। आजकल तो गूगल मैप जैसी ऐप है जो आपको रास्ता दिखला देती है। हर जगह इंटेरनेट उपलब्ध नही होता इसलिए ऑफ लाइन मैप डाउनलोड कर ले। स्थानीय लोगो से जानकारी लेते रहे। बाकी अपनी जरूरत की चीज़ें अपने साथ रखे और निकल पड़े सफर पर एक मुसाफ़िर बनकर।

10 thoughts on “सचिन त्यागी : समय का सदुपयोग करना सिखाती है घुमक्कड़ी

  • August 27, 2017 at 21:08
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    बहुत सी नई बातें जानने को मिली आपके बारे में। आशा करता हूँ कि आपकी घुमक्कड़ी यू ही जारी रहे। बहुत अच्छा रहा आपका परिचय सचिन जी।

  • August 27, 2017 at 21:16
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    सचिन भाई, बहुत बढ़िया साक्षात्कार ! ललित जी का आभार

  • August 27, 2017 at 22:07
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    पहले तो ललित शर्मा जी का आभार इस शुभ कार्य के लिए , सचिन भाई थोड़ा तो आपके और आपके विचार के बारे पहले से पता था, और आज के साक्षात्कार में और भी बहुत कुछ जानने को मिला

  • August 27, 2017 at 23:00
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    धन्यवाद ललित सर।
    मेरा साक्षात्कार छापने के लिए। यह बहुत ही सहारणीय कार्य है,,, मुझ जैसे घुमक्कड़ मित्रो को पाठकों से रूबरू कराने के लिए। व बाकी मित्रो को भी धन्यवाद आपने भी मेरा बहुत साथ दिया

  • August 27, 2017 at 23:10
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    Sachin ji bahit shi kaha apne ki samay ka sadupayog karna hi ghumakkdi hai..bahut acha lga spke apke bare me padhkar. Meri shubhkamnay.

  • August 28, 2017 at 02:09
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    सही कहा सचिन ,घुमक्कड़ी से जीवन मे आनंद भर जाता है।मुझे तो जब घूमने निकलना होता है तो भूख प्यास सब मर जाती है और परम आनंद की अनुभूति होती है ।
    आपकी जीवन कथा पहली बार पढ़कर अच्छा लगा। और साथ ही ललितजी की यह श्रृंखला नए नए आयाम छू रही है।बधाई हो 🙂

  • August 28, 2017 at 04:41
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    अच्छा रहा आपका साक्षत्कार त्यागी जी । आपके विचार और जीवन के कई पहलुयों जानकारी हुई ।

    ललित सर जी का आभार

  • August 28, 2017 at 06:00
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    रोचक साक्षात्कार। घुमक्कड़ी सच में जीवन जीना सिखाती है।

  • August 31, 2017 at 08:10
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    बहुत बढ़िया सचिन भाई, अच्छा लगा आपके बारे में पढ़कर । बिल्कुल सही कहा आपने घुमक्कड़ी हम और आप जैसों के लिए ऊर्जा का स्रोत है । भोत अच्छे

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