चन्द्रेश कुमार : इंटरनेट की पहुंच ने घुमक्कड़ बनाया।

घुमक्कड़ जंक्शन पर आज हमारे साथ हैं मिर्जापुर उत्तर प्रदेश के किसान चंद्रेश कुमार। ये इंटरनेट पर घुमक्कड़ों के ब्लॉग पढकर घुमक्कड़ी के लिए प्रेरित हुए। इस तरह यात्रा ब्लॉग ने एक उम्दा घुमक्कड़ को जन्म दिया। किसानी के कार्य से समय निकाल कर ये अपनी घुमक्कड़ी को अंजाम देते हैं और ट्रेकिंग भी करते हैं। आज चर्चा करते हैं इनकी घुमक्कड़ी की…………

1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
@ मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में एक किसान परिवार में 1 जुलाई 1984 को हुआ। कक्षा 1 से 5 तक की शिक्षा गाँव के ही प्राथमिक स्कूल में हुई। 12वीं तक की पढ़ाई घर से 4 किमी दूरी पर स्थित इण्टर कालेज से किया। और ग्रेजुएशन मिर्जापुर से की। उसके बाद बी.एड. जबलपुर से किया। बचपन में गाँव के प्राथमिक स्कूल में टाट—पट्टी नहीं था तो सब बच्चे अपने—अपने घर से प्लास्टिक की बोरी ले जाते थे और उसी बोरी पर पीपल के पेड़ के नीचे बैठते थे, बचपन की मस्ती आज के बच्चों को देखकर बहुत याद आती है।

2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?
@ पारिवारिक आवश्यकता की जिम्मेदारी को पूर्ण करने के लिए कृषि कार्य, ई-कामर्स इत्यादि करता हूँ। परिवार में पत्नी और 5 साल का बेटा, माता—पिता, भैया—भाभी, 3 भतीजी—भतीजे और एक बहन हैं। जिनकी शादी हो गयी है।

3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?@ स्नातक की पढ़ाई के लिए जब मैं मिर्जापुर गया तो वहाँ की पहाड़ियों को देखकर मन घुमने की ओर आकृष्ट हुआ, और समय मिलने पर घुमक्कड़ी करने लगा मिर्जापुर के पहाड़ों, झरनों का. और बाद में तो लत लग गयी और क्लास छोड़कर साईकिल से विन्ध्य की पहाड़ियों और झरनों की ओर निकल जाया करता था। मन हमेशा कुछ नया खोजता था, और उसी खोज ने एक घुमक्कड़ मन को जन्म दिया। आगे चलकर जब इन्टरनेट चलाना सीख गया तो तमाम यात्रा वृत्तांत पढ़ने को मिले जिसने मन की अतृप्त इच्छाओं को मानो पंख लगा दिये।

4 – किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेल भी क्या सम्मिलित हैं, कठिनाइयाँ भी बताएँ ?

@ पहाड़ों की घुमक्कड़ी मुझे बहुत पसन्द है लेकिन भीड़ भरे शहर बिल्कुल भी पसन्द नहीं है। घुमक्कड़ी का असली आनन्द तो ट्रेकिंग में ही है ट्रेकिंग करना मुझे बहुत पसन्द है। केदारनाथ, अमरनाथ, बिजली महादेव, गोमुख की ट्रेकिंग अभी तक की है। रोमांचक खेलों में तो अभी तक हाथ नहीं आजमाया हुँ।
ट्रेकिंग से सम्बन्धित एक किस्सा बताता हूँ। जब मैं मिर्जापुर से ग्रेजुएशन कर रहा था तो मुझे ट्रेकिंग का कुछ भी नहीं मालुम था कि ट्रेकिंग किस चिड़िया का नाम है। हम दो मित्र मिर्जापुर में एक रुम में साथ में रहते थे मिर्जापुर में जहां रहते थे वहां से रेल की पटरी गुजरती थी और मिर्जापुर से 50 किमी दुर मेरा घर है और मेरे घर से मात्र 2 किमी दूर से वहीं रेल की पटरी जाती है तब दोनों मित्रों ने मई के महीने में जबरजस्त लू के बीच मिर्जापुर से घर तक 50 किमी दूर रेल के पटरी के साथ पैदल जाने का प्रोग्राम बनाया सुबह 8 बजे विचार आया और 9 बजे रुम से प्रस्थान कर दिये, मिर्ज़ापुर से बिना खाना खाए ही निकल गए थे रास्ते में एक जगह रेलवे के कुछ ट्रैक मैन लिट्टी चोखा बना रहे थे उन्हीं के साथ हम लोगों ने भी लिट्टी चोखा खाया. सुबह ९ बजे चलकर घर पहुचने में रात के ९ बज गए. घर आते ही बिना खाना खाए सो गया और नीद खुली १२ घंटे बाद सुबह १० बजे. जबरजस्त गर्मी और लू में ये पैदल यात्रा मुझे हमेशा याद रहती है, और अपने पागलपन पर हँसी भी आती है.
मेरा मानना है कि यदि आपको लोगों से संवाद करना आता है तो आपको सफर में किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी।

5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?

@ पहली बार मैं घुमने के लिए धर्मशाला हिमाचल प्रदेश गया था। वहाँ 2 दिन रहा और वो 2 दिन हमेशा याद रहते हैं वो धौलाधार की गोद में बसा हुआ धर्मशाला और मैकलोडगंज ।
करीब १० साल पहले धर्मशाला मैं किसी के साथ गया था, तब मुझे नहीं मालूम था की धर्मशाला एक पर्यटक स्थल है। धर्मशाला मैं जिनके यहाँ गया था वो बी.एस.एन.एल. के मंडल अभियंता थे, लेकिन धर्म, आध्यात्म, योग एवं ध्यान के टीचर भी थे। उनके यहाँ एक दिन रुका भी था। उनकी लेखनी और विचार बहुत अच्छे थे। वो ज्यादातर अंग्रेजों और पैसे वालों को ध्यान सिखाया करते थे। ३ साल पहले एक दिन टी.वी. पर न्यूज़ देख रहा था, न्यूज़ धर्मशाला के एक ढोंगी बाबा के बारे में थी जो योग और ध्यान सिखाने के बहाने लोगों की अश्लील फिल्म बनाया करता था, और अपने बाथरूम में कैमरा लगाया था। न्यूज़ में जो घर दिखा रहा था वो कुछ जाना पहचाना सा लगा, जब बाबा का फोटो दिखाया तब तो मेरे पैरों तले की जमीन ही खिसक गयी। वो बाबा कोई और नहीं बल्कि वहीँ मंडल अभियंता था। तब से लोगों के बारे में तुरंत ही कोई राय नहीं बनाता हूँ. इस दुनिया में कोई भी ऐसा इन्सान नहीं है जिसने किसी प्रकार का मुखौटा न पहन रखा हो।

6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?

@ परिवार मेरी घुमक्कड़ी में कभी भी बाधा नहीं रहा, परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए मैंने खूब घुमक्कड़ी की। परिवार का रुख हमेशा से सहयोगात्मक रहा।

7 – आपकी अन्य रुचियों के विषय में बताइए?

@ घुमक्कड़ी के अतिरिक्त मुझे किताबें पढ़ना बहुत अच्छा लगता है, घुमक्कड़ी के अलावा आध्यात्म, दर्शन, व्यापार, राजनिति की किताबें पढ़ना अच्छा लगता है। गाने, सुनना और गाना बहुत अच्छा लगता है। खाना बनाने का भी शौक है मुझे।

8 – घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?

@ मनुष्य के स्वयं के ज्ञान का क्षेत्र ही उसका विश्व होता है। मनुष्य जन्म ही विश्वव्यापक होने के लिए हुआ है। विश्वव्यापक होने से जीवन सरल और कर्तव्यबोध से युक्त हो जाता है। घुमक्कड़ी से किताबी ज्ञान से ऊपर उठकर व्यक्ति अनुभव युक्त ज्ञान में स्थित हो जाता है अर्थात् वह पूर्णता के मुख्य धारा के मार्ग पर चलने लगता है, और यह आवश्यक है की मनुष्य स्वयं पूर्ण बनने की ओर चले और दूसरों को भी उचित मार्ग दिखाए। इसलिए मनुष्य को वर्ष में कम से कम एक बार घुमक्कड़ी अवश्य करना चाहिए।

9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?

@ यूँ तो हर यात्रा का अपना एक अलग रोमांच होता है लेकिन मेरी सबसे रोमांचक यात्रा अमरनाथ जी की रही। इस यात्रा ने मुझे जीवन के कुछ ऐसे अनुभवों से रूबरू कराया जिन्हें हम केवल फिल्मों और न्यूज़ में देखते हैं। यात्रा में बादल फटने की ऐसी हृदय विदारक घटना मैंने कभी नहीं देखी थी जिसमें तीर्थयात्री, घोड़े, भंडारे सभी बह गये। प्रकृति की विभीषिका ने तमाम खेतों और घरों को लील लिया था। यात्रा पूरी करने के बाद बालटाय में भी २ दिन फंसे रहे और फिर तीसरे दिन ३० किमी पैदल चलकर पुरे भूस्खलन एरिया को पार किया कई जगह सेना के जवानों ने तारों पर लटकाकर हम लोगों को पार कराया। श्रीनगर में ईद के दिन पत्थरबाजों को सेना के जवानों पर पत्थरबाजी करते देखा। सेना के जवानों ने अपनी गाड़ी में बिठाकर शहर पार कराया। देश के वीर जवानों को मैं प्रणाम करता हूँ.
अब तक मैंने करीब १६ प्रदेशों की घुमक्कड़ी की है। जिनमें उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, सिक्किम, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिसा, पश्चिम बंगाल, नागालैंड, असम, पंजाब, चंडीगढ़ शामिल हैं।
यात्रा हमें वो सिखाती है जो हम किताबों से कभी भी नहीं सीख पाते। यात्रा से व्यक्ति को खुद को परखने का मौका मिलता है। किसी भी एक यात्रा के अनुभव को हम अपने जिंदगी में कई जगह प्रयोग कर सकते हैं। यात्रा सिर्फ आनंद के लिए नहीं होता, तमाम पर्यटक स्थलों, धार्मिक स्थलों पर घूमके ये जानने को मिलता है की व्यापार क्या होता है चाहे वो किसी के आनंद का व्यापार हो या आस्था का व्यापार जी हाँ आस्था का व्यापार एक ऐसा व्यापार है जिसमे कभी भी मंदी नहीं आती. बल्कि मंदी के दौर में ये और भी बढ़ जाता है. जिसने भी खुली आँखों, खुले मन और खुले विचारों से यात्रा कर ली उसका जीवन सफल हो जायेगा.

10 – नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?

@ देशाटन, तीर्थाटन एवं पर्यटन के क्षेत्र में रूचि रखने वाले घुमक्कड़ों और भावी घुमक्कड़ों से मैं यहीं कहना चाहता हूँ कि घुमक्कड़ी एक स्वआनंद का विषय तो है ही, लेकिन इसके साथ ही वो जहाँ घुमने जाते हैं उन स्थानों के साथ उसके पीछे उससे उत्पन्न आर्थिक लाभ के बारे में भी सोचें, जिससे वे अन्य छुपे हुए स्थानों को भी देश, विश्व के सामने ला सकें।

7 thoughts on “चन्द्रेश कुमार : इंटरनेट की पहुंच ने घुमक्कड़ बनाया।

  • September 21, 2017 at 00:19
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    चंद्रेश जी आपकी घुमक्कड़ी को सलाम आप जिस तरह से घूमते हैं वास्तव में प्रेरणादायक है आज आपके बारे में बहुत कुछ नया जानने मिला और इसके लिए ललित जी का हार्दिक आभार
    घुमक्कड़ी दिल से

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  • September 21, 2017 at 00:19
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    चंद्रेश भाई बहुत सुन्दर जवाब आपके

    ललित दा का आभार
    हम जैसो को घुमक्कड़ी के पटल पर लाने के लिए।

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  • September 21, 2017 at 06:04
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    बहुत ही बढि़या साक्षात्कार, बहुत कुछ जानने और समझने के लिए मिला आज आपके बारे में, आप ऐसी ही हर दिन घुमक्कड़ी करते रहिए और फोटो दिखाते रहिए, बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको आगे की घुमक्कड़ी जीवन के लिए

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  • September 21, 2017 at 09:46
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    शानदार चन्द्रेश भैया जी । आप हमारे लिए प्रेरक हैं।

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  • September 21, 2017 at 12:49
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    चन्द्रेश भाई सचमुच एक से एक ग़ज़ब बातें पता चली हमें ललित जी के माध्यम से । सचमुच ग़ज़ब किरदार हैं आप जो कृषि और ईकॉमर्स एक साथ । सचमुच आपकी अमरनाथ और श्रीनगर वाली घटनाएं जिंदगी में कभी भुलाई नहीं जा सकती ।

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  • September 25, 2017 at 11:11
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    चंद्रेश जी आप वाकई बहुत ही प्रेरणात्मक हैं आप के साथ एक यात्रा (जागेश्वर महादेव) हमने भी की है जो हमारे जीवन का सबसे सुखद और यादगार यात्रा है।
    आप ऐसे ही नित नए आयाम बनाते रहें यही हमारी ईश्वर से प्राथना है।।

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