रमता जोगी : घुमक्कड़ी मनुष्य को जीना सिखाती है

घुमक्कड़ जंक्शन पर आज आपकी मुलाकात जन्मजात ट्रेकर बीनू कुकरैती (रमता जोगी) से करवाते हैं। पहाड़ों में ट्रेकिंग करना इनका जुनून है एवं महीने पन्द्रह दिन में एक ट्रेकिंग कर ही लेते हैं। पहले स्वयं ट्रेकिंग करते थे अब लोगों को भी ट्रेकिंग करना सिखा रहे हैं एवं ट्रेकिंग को ही जीविका के साधन के रुप में अपना लिया है। एक भेंट के दौरान हमने इनसे चर्चा की, चलिए जानते हैं ललित शर्मा के साथ रमता जोगी के जीवन के अनछुए पहलुओं के बारे में ……

1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?@ मेरा जन्म उत्तराखण्ड तब के उत्तर प्रदेश के पौड़ी जिले में 10 जुलाई 1975 को मटियाली में हुआ। पिताजी अध्यापक थे तो यहीं स्कूल के स्टाफ क्वार्टर में हम रहते थे। प्राथमिक से कक्षा 8 तक की पढ़ाई मेरी यहीं से हुई। आगे की पढाई स्नातक तक की पढ़ाई श्रीनगर के हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद उत्तराखण्ड में चल रही पलायन की आंधी में बहते हुए दिल्ली आ पहुंचा। सन 1996 से आज तक दिल्ली में ही हूँ। कुल मिलाकर जैसे सभी का बचपन होता है वैसा ही मेरा भी था यही कहूंगा कि काश लौट आएं मेरे बचपन के दिन।

2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं?

@ वर्तमान में दिल्ली में ट्रांसपोर्ट का खुद का व्यवसाय है तथा उत्तराखण्ड में ट्रैकिंग के इच्छुक लोगों के लिए “गो हिमालया एडवेंचर” के नाम से एक ट्रैकिंग एजेंसी का संचालन करता हूँ। जिसको कि इसी वर्ष से शुरू किया है हालांकि ये मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट है बहुत समय से मन में था लेकिन शुरुआत अब जाकर हुई।
परिवार में माता जी, पिताजी, धर्मपत्नी व तीन बच्चे हैं। पिताजी प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं व कभी पैतृक गांव कभी दिल्ली उनका जहां मन करता है आते-जाते रहते हैं।

3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई एवं इतनी मंहगाई में घुमक्कड़ी के लिए धन की व्यवस्था कैसे करते हैं?
@ घूमने की रुचि कहाँ से हुई सही से तो याद नहीं, लेकिन शायद पिताजी से विरासत में मिली है। पिताजी जब डॉक्टरेट कर रहे थे व मैं बहुत छोटा था तो गढ़वाल की ऐतिहासिक पुस्तकों को इकट्ठा करने व उनकी खोज में गांव-गांव जाया करते थे। वापिस आकर वहां के बारे में किस्से सुनने को मिलते थे, जिससे घुमक्कड़ी का बीज मेरे मन में जग गया।

हमारे समाज का यह दुर्भाग्य है कि घूमने पे किये खर्च को फालतू के खर्चों की श्रेणी में रखा जाता है। घुमक्कड़ों को आवारा के टाइटल से नवाजा जाता है। मुझे भी अक्सर नवाजा जाता है। पहले बुरा लगता था, लेकिन अब नहीं, परवाह करनी ही छोड़ दी। जबकि घूमने के लिए तो प्रोत्सहित करना चाहिए, जो ज्ञान घूमने से प्राप्त होता है वह कभी भी सिर्फ किताबें पढ़ने से हासिल नहीं हो सकता। इस जिज्ञासा को शान्त करने के लिए धन एक कारक जरूर है लेकिन सब कुछ नहीं। इसलिए जो यह सोचता है कि पैसे बहुत ही जरूरी हैं, उनको घुमक्कड़ी अभी जानने की नितान्त आवश्यकता है।
फिर जो थोड़ा बहुत खर्च होता है वो मैं वहां से बचा लेता हूँ जहां लोग फालतू का खर्च कर देते हैं। फिर अपने शौक के लिए कुछ न कुछ तो सभी लोग खर्च करते ही हैं। एक घुमक्कड़ को मितव्ययिता सीखनी ही पड़ती है या यूं कहें कि वो स्वाभाविक मितव्ययी होता ही है।

4 – किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेल भी क्या आपकी घुमक्कड़ी में सम्मिलित हैं ?

@ मेरी 95% घुमक्कड़ी ट्रेकिंग ही है। जन्मजात पहाड़ी हूँ, इसलिए हिमालय पर ही मन अटका रहता है। मुझे प्राकृतिक खूबसूरती ही आकर्षित करती है। हालांकि मेरा मानना है कि एक घुमक्कड़ को सब कुछ देखना चाहिए। प्राकृतिक हो या ऐतिहासिक सब कुछ। इसलिए मैं स्वयं को कभी घुमक्कड़ मानता ही नहीं। क्योंकि बिना पहाड़ों के मैं रह नहीं सकता और घुमक्कड़ी में पहाड़ ही सब कुछ नहीं है।

5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?

@ ऐसे तो बचपन से घूमता आया हूँ व कॉलेज के समय भी कहीं न कहीं दोस्तों के साथ घूमने निकल ही जाता था, लेकिन घुमक्कड़ी क्या न करवाए उसका एक किस्सा सुनाता हूँ।

जब मैं स्नातक की पढ़ाई कर रहा था तो मालूम पड़ा जीव विज्ञान के दोस्तों का पूरा बैच सुरकंडा देवी ट्रिप प्लान कर रहा है। अब मैं तो भूगर्भ विज्ञान वाला था। तो सिफारिश लड़ाकर व जो मित्र जीव विज्ञान का मोनिटर था उसे पटाया कि मुझे भी अपने साथ ले चलो। चूंकि प्रोफेसर भी साथ में होंगे तो उसकी शर्त थी कि तू पूरे ट्रिप पर प्रोफेसर के सामने नहीं आएगा। आया तो वह पहचान लेंगे कि ये तो मेरा विद्यार्थी ही नहीं है, यहां क्या कर रहा। बस पूरे ट्रिप में लुक छुप के रहना पड़ा लेकिन इसके बदले मसूरी के पास धनोल्टी व सुरकंडा देखने को मिल गया।

6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?

@ शादी के बाद कुछ सालों तक घुमक्कड़ी पर विराम लग गया था। बस कभी कभार ही कहीं निकलना हो पाता था। जाहिर सी बात है कि परिवार पहली प्राथमिकता है। फिर धीरे-धीरे अपने बिजनिस को इस तरह से लागू किया कि मैं चाहे पहाड़ों पर रहूँ तो भी रोजी-रोटी का जरिया बना रहे। और जबसे ट्रैवल एजेंसी शुरू की है तो अब तो शौक ही काम बन चुका है।

7 – आपकी अन्य रुचियों के साथ बताइए कि आपने ट्रेवल ब्लाॅग लेखन कब और क्यों प्रारंभ किया?

@ यात्रा वृतान्त पढ़ना मुझे शुरू से अच्छा लगता था। खेलों में क्रिकेट बहुत पसन्द है। यात्रा वृतान्त पढ़ने का शौकीन भी हूँ ही, पहले कोई भी पत्रिका हाथ में आते ही उसमें यात्रा वृतान्त या किसी भी जगह के बारे में जानने की उत्कंठा रहती थी। मेरे एक आभासी दुनिया के मित्र थे प्रशांत जोशी, जब उनसे परिचय हुआ तो वह अपने ट्रैक को ब्लॉग में लिखते थे, बस तभी से मन में था कि कभी न कभी अपनी यात्राओं को मैं भी ब्लॉग पर लिखूंगा। फिर धीरे-धीरे सभी हिन्दी के यात्रा वृतांत लेखकों से परिचय हुआ तो स्वयं भी ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया।

8 – घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?

@ मेरा मानना है कि थ्योरिटिकल होने से अच्छा है प्रेक्टिकल होना। आप एक हाथी का चित्र दिखाकर बच्चे को कहिए कि इसकी फ़ोटो बनाओ। वहीं दूसरे बच्चे को सचमुच का हाथी दिखाकर कहिए। आपको अन्तर स्वतः ही दिख जाएगा। अगर जीवन में सच मे ज्ञान अर्जित करना है तो घूमना बहुत जरूरी है। नहीं तो आप किताबी ज्ञान से अधिक कुछ नहीं जान पाएंगे। मेरे लिए घूमना ज्ञान अर्जित करने का सबसे सही माध्यम है।

9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?

@ चूंकि हिमालय प्रेमी हूँ इसलिए 95% हिमालय पर ही पाया जाता हूँ। हालांकि मैदानों में भी घूमा हूँ लेकिन वहां भी फिर से जंगल ही ढूंढना शुरू कर देता हूँ। इसलिए अब तो दिमाग ज्यादा लड़ाता ही नहीं हूँ, झोला उठा कर सीधे पहाड़ों पर निकल लेता हूँ।
एक बार की बात है, जब मैं स्नातक की पढ़ाई कर रहा था। पिताजी से मिलने उनके स्कूल गया जो कि श्रीनगर से 4-5 घण्टे की दूरी पर है। एक रात पिताजी से मिलकर अगले दिन अपनी छुट्टियां बिताने गांव के लिए निकल गया। साथ में मेरी हमउम्र चाचा भी थे। दिन के करीब बारह बजे सतपुली बाजार पहुंचे तो बैक टू बैक दो फ़िल्में वीडियो थियेटर में देख डाली।
बाहर निकले तो देखा 6 बज चुके हैं। बाहर एक आखिरी बस कोटद्वार की जाती दिखी तो भाग कर हम भी लटक लिए। 19 किलोमीटर दूर गुमखाल उतरे तो अंधेरा छा चुका था। यहां से 19 किमी हमें और जाना था, टैक्सी वाले को बुकिंग पर चलने के लिए पूछने की हिम्मत भी नहीं हुई, क्योंकि इतनी तब जेब में इतने पैसे हुआ ही नहीं करते थे। लोगों ने बताया कि आदमखोर तेदूंआ इलाके में घूम रहा है, फ़िर भी हम रात को निकल कर तीन बजे गांव पहुंचे और पढने वाले लड़कों के रुम में सोए। अगले दिन लेट उठकर घर गए तो बताया कि बस अभी-अभी पहुंच ही रहे हैं
कुल मिलाकर जीवन में रोमांच का होना भी आवश्यक है। कठिनाइयों को झेलने की क्षमता इंसान को मानसिक रूप से मजबूत बनाती है।

10 – नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?

@ बस यही कहना चाहूंगा कि खुद को जनाने व ज्ञान अर्जित करने के लिए घर से बाहर निकलना जरूरी है। ऊपर वाले की बनाई इस अदभुत रचना को देखने के लिए यही जीवन मिला है। मालूम पड़ा अगले जन्म में केंचुआ बना दिया तो एक ही जगह पड़ा रहूंगा, इसलिए जितना हो सके इस बार ही निपटा डालो। घुमक्कड़ी मनुष्य को जीना सिखाती है।

16 thoughts on “रमता जोगी : घुमक्कड़ी मनुष्य को जीना सिखाती है

  • July 30, 2017 at 22:18
    Permalink

    गर्व है सर की मैंने आपसे ट्रैकिंग सीखी है☺??, भगवान आपको चिरायु बनाये।

  • July 30, 2017 at 23:38
    Permalink

    धन्यवाद बीनू भाई। आपने घुमक्कडी की बहुत सुंदर परिभाषा दी।

  • July 31, 2017 at 00:14
    Permalink

    बेहतरीन……

  • July 31, 2017 at 00:47
    Permalink

    Ek jamanat ghumakkad se milker man prasann ho gya.
    Thanx lalit g …

  • July 31, 2017 at 02:26
    Permalink

    बहुत बढ़िया बीनू भाई

  • July 31, 2017 at 02:38
    Permalink

    बीनू कुकरेती जी ट्रैकर जितने अच्छे हैं , इंसान भी उससे बेहतर हैं ! ये मेरा सौभाग्य है कि मुझ जैसे व्यक्ति को इनके साथ रहने और सीखने का अवसर मिला !! बहुत ही बेहतरीन साक्षात्कार और आभार ललित जी , एक शानदार घुमक्कड़ से मिलाने के लिए !!

  • July 31, 2017 at 02:54
    Permalink

    बीनू भाई आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला आशा है ये सफर ऐसे ही चलता रहेगा।

  • July 31, 2017 at 03:26
    Permalink

    बीनू भाई……
    मजा आ गया पढ़कर, पढ़ते ही जो पहली बात मन में आई….
    आभार ललित जी…..

  • July 31, 2017 at 11:45
    Permalink

    घुमक्कड़ी सीखना हो तो बीनू से सीखो। पूरी घुमक्कड़ी की किताब है ।लगे रहो बीनू ,मेरा आशीर्वाद है तुम सफलता की सीढ़ी चढ़ते रहो ।

  • August 1, 2017 at 01:38
    Permalink

    बढ़िया बीनू भाई ..मजा आ गया पढ़कर

  • August 1, 2017 at 02:27
    Permalink

    वाह बीनू भाई । आपके बारे में जानकर अच्छा लगा

  • August 2, 2017 at 06:42
    Permalink

    बहुत सुंदर बिनु भाई।आपका इंटरव्यू पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।

  • August 2, 2017 at 21:45
    Permalink

    कितने बढ़िया जबाब दिए हैं रमता जोगी ने, मन में एक ही इच्छा जो लगता था रह जाएगी और अब उस पर सोचना बंद कर चुकी थी,फिर से उन तंतुओं में जान आ गई और एक बार ही सही पर ट्रेकिंग का मन हो आया, बहुत मुश्किल होगा पर बीनू जी की कई बातें मेरे मन की बातें लगी ….

  • August 3, 2017 at 05:00
    Permalink

    बीनू भाई, ट्रेकिंग को ही अपनी आजीविका बना डालने का आपका वृत्तान्त पढ़ कर एक किस्सा याद आ गया ! एक लड़के को गर्ल्स होस्टल में नौकरी मिली ! तीन महीने बाद उसे ऑफिस में बुला कर पूछा गया कि तुम सेलरी लेने क्यों नहीं आये? वह हैरान और बोला, “अरे वाह, यहां सेलरी भी मिलेगी ?”

    आप को अपने शौक और अपनी आजीविका के सुखद भविष्य के लिये शुभाशीष ! आप थोड़ा धीमे बोलते हो और मैं थोड़ा ऊंचा सुनता हूं अतः ओरछा में साथ रह कर भी हमने बहुत ज्यादा बातें नहीं कीं ! जो बात साथ रह कर भी पता नहीं चल पायी थीं, अब ललित जी के आशीर्वाद से पता चलीं ! बधाई और शुभ कामनाएं !

    आपका ही,
    सुशान्त सिंहल

  • August 4, 2017 at 02:18
    Permalink

    पहले तो ललित शर्मा जी का आभार ऐसे नेक कार्य के लिए

    बीनू भाई जी आपका भी बहुत बहुत धनयवाद ऐसे सरल साक्षात्कार के लिए। आपका ये साक्षात्कार बहुत लोगो के लिए प्ररेणास्रोत बनेगा।

    एक बार पुनः धन्यवाद

Comments are closed.