महेशपुर की दूर्लभ प्रतिमाएँ, सुरक्षा के अभाव में चोरों के निशाने पर

लखनपुर/ सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक के उत्तर-पूर्व में 8 किलोमीटर की दूरी पर पुरात्ताविक एवं एतिहासिक स्थल महेशपुर स्थित है। यहाँ एक ओर पुरातात्तिक धरोहरें खुले में पड़ी हुई हैं वहीं दूसरी ओर बदहाली का आलम यह है कि उत्खनन में प्राप्त हरिहर एवं गरुड़ प्रतिमाओं की डेढ वर्ष पूर्व हुई चोरी का कोई पता या सुराग भी नहीं लग सका है। प्रशासनिक लापरवाही से हो रही दुर्लभ प्रतिमाओं की चोरी का क्रम कब थमेगा यह पता नहीं है।

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महेशपुर में उत्खनन के दौरान ढेरों मंदिरों के अवशेष एवं प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी। जिन्हें पुरातत्व विभाग छत्तीसगढ़ ने यहाँ खुले में रख कर चंद चौकीदारों के भरोसे छोड़ कर अपने कर्तव्यों एवं दायित्यों की इति श्री कर ली। खुले में पड़ी हुई पुरा सामग्री को देख कर मूर्ति चोरों एवं तस्करों ने 12 वीं सदी की हरिहर की प्रतिमा एवं 10 वीं शताब्दी की बलुआ पत्थर पर निर्मित गरुड़ की प्रतिमा को उड़ा लिया। यहाँ के चौकीदारों ने इसकी रिपोर्ट उदयपुर थाने में कराई। पूर्व में चोरी गई प्रतिमाओं की तरह इन प्रतिमाओं का भी आज तक सूराग नहीं लगा।

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पूर्व में उत्खनन के दौरान कलचुरी शासन के राजस्व काल के राजा लक्ष्मणराज द्वारा निर्मित 12 मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। भग्नावस्था में पाए गए मंदिरों में एक मंदिर ईष्टिका निर्मित हैं शेष मंदिरों के निर्माण में पाषाण का प्रयोग हुआ है। इन टीलों को शिवमंदिर समूह, देऊर समूह, आदिनाथ प्रतिमा समूह, छेरिका देऊर समूह एवं पखना सहित 5 समूहों में बांटा गया है। इन टीलों में देवताओं की 23-24 प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं।

यहाँ संरक्षण के अभाव में खुले में बिखरी हुई प्रतिमाएँ, मंदिरों के कलात्मक अवशेष कागजों में सुरक्षित रखने की ही कोशिश मात्र दिखाई देती है। धरातल पर इन्हें संरक्षित एवं सुरक्षित रखने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। यदि इनकी सुरक्षा नहीं की जाती है तो ये प्रतिमाएं भी नष्ट हो जाएंगी और संस्कृति एवं इतिहास के एक अध्याय का विलोपन हो जाएगा।

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त्रिपुरारी पाण्डेय
(पत्रकार – लखनपुर सरगुजा)

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